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MP Election 2023: मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक दी है. पार्टी ने चुनावी घोषणा से पहले ही 78 प्रत्याशियों के नाम का ऐलान कर दिया है. इसमें तीन केंद्रीय मंत्री, चार सांसद और एक राष्ट्रीय महासचिव का भी नाम शामिल है. जिन तीन केंद्रीय मंत्रियों को बीजेपी ने उतारा है, उसमें नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते का नाम शामिल है.
अब सवाल है कि आखिरी बीजेपी ने केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को विधानसभा चुनाव में क्यों उतारा? क्या नरेंद्र सिंह तोमर की एमपी चुनाव में एंट्री शिवराज के लिए खतरा है? और बीजेपी की नई रणनीति का पार्टी को कितना फायदा और नुकसान हो सकता है?
हम आपको इन सवालों का जवाब दें, उससे पहले नरेंद्र सिंह तोमर के बारे में जान लेते हैं.
नरेंद्र सिंह तोमर का जन्म 12 जून 1957 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर के मोरार गांव में हुआ था.
1980 में पॉलिटिक्स में एंट्री करने वाले तोमर बीजेपी के उन नेताओं में शामिल हैं, जिसने नगर निगम पार्षद से लेकर केंद्रीय मंत्री तक सफर तय किया है.
वो ग्वालियर में बीजेपी युवा मंच के अध्यक्ष भी रह चुके हैं.
1998 और 2008 में मुरैना सीट से विधायक रहे.
तोमर को 2006 में एमपी बीजेपी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था.
वो केंद्र और राज्य दोनों में ही मंत्री रह चुके हैं.
तोमर 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री भी थे.
2014 में ग्वालियर और 2019 में मुरैना से चुनाव जीते तोमर को मोदी सरकार के टॉप मंत्रियों में गिना जाता है.
वो राज्यसभा के भी सदस्य रह चुके हैं.
एमपी में बीजेपी ने जिन तीन केंद्रीय मंत्रियों को विधानसभा चुनाव में टिकट दिया है, वो अलग-अलग जाति से आते हैं. जिसमें नरेंद्र सिंह तोमर ठाकुर, प्रह्लाद सिंह पटेल (लोधी) ओबीसी और फग्गन सिंह कुलस्ते आदिवासी हैं. ये तीनों ही नेता तीन दशक से भी अधिक समय से राजनीति में हैं. जानकारों का मानना है कि तीनों की राजनीति करीब-करीब शिवराज सिंह चौहान के समानांतर ही चलती रही.
नरेंद्र सिंह तोमर को दिमिनी, प्रहलाद सिंह पटेल नरसिंहपुर और कुलस्ते को निवास सीट से बीजेपी ने उम्मीदवार बनाया है. दिमनी और निवास वो सीट है, जहां बीजेपी को 2018 के विधानसभा चुनाव में हार मिली थी. हालांकि, दिमिनी सीट तोमर के लोकसभा क्षेत्र मुरैना के अंदर ही आती है.
बीजेपी नेताओं का कहना है कि पार्टी ने केंद्रीय मंत्रियों को मैदान में उतार कर सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने के संकेत दिए हैं. पार्टी नेताओं का मानना है कि "सांसदों और मंत्रियों को उतारना एक रणनीति का हिस्सा है. पार्टी इस बार किसी चेहरे के बजाय सामूहिक नेतृत्व में लड़ना चाहती थी, जिससे पार्टी के अंदर जो गुटबाजी है उस पर लगाम लगाया जा सके."
वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी कहते हैं कि, " ऐसा नहीं है कि जिन बड़े चेहरों को टिकट मिला है, वो खुश हैं. लेकिन अगर ये लोग विधानसभा चुनाव हार गए तो फिर क्या? क्या पार्टी ये विचार नहीं करेगी कि इन्हें लोकसभा का टिकट क्यों दिया जाए? मतलब साफ है कि बीजेपी लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी बदलने की कवायद में है.
दूसरा, सीएम का पद खुला है, बीजेपी ने इन्हें उतारकर संकेत दे दिया है. तीसरा, शिवराज सिंह चौहान को लेकर एंटी इनकंबेंसी का जो माहौल है, उसे बीजेपी कम करना चाहती है. "
अरुण दीक्षित भी दीपक तिवारी की बात से सहमत नजर आते हैं. वे कहते हैं....
वरिष्ठ पत्रकार अरुण दीक्षित कहते हैं कि, "बीजेपी ने अभी तक सात सीटिंग एमपी को टिकट दिया है. इन नेताओं का अच्छा राजनीतिक अनुभव है."
दीपक तिवारी कहते हैं कि, "बीजेपी को ब्राह्मण और बनियों की पार्टी माना जाता था, लेकिन शिवराज सिंह चौहान ने पिछले 18-19 सालों में एमपी में इस छवि को बदला, और उन्होंने बीजेपी को कमजोर वर्ग, पिछड़ों और महिला की पार्टी बनाया. इसका लाभ बीजेपी को चुनाव दर चुनाव मिला भी. ऐसे में जो भी शिवराज सिंह के नाम पर वोट करता आ रहा है, वो कहेगा कि अगर शिवराज सिंह सीएम नहीं बनेंगे, तो हम वोट क्यों देंगे?
इस सवाल के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार अरुण दीक्षित कहते हैं कि पीएम मोदी ने भोपाल रैली के दौरान शिवराज सिंह चौहान का नाम तक नहीं लिया, ना ही उनके कामों का जिक्र किया, इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पीएम की नजर में शिवराज सिंह चौहान कहां खड़े हैं.
उन्होंने आगे कहा, "तोमर के अलावा और भी मंत्री दावेदार हो सकते हैं. एमपी में ओबीसी का दबदबा है. प्रह्लाद सिंह पटेल, गणेश सिंह और राकेश सिंह भी शिवराज की तरह ओबीसी समाज से आते हैं, ऐसे में पार्टी उन पर भी दांव आजमा सकती है. लेकिन कौन सीएम बनेगा, ये बहुत हद तक बहुमत पर निर्भर करेगा. ये कहना कि शिवराज कमजोर हैं, ये बहुत जल्दबाजी होगी. क्योंकि अगर शिवराज को हटाना आसान होता तो वर्तमान बीजेपी नेतृत्व, इस पर कब का फैसला ले लिया होता, जैसे त्रिपुरा, गुजरात, उत्तराखंड, असम और कर्नाटक में लिया."
दीक्षित ने कहा, "शिवराज सिंह चौहान की एक अपनी अलग इमेज है. उन्होंने जनता के साथ सीधा कनेक्ट किया है. इसके अलावा, चौहान इलेक्ट्रोल पॉलिटिक्स में नरेंद्र मोदी से पहले आए हैं."
हालांकि, एमपी बीजेपी के एक नेता ने कहा, "पिछले कुछ समय में स्थिति बदली है. हाल के दिनों में हुई कुछ घटनाओं ने शिवराज और बीजेपी की छवि को नुकसान पहुंचाया है. और पार्टी इसको लेकर बदलाव करने के मूड में हैं, लेकिन शिवराज को हटाना इतना आसान नहीं है."
इसको लेकर वरिष्ठ पत्रकारों का कहना है कि ये ठीक उसी तरह का प्रयोग करना चाहते हैं, जो उन्होंने गुजरात में किया था, जब इन्होंने विजय रुपाणी को हटाकर भूपेन पटेल को सीएम बनाया था. बस यहां ये उल्टा कर रहे हैं. वहां नए चेहरे लेकर आए थे. यहां मध्यप्रदेश में इन्होंने पुराने चेहरे उतार दिए.
दीपक तिवारी कहते हैं कि एमपी का चुनाव कांग्रेस और बीजेपी का नहीं हो रहा है. ये जनता और बीजेपी के बीच हो रहा है. ऐसे में तोमर, शिवराज, कैलाश विजयवर्गीय हों फर्क नहीं पड़ता है.
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे क्या होंगे, ये देखना दिलचस्प होगा, लेकिन मौजूदा हालात को समझें तो साफ लग रहा है कि इस बार एमपी की हवा कुछ बदली है. बीजेपी इस हवा को भांपने में कितना सफल होगी, ये वक्त बताएगा. लेकिन पार्टी जिस तरह से चौंकाने वाले फैसले ले रही है, वो साफ संकेत दे रहा है कि मामला टाइट है.
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