मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव (MP Election 2023) को लेकर सियासी सरगर्मी तेज हो गई है. 'मिशन 2023' की तैयारी को लेकर पार्टियों ने जी-जान लगा दी है. बीजेपी मध्यप्रदेश की जनता को साधने के लिए 'जन आशीर्वाद यात्रा' से लेकर घोषणाएं और वादे कर रही है. इसी कड़ी में अब सीएम शिवराज सिंह चौहान ने सतना जिले के मैहर (Maihar District) को जिला बनाने की घोषणा की है. इससे पहले, शिवराज सरकार ने विंध्य के ही मऊगंज को जिला बनाया था. वहीं विंध्य से आने वाले राजेंद्र शुक्ल को कैबिनेट में जगह दी थी.
लेकिन, सवाल है कि आखिर चुनाव के वक्त ही बीजेपी का विंध्य पर फोकस क्यों? ऐसे में चलिए जानते हैं कि बीजेपी के विंध्य पर फोकस करने के पीछे का कारण क्या है और चुनावी साल में इससे पार्टी को कितना फायदा मिलेगा?
मैहर को जिला बनाने के पीछे क्या मंशा?
जानकारों का मानना है कि शिवराज सरकार ने मैहर को जिला बनाकर स्थानीय लोगों में बीजेपी के खिलाफ बढ़ रहे असंतोष को दबाने की कोशिश की है. क्योंकि, मैहर को जिला बनाने की मांग वर्षों से उठ रही थी. पिछली कांग्रेस की कमलनाथ सरकार रही हो या बीजेपी की शिवराज सरकार, सभी सरकारों में यहां के लोग मैहर को जिला बनाने की मांग करते आए थें.
वरिष्ठ पत्रकार अरुण दीक्षित कहते हैं कि...
"मैहर को जिला बनाने की मांग 20 साल से उठ रही थी. यहां के तत्कालीन विधायक नारायण त्रिपाठी पहले समाजवादी पार्टी में थे. बाद में वो कांग्रेस में आए. जिले के ही मुद्दे पर वो बीजेपी में आए थे. वो ही, मैहर को जिला बनाने का मुद्दा बार-बार उठा रहे थे. चूंकि, बीजेपी को अंदेशा था कि वे इस बार पार्टी छोड़ देंगे. इसलिए, उन्होंने लास्ट मिनट पर अनाउंस कर मैहर को जिला बना दिया."
राजनीति के जानकारों का मानना है कि नारायण त्रिपाठी मैहर में जनाधार वाले नेता हैं और वो लंबे समय से मैहर को जिला बनाने की मांग करते रहे हैं. जिला बनाने की मांग को ही लेकर उन्होंने कांग्रेस का हाथ छोड़ दिया था और बीजेपी का दामन थाम लिया था. 2014 में भी मैहर को जिला बनाने की घोषणा को लेकर उन्होंने बीजेपी का समर्थन किया था और 2016 में बीजेपी के प्रत्याशी के तौर पर उपचुनाव लड़ा और तब मैहर को जिला बनाने की घोषणा की गई थी.
मैहर को जिला बनाने के बाद क्रेडिट लेने की होड़
मैहर के जिला बनने पर श्रेय लेने की होड़ मच गई है. बीजेपी और कांग्रेस, दोनों दावा कर रहीं हैं कि उनकी वजह से मैहर जिला बना. कांग्रेस के समर्थक इस बात पर जोर दे रहे हैं कि साल 2018 में कमलनाथ सरकार ने इसे जिला बनाने की घोषणा की थी. वहीं, शिवराज सरकार का कहना है कि उन्होंने घोषणा की और इसे जिला बनाया.
इस पर वरिष्ठ पत्रकार हरीश दिवेकर कहते हैं कि "इसको जिला बनाने में न कांग्रेस और न ही बीजेपी, इसका सबसे ज्यादा क्रेडिट विधायक नारायण त्रिपाठी को जाता है. एक वक्त ऐसा था, जब वो पार्टी के खिलाफ ही बयानबाजी कर बीजेपी के लिए सिरदर्द बन गए थे. हालांकि, उस वक्त उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं करना बीजेपी की मजबूरी थी, क्योंकि नारायण त्रिपाठी जमीनी और मजबूत नेता हैं.
दिवेकर आगे कहते हैं...
"सही मायने में मैहर को जिला बनाने का सबसे ज्यादा क्रेडिट नारायण त्रिपाठी को जाता है. क्योंकि, इसके लिए उन्होंने एक लंबी लड़ाई लड़ी. हालांकि, कमलनाथ मैहर को जिला बनाने की घोषणा कर चुके थे, लेकिन जिला बनने से पहले उनकी सरकार चली गई थी. इसलिए एक तरफा किसी को क्रेडिट लेने का फायदा नहीं मिलेगा."
विंध्य का सियासी समीकरण
दरअसल, विंध्य क्षेत्र सवर्ण बहुल इलाका है और इसमें भी सबसे ज्यादा आबादी ब्राह्मणों की है. 2018 के विधानसभा चुनाव में विंध्य की कुल 30 सीटों में से 24 पर बीजेपी ने कब्जा किया था. यहां कांग्रेस के खाते में महज छह सीटें आईं थीं. विंध्य इकलौता क्षेत्र था, जहां बीजेपी ने 2013 से बेहतर प्रदर्शन किया था. 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने इस क्षेत्र से 16 सीटें हासिल की थी. जबकि, कांग्रेस के खाते में 12 सीटें गईं थी.
विंध्य को लेकर क्या है बीजेपी का एजेंडा?
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि विंध्य सीट पर बीजेपी अपनी जीत दोहराना चाहती है, लेकिन इस बार पार्टी के सामने पिछले बार की तुलना में कहीं अधिक चुनौतियां हैं. इसलिए उसने विंध्य पर फोकस करना शुरू कर दिया है. पहले मध्यप्रदेश कैबिनेट में विंध्य के राजेंद्र शुक्ल को मंत्री बनाया और अब कई साल से उठ रही मैहर को जिला बनाने की मांग पूरी कर दी.
वरिष्ठ पत्रकार अरुण दीक्षित कहते हैं,
"बीजेपी इस तरह की चीजें करती रहती है. शिवराज सरकार ने रीवा से अलग कर मऊगंज को जिला बनाया था. छिंदवाड़ा के भी पाढुर्णा को जिला बनाने की घोषणा की है. लगातार इन्होंने चौथा जिला अनाउंस किया है. इसके पीछे बीजेपी का सिर्फ एक एजेंडा वोट हासिल करना है."
विंध्य पर इतना फोकस क्यों?
इस सवाल के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार अरुण दीक्षित कहते हैं कि "विंध्य की इन लोगों ने बहुत उपेक्षा की थी. 2018 में बीजेपी को अच्छा सपोर्ट मिला था. 2020 में सरकार बनाई तो इन्होंने विंध्य को नजरअंदाज कर दिया. बस विंध्य से गिरीश गौतम को विधानसभा स्पीकर बनाया. हाल ही में शिवराज सरकार का कैबिनेट विस्तार हुआ तो राजेंद्र शुक्ल को जगह दी गई."
दीक्षित आगे कहते हैं,
"जो आदिवासी सीधी पेशाब कांड हुआ है, ये सब उसकी भरपाई करने की कोशिश है, क्योंकि विंध्य के ब्राह्मण शिवराज सरकार से बहुत नाराज हैं. विंध्य में ब्राह्मण बहुसंख्यक हैं. इसलिए बीजेपी वोट के लिए उन्हें मनाने की कोशिश कर रही है."
वरिष्ठ पत्रकार हरीश दिवेकर भी अरुण दीक्षित की बात का समर्थन करते हैं. वे कहते हैं "लंबे समय से विवाद चल रहा था कि विंध्य ने इतना महत्व दिया, लेकिन मध्यप्रदेश सरकार में यहां से किसी को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली."
दूसरी ओर, कांग्रेस लगातार हार रही थी, अब उनके समर्थन में माहौल है. सीधी के पेशाबकांड को लेकर भी नाराजगी है. लगातार आदिवासियों से जुड़े कई मुद्दे सामने आए.
विंध्य से बीजेपी को कितना फायदा?
वरिष्ठ पत्रकार हरीश दिवेकर कहते हैं कि "यह देखना होगा कि मैहर से किसको टिकट मिलेगा, तभी पता चलेगा कि इस कदम से बीजेपी को कितना फायदा होगा. मैहर को जिला नहीं बनाते तो नुकसान जरूर होता."
वे आगे कहते हैं,
"विंध्य में चार जाति बहुत महत्वपूर्ण हैं- ब्राह्मण, ठाकुर उसके बाद ओबीसी और आदिवासी हैं. सतना, रीवा और सीधी ब्राह्मण बेल्ट है. विंध्य से विधायक नारायण त्रिपाठी ब्राह्मण हैं. स्पीकर भी ब्राह्मण हैं, लेकिन ठाकुर समुदाय से कोई भी नेता नहीं है. यहां पूरी तरीके से ब्राह्मण और ठाकुर की लड़ाई हो गई है. यहां बीजेपी विरोधी लहर है. फिलहाल, सारी चीजें गड्डमड्ड हो गई हैं."
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार अरुण दीक्षित का कहना है कि "बीजेपी की इस स्टेप से फायदा कितना होगा, ये देखने वाली बात होगी. हालांकि, लोग समझ गए हैं कि इन्होंने बार-बार कई घोषणा की हैं लेकिन कुछ काम नहीं हुआ है. कुछ जिले बने हैं. पिछोर में सीएम ने अनाउंस किया था कि आप वोट दो और बीजेपी को जिताओ. हम जिला घोषित कर देंगे. जिले बने हैं लेकिन ये वोट बैंक में बदल जाएंगे, ये संशय है."
राजेंद्र शुक्ल और नारायण त्रिपाठी BJP के लिए कितने कारगर?
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, रीवा और सतना जिले में 25 प्रतिशत ब्राह्मण वोटर्स हैं, जो पेशाब कांड के बाद आरोपी प्रवेश शुक्ला का घर तोड़ने से नाराज चल रहे हैं. डैमेज कंट्रोल करने के लिए शिवराज सरकार ने ब्राह्मण समुदाय से आनेवाले राजेंद्र शुक्ल को कैबिनेट में शामिल किया. उन्हें जनसंपर्क और लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग का जिम्मा दिया गया है. शुक्ल रीवा से चार बार विधायक रह चुके हैं.
वरिष्ठ पत्रकार अरुण दीक्षित कहते हैं कि...
"राजेंद्र शुक्ल पैसे वाले नेता हैं. विनम्र स्वभाव के हैं, लेकिन वहां सब ब्राह्मण नेता ही हैं. शुक्ल साधन संपन्न हैं तो कॉर्डिनेट करेंगे. यही बीजेपी की इच्छा है. लेकिन, वह ब्राह्मणों को मनाने में कहां तक सफल होंगे, वो चुनाव परिणाम ही बताएंगे."
वहीं, हरीश दिवेकर कहते हैं कि "राजेंद्र शुक्ल को आखिरी समय में मंत्री बनाकर बीजेपी ने मैसेज दिया कि बीजेपी ने विंध्य के मजबूत विधायक को जिम्मेदारी दी है. हालांकि, जनता तक मैसेज जाता, इससे पहले ही एक वाक्या ने खेल बिगाड़ दिया."
"हुआ यूं कि चित्रकूट में 'जन आशीर्वाद यात्रा' में मंच पर गृह मंत्री अमित शाह थे. यात्रा के प्रभारी नरोत्तम मिश्रा थे. लेकिन, मंच पर राजेंद्र शुक्ल को बोलने का मौका नहीं दिया गया. एक तरफ शुक्ल को कैबिनेट में जगह देकर तवज्जो तो दी, लेकिन बोलने का मौका नहीं देना, दिखाता है कि बीजेपी विंध्य में कंफ्यूजन की स्थिति में है."
दिवेकर आगे कहते हैं कि "विंध्य में बीजेपी दो कदम आगे चलती है तो फिर चार कदम पीछे खींच लेती है. कभी कहती है कि शिवराज का सीएम फेस नहीं होगा. कभी 212 पार का नारा लगाती है. अमित शाह 150 के पार का नारा लगाते हैं तो ज्योतिरादित्य सिंधिया कहते हैं कि जीत जाएंगे. इन बयानों से संदेश जाता है कि बीजेपी अभी कन्फ्यूजन की स्थिति में है."
राजनीतिक जानकारों की मानें तो विंध्य में बीजेपी विरोधी लहर है. चुनावी साल में बीजेपी के सामने पहले नाराज ब्राह्मणों को मनाने की कोशिश है. दूसरी ओर, प्रदेश में आदिवासी से जुड़े कई मामले हैं, उसने भी बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाया है. ऐसे में आने वाले समय में पार्टी की राह आसान नहीं दिख रही है.
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