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"सचमुच अमीरी की कब्र पर पनपी हुई गरीबी बड़ी ही जहरीली होती है."
महान उपन्यासकार शिवपूजन सहाय की लिखी यह लाइन महबूबा मुफ्ती और उनकी पार्टी जम्मू-कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के जख्मों की बानगी है. जो पार्टी पिछले विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, जिसने बीजेपी के साथ गठबंधन में सरकार बनाई थी, जिसकी नेता राज्य की सीएम बनी थी… वो पार्टी 10 साल बाद हुए चुनाव में अगर केवल 3 सीट जीत पाए, उसे 10% वोट भी न मिले तो सवाल तो उठेंगे.
सवाल यह कि पार्टी की यह हालत हुई क्यों? क्यों खुद पार्टी सुप्रीमो की बेटी और पार्टी का नया चेहरा अपनी सीट नहीं जीत पाई?
इन सवालों के जवाब से पहले पार्टी की मौजूदा हालत से रूबरू हो लीजिए.
नेशनल कॉन्फ्रेंस, कांग्रेस और CPI(M) का गठबंधन केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में नई सरकार बनाने के लिए तैयार है. वहीं दूसरी तरफ जम्मू-कश्मीर के दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री और महबूबा के पिता मुफ्ती मुहम्मद सईद द्वारा 1999 में स्थापना के बाद से यह पीडीपी का अब तक का सबसे खराब चुनावी प्रदर्शन है.
2014 में पार्टी ने 28 सीटों पर जीत दर्ज की थी. इस बार पार्टी ने कुल 90 में से 84 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन केवल तीन सीटों- कुपवाड़ा, त्राल और पुलवामा में उसे जीत मिली. खास बात यह है कि निर्दलीय उम्मीदवारों ने पीडीपी से दोगुनी से अधिक सीटें (7) जीती हैं.
पार्टी के लिए सबसे शर्मनाक हार श्रीगुफवारा-बिजबेहरा सीट पर मिली है. यह सीट मुफ्ती परिवार का होम टर्फ है और यह सीट 1996 से उसके पास थी. लेकिन परिवार की तीसरी पीढ़ी की नेता और महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा महबूबा यहां से हार गईं. उन्हें नेशनल कॉन्फ्रेंस के अहमद शाह वीरी ने 9,770 वोटों से हराया है.
दिसंबर 2014 में विधानसभा चुनाव के बाद मुफ्ती मुहम्मद सईद ने कहा था कि "रिजल्ट से पता चला है कि पीडीपी कश्मीर में लोगों की पसंद है और बीजेपी जम्मू में... केंद्र में सरकार के साथ यह एक ऐतिहासिक अवसर है जिसके पास लोगों का स्पष्ट जनादेश है…”
लेकिन पीडीपी के लिए 2014 में बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने का फैसला बैकफायर कर गया. इसने कई कश्मीरियों को नाराज कर दिया और पार्टी स्पष्ट रूप से अपनी जमीन खोती दिख रही है. जून 2018 में पीडीपी-बीजेपी गठबंधन की सरकार गिर गई जब बीजेपी ने अपना समर्थन वापस ले लिया था. आगे अगस्त 2019 में बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने आर्टिकल 370 हटाकर जम्मू-कश्मीर से उसका स्पेशल स्टेट्स ले लिया.
इतना ही नहीं उससे राज्य का दर्जा लेकर उसे दो केंद्र शासित प्रदेश में बांट दिया. कश्मीर की एक बड़ी आबादी की नजर में इसके लिए बीजेपी जिम्मेदार थी और उसके साथ हाथ मिलाने वाली पीडीपी को उसने दूर कर दिया.
अब बात की इस बार के विधानसभा चुनाव में पीडीपी को झटका कहां से मिला. पीडीपी अपने सर्वाइवल के लिए दक्षिण कश्मीर में अपने पारंपरिक वोट बैंक पर भरोसा कर रही थी. लेकिन इसी क्षेत्र में पार्टी के वोट में बड़ी सेंध लगी है.
इस क्षेत्र की 16 सीटों में से पीडीपी ने 2014 में 11 सीटों पर जीत दर्ज की थी. लेकिन इस बार केवल दो, त्राल और पुलवामा को वो बरकरार रखने में कामयाब रही है.
2014 में, पीडीपी को उत्तरी कश्मीर में 16 में से सात सीटें मिली थीं. लेकिन इस बार उसे यहां की केवल एक सीट मिली है.
राजधानी श्रीनगर में पार्टी ने 2014 के विधानसभा चुनाव में आठ में से पांच सीटें जीती थीं. लेकिन वह इसबार एक भी सीट बरकरार रखने में विफल रही है.
तो पीडीपी के वोट गए किसे? दरअसल नंबर बता रहे हैं कि पीडीपी की कीमत पर नेशनल कॉन्फ्रेंस आगे बढ़ने में कामयाब रही है. पीडीपी ने 2014 में कश्मीर के अंदर जो 19 सीटें जीती थीं, उनमें से इसबार 14 पर नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जीत दर्ज की है. दरअसल पिछली बार पीडीपी ने जिन 28 सीटों जीती थीं, उनमें से इसबार 15 सीटें नेशनल कॉन्फ्रेंस को मिली हैं. जबकि तीन सीटें कांग्रेस ने जीती हैं. वहीं एक सीट शोपियां की निर्दलीय उम्मीदवार ने अपने नाम की है.
महबूबा मुफ्ती ने यह स्वीकार किया है कि पार्टी को झटका लगा है. उन्होंने यह भी कहा है कि "हमारी सीटें कम हो सकती हैं लेकिन हम अभी भी एक ताकत हैं... पीडीपी के पास एक विजन और एक एजेंडा है".
हालांकि महबूबा भले ही कहें कि जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक परिदृश्य से पीडीपी बाहर नहीं हुई है लेकिन पार्टी के लिए आगे का रास्ता कठिन जरूर दिख रहा है. कश्मीर की मेहमान नवाजी फेमस है तो उसकी नाराजगी भी.
(इनपुट- वर्षा श्रीराम, द क्विंट)
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Published: 09 Oct 2024,04:19 PM IST