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सोशल मीडिया पर मोदी के साथ ट्रेंड करने वाले तेज बहादुर यादव के नामांकन के रद्द होने की स्क्रिप्ट पहले ही तैयार हो गई थी, बस इसे क्लाइमेक्स तक पहुंचाया गया. इसके तहत तेज बहादुर को कुछ इस कदर कानूनी दांवपेंच में उलझाया गया कि वो आखिर तक चुनाव आयोग के चक्रव्यूह से नहीं निकल पाए.
दरअसल तेज बहादुर यादव को जो नोटिस दी गई थी वो सिर्फ एक फॉरमेल्टी थी. नामांकन रद्द करने के बाद वाराणसी के डीएम और रिटर्निंग ऑफिसर सुरेंद्र सिंह की पूरी बात सुने तो ये साफ भी हो जाएगा.
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क्विंट को मिली जानकारी के मुताबिक तेज बहादुर यादव को चुनाव आयोग की ओर से एक नहीं बल्कि दो नोटिस दिया गया. सबसे पहले उन्हें 30 अप्रैल मंगलवार को दोपहर तीन बजे डीएम ऑफिस बुलाया गया, जहां उन्हें नोटिस थमाया गया. इसमें सेक्शन 9 के तहत तेज बहादुर से पूछा गया कि क्या आपकी बर्खास्तगी भ्रष्टाचार के कारण हुई है ? नोटिस मिलते ही तेज बहादुर और उनकी टीम ने इसका जवाब तैयार कर दे दिया. जवाब में तेज बहादुर ने कहा कि उन्हें जिस सेक्शन-9 के तहत नोटिस दिया गया है वो उसके अन्तर्गत नही आते.
तेज बहादुर ने बताया कि जवाब देने के बाद जैसे ही हम लोग बाहर आये, शाम 6.15 पर फिर डीएम साहब ने ऑफिस बुलाया और दूसरा नोटिस थमा दिया. इस बार सेक्शन-33 के तहत नोटिस दिया गया. जिसका जवाब देने के लिए दूसरे दिन सुबह 11 बजे तक का समय दिया गया. सेक्शन 33 का मतलब कोई भी सरकार कर्मचारी अगर पांच साल के भीतर बर्खास्त हुआ है तो उसे नामांकन के दौरान ही बर्खास्तगी का सर्टिफिकेट भी चुनाव आयोग से सर्टिफाइड करा कर जमा करना पड़ता है. जो तेज बहादुर ने नहीं किया था. लेकिन इसका जिक्र उसने शपथ पत्र में किया था.
इस सर्टिफिकेट के लिए वाराणसी रिर्टनिंग ऑफिसर ने तेज बहादुर को वैसे तो एक दिन का समय दिया लेकिन व्यवहारिक तौर पर सिर्फ एक घंटे का. सब जानते हैं कि सरकारी दफ्तर शाम पांच बजे बंद हो जाते हैं और सुबह खुलने का कोई टाइम नही होता. ऐसे में क्या कोई जवान, बीएसएफ और चुनाव आयोग से तालमेल बनाते हुए सर्टिफिकेट ला सकता है, वो भी ऐसे माहौल में ?
ये समझने के लिए काफी है कि ये सारी कसरत सिर्फ तेज बहादुर का नामांकन रद्द करने की कागजी साजिश थी. तमाम कोशिशों के बाद नोटिस के टाइम से साढ़े चार घंटे लेट यानी साढ़े तीन बजे चुनाव आयोग ने नोटिस में मांगी गयी जानकारी वाराणसी रिटर्निंग ऑफिसर को मेल की. लेकिन तब तक समय बीत चुका था.
तेज बहादुर यादव और उनके समर्थकों का आरोप है कि जब तक वह निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ रहे थे, तब तक चुनाव आयोग को कोई दिक्कत नहीं थी. लेकिन जैसे उन्हें एसपी की ओर प्रत्याशी बनाया गया, वो बीजेपी की आंखों के किरकिरी बन गए. बीजेपी को ये बर्दाश्त नहीं था कि तेज बहादुर उन्हें सीधी चुनौती दें. पार्टी उन्हें हर कीमत पर चुनावी मैदान से हटाना चाहती थी. दरअसल एसपी-बीएसपी गठबंधन के तौर पर प्रत्याशी बनने के बाद से ही तेज बहादुर चैनल की सुर्खिया बने थे. सोशल मीडिया पर ट्रेंड होने के साथ ही मोदी के मुकाबले सशक्त दावेदार के रुप में उभरने लगे. देश के कोने-कोने से उनके समर्थन में आवाज उठने लगी. और यही बात बीजेपी की कानों में खटक रही थी.
हालांकि समाजवादी पार्टी और खुद तेज बहादुर को इस बात का आभास था कि चुनाव आयोग उनका नामांकन रद्द कर सकता है. इसीलिए समाजवादी पार्टी ने तेज बहादुर को पार्टी सिंबल दिया तो वहीं पूर्व घोषित प्रत्याशी शालिनी यादव से भी पर्चा भरवाया. तेज बहादुर के नामांकन रद्द होने के बाद से रिटर्निंग ऑफिसर सुरेंद्र सिंह एसपी के निशाने पर है. एसपी प्रवक्ता मनोज राय धूपचंडी का आरोप है कि रिटर्निंग ऑफिसर सुरेंद्र सिंह, नरेंद्र मोदी और अमित शाह के इशारे पर काम कर रहे हैं.
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Published: 01 May 2019,10:44 PM IST