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यूपी चुनाव (UP Chunav 2022) के नतीजे आपके सामने हैं. बीजेपी ने एक बार फिर से पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की है. हम भी पश्चिमांचल और रुहेलखंड के रास्ते बंदेलखंड पहुंचे हैं. ये जानने के लिए कि कभी BSP का गढ़ रहा बुंदेलखंड मयावाती से इतना दूर क्यों चला गया? बेरोजगारी, सूखा, आवारा पशुओं जैसी तमाम समस्याओं के बावजूद बुंदेलखंड ने बीजेपी पर ही विश्वास क्यों जताया? यहां हम इन तमाम सवालों के जवाब तलाशेंगे....लेकिन इससे पहले ये देख लेते हैं कि यहां किस पार्टी की क्या स्थिति रही.
दरअसल, बुंदेलखंड में यूपी के 7 जिलें आते हैं. ललितपुर, झांसी, हमीरपुर, जालौन, औरैया, महोबा और चित्रकूट. बुंदेलखंड के इन 7 जिलों में 19 विधानसभा की सीटें हैं. इन 19 सीटों में से बीजेपी ने इस बार 16 सीटों पर कब्जा जमाया है. एसपी 3 सीट जीतनें में कामयाब रही है. साल 2017 की बात करें तो यहां से बीजेपी ने सभी 19 सीटों पर कब्जा जमाया था, लेकिन इस बार उसको 3 सीटों का नुकसान हुआ है.
बुंदेलखंड में बीजेपी को तीन सीटों के साथ वोट शेयर में भी गिरावट आई है. पिछली बार बीजेपी को 46 फीसदी वोट शेयर हासिल हुआ था, लेकिन इस बार 45 फीसदी के करीब ही वोट मिला है. सबसे ज्यादा नुकसान बीएसपी को हुआ है. बुंदेलखंड में बीएसपी साल 2012 में 7 सीटों पर जीती थी. लेकिन, इस बार एक भी सीट उसके हिस्से में नहीं आया है. BSP का वोट शेयर भी घटा है. साल 2017 के चुनाव में बीएसपी का वोट शेयर करीब 22 फीसदी था, जो 12 फीसदी के करीब रह गया है. वहीं, एसपी के वोट शेयर में बढ़ोतरी हुई है. पिछले चुनाव में एसपी का वोट शेयर 16 फीसदी था, जो इस बार 20 फीसदी के पार पहुंच गया है.
बुंदलेखंड में बीजेपी को सबसे बड़ा नुकसान चित्रकूट सदर सीट पर उठाना पड़ा है. यहां से राज्यमंत्री चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय ने अपनी सीट गंवा दी है. एसपी के अनिल प्रधान ने उन्हें 20,294 वोटों के अंतर से हरा दिया. जालौन में भी बीजेपी को एक सीट पर हार का सामना करना पड़ा. जालौन की कालपी सीट, गंठबंधन के मुताबिक निषाद पार्टी को मिली थी. यहां से एसपी के उम्मीदवार विनोद चतुर्वेदी ने निषाद पार्टी के प्रत्याशी छोटे सिंह को 4,627 वोटों के अंतर से शिकस्त दे दी. उधर, बांदा जिले की बबेरू सीट से बीजेपी उम्मीदवार अजय पटेल हार गए. यहां से एसपी उम्मीदवार विशंभर यादव ने 7,036 वोटों से हरा दिया. हालांकि, बीजेपी ने 4 जिलों ललितपुर, झांसी, हमीरपुर और औरैया में क्लीन स्वीप करने में कामयाब रही.
कभी बीएसपी का गढ़ रहा बुंदेलखंड मायावती से काफी दूर जाता दिख रहा है. इस इलाके में मायावती के सोशल इजीनियरिंग का खासा प्रभाव हुआ करता था. इस इलाके में 26 फीसदी दलित वोट बैंक है, 43 फीसदी ओबीसी है और 22 फीसदी समान्य वर्ग है. इसी वोट के जरिए बीएसपी ने बुंदेलखंड की सियासी धरती को उपजाऊ बनाया था. बीएसपी ने दलित, मुस्लिम, ओबीसी और ब्राह्मणों को साधकर कर इस इलाके में अपनी जगह बनाई थी. लेकिन, साल 2017 से बीजेपी ने इस इलाके में घुसपैठ कर ली. बीजेपी ने ठाकुर, ओबीसी, ब्राह्मण और दलितों को अपने साथ जोड़कर बीएसपी को जोर का झटका दिया और सभी 19 सीटों पर भगवा लहरा दिया. हालांकि, इस बार बीजेपी को तीन सीटों का नुकसान झेलना पड़ा है. यहां, एसपी ने पिछले चुनाव के मुकाबले अच्छा प्रदर्शन किया है.
बुंदेलखंड में कांग्रेस का तो हाल बीएसपी से भी बुरा था. कहीं कहीं तो कांग्रेस का पंजा NOTA से संघर्ष करता नजर आया. हालांकि, यूपी विधानसभा चुनाव में बुंदेलखंड को साधने के लिए कांग्रेस ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ा था. कांग्रेस ने यहां अपनी जमीन तैयार करने के लिए वो हर संभव प्रयास किए थे, जो राजनीति में किए जा सकते थे. ललितपुर में खाद किल्लत के दौरान कुछ किसानों की मौत हो गई थी. जिसके बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी खुद यहां आईं थीं, पीड़ित किसान के परिवारों से मिली थीं. कांग्रेस की तरफ से आर्थिक सहायता भी दी गई थी. इतना ही नहीं कुछ किसानों के लिए तो कांग्रेसियों ने खाद तक भिजवाई थी. इतना सब करने के बावजूद बुंदेलियों ने कांग्रेस को नकार दिया.
दरअसल, राजनीति के जानकारों का मानना है कि इस बार के यूपी विधानसभा चुनाव में बीएसपी की दावेदारी ना के बराबर रही. यहां तक की बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने ना कोई रैली की और ना ही कोई जनसभा की. जिससे बीएसपी के कोर वोटर रहे मतदाताओं में एक दुविधा पैदा हो गई. ऐसे में वोटर मान चुके थे कि उनके प्रत्याशी तो चुनाव जीतेंगे नहीं. लिहाजा, वो बीजेपी के साथ आ गए. यहीं कारण रहा कि बीजेपी यहां से 16 सीटों पर कब्जा जमा लिया.
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