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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव नतीजों (UP Assembly Election result 2022) में बीजेपी (BJP) ने शानदार जीत दर्ज की. यूपी की जनता ने जो आदेश दिया है उसने कई राजनेताओं के लिए भविष्य की राह एक तरह से तय कर दी है. इन्हीं में एक नेता हैं पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पोते जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary). जयंत चौधरी के लिए ये चुनाव रिवाइवल का चुनाव था, इसी चुनाव से तय होना था कि जयंत चौधरी की राजनीति का मुस्तकबिल में क्या होने वाला है.
उत्तर प्रदेश में इस बार राष्ट्रीय लोकदल (RLD) के जयंत चौधरी ने एसपी के अखिलेश यादव से हाथ मिलाया था. गठबंधन में जयंत चौधरी के हिस्से 33 सीटें आई जिनमें से उन्होंने 8 सीटों पर जीत दर्ज की और 19 सीटों पर उनकी पार्टी दूसरे नंबर पर रही. आरएलडी को 2022 के विधानसभा चुनाव में 2.85 फीसदी वोट मिले हैं. नतीजों के बाद हालत ऐसी है कि जिस बड़ौत सीट पर जयंत ने वोट डाला वहां भी बीजेपी जीत गई.
अब सवाल है कि आरएलडी के लिए ये नतीजे कैसे हैं, इसका जवाब जानने के लिए हमें पिछले कुछ चुनावों में आरएलडी के प्रदर्शन को खोजना होगा.
यूपी में 2017 के विधानसभा चुनाव में जंयत चौधरी की पार्टी केवल एक सीट जीत पाई थी. जयंत चौधरी की कयादत में आरएलडी का ये पहला चुनाव था और उन्होंने अकेले मैदान में उतरने का फैसला किया था. 277 सीटों पर जयंत चौधरी ने उम्मीदवार उतारे लेकिन 266 सीटों पर उनके कैंडिडेट्स की जमानत जब्त हो गई और पार्टी को कुल मिलाकर पूरे प्रदेश से 1.7 प्रतिशत वोट मिले.
थोड़ा और पीछे चलें तो देखेंगे कि यूपी में आरएलडी ने 2012 के विधानसभा चुनाव में 46 सीटों पर चुनाव लड़ा और 9 सीटों पर जीत दर्ज की. इस चुनाव में आरएलडी को 2.33 फीसदी वोट मिले थे.
2007 में आरएलडी ने 254 सीटों पर चुनाव लड़ा और 10 सीटें जीती. जबकि 2002 में आरएलडी को 14 सीटों पर जीत मिली थी.
जब हम उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे देखते हैं तो लगता है कि गठबंधन बुरी तरह हार गया और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने 136 में से 93 सीटें जीत लीं. लेकिन इसमें आरएलडी को भी 8 सीटें हासिल हुईं, जो अगर किसान आंदोलन ना होता और ये माहौल ना बनता तो शायद मुश्किल था. इसीलिए जो भी मिला है उसके लिए जयंत को किसानों का कर्जदार तो होना ही चाहिए.
जयंत चौधरी अपने दादा और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की विरासत को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं जो उनके पिता अजीत सिंह से होते हुए जयंत तक पहुंची है. 2017 के विधानसभा चुनाव में जब पार्टी राजनीतिक तौर पर बिल्कुल हाशिये पर चली गई तो बड़ा सवाल था कि पार्टी का भविष्य क्या होगा. फिर 2019 में कमान पूरे तरीके से जयंत के हाथ में आ गई और उन्होंने समाजवादी पार्टी से गठबंधन किया. जिसमें उन्हें उम्मीद के मुताबिक जीत नहीं मिली.
जिस मुसलमान-जाट समीकरण के सहारे आरएलडी हमेशा रही है उसे कुछ हद तक वापस पाने में तो जयंत कामयाब हो गए हैं लेकिन अब उत्तर प्रदेश में समीकरण बदल गए हैं. बीएसपी और कांग्रेस ज्यादा वोट नहीं ले रही हैं, जिसका मतलब है कि आपको जाट-मुस्लिम के फेर से आगे निकलना होगा बाकी जातियों को अगर नहीं जोड़ पाएंगे तो जमीन बचा पाना बड़ा मुश्किल हो जाएगा.
एक चुनौती जयंत के लिए ये भी है कि पार्टी में उनके अलावा अभी भी कोई लीडरशिप नहीं दिखती है, जिस पर उन्हें काम करना होगा.
जो वोट इस बार जयंत चौधरी को मिला है उसको रोक पाना जयंत के लिए आसान नहीं रहेगा क्योंकि इस बार किसान आंदोलन के चलते बीजेपी से नाराजगी थी. और एसपी गठबंधन की सरकार भी नहीं बनी तो कौन जानता है पांच साल में ऊंट किस करवट बैठेगा.
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