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नोएडा: हाथी पाताल में सोता रहा और BJP लूट ले गई दलित वोट, यही बना जीत का कारण

नोएडा, दादरी और जेवर पर BJP ने कब्जा कर लिया है. यहां न तो SP का खाता खुला और न ही पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का

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UP Chunav Noida results 2022: यूपी चुनाव (UP Elections) के नतीजे आ चुके हैं . गौतमबुद्धनगर जिले का चुनाव भी काफी चर्चित था. यहां तीनों सीटों नोएडा, दादरी और जेवर पर बीजेपी ने कब्जा कर लिया है. यहां न तो समाजवादी पार्टी का खाता खुला और न ही पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की पार्टी का.

वैसे तो इस जनपद में बीजेपी की जीत के विश्लेषण में कई कारण सामने आते हैं, जिनकी हम नीचे चर्चा करेंगे, पर एक बड़ा कारण इस जनपद का दलित वोट बसपा से खिसकर बीजेपी के पास आना रहा. मायावती का यह गृहजनपद है और उनका हाथी चुनाव आने तक पाताल में ही सोता रहा, मतलब माया प्रचार से दूर बनी रहीं और उधर दलित वोट बीजेपी की ओर मुड़ गया.

आइए जानते हैं गौतमबुद्धनगर की हर एक सीट का क्या रहा रिजल्ट और यहांं आए इन नतीजों की क्या वजह रही.

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किस सीट पर क्या स्थिति

नोएडा

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जीते- पंकज सिंह (BJP), वोट- 244319

  • दूसरे- सुनील चौधरी (SP), वोट- 62806

  • तीसरे- कृपा राम शर्मा (BSP), वोट- 16292

दादरी

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जीते- तेजपाल सिंह नागर (BJP), वोट- 218068

  • दूसरे- राजकुमार भाटी (SP), वोट- 79850

  • तीसरे- मनबीर सिंह (BSP), वोट- 40456

जेवर

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जीते- धीरेंद्र सिंह (BJP), वोट- 117205

  • दूसरे- अवतार सिंह भडाना (RLD), वोट- 60890

  • तीसरे- नरेंद्र कुमार (BSP), वोट- 45256

चलिए एक नजर डालते हैं नोएडा की तीनों विधानसभा सीटों पर कि आखिर यहां बीजेपी ने कैसे बाकी पार्टियों का सूपड़ा साफ कर दिया है. ये पहला मौका है जब जिले में सभी सीटों पर बीजेपी की सीटें निकली हैं.

राजनाथ सिंह का नाम और सोसायटी में रहने वाले लोगों का सपोर्ट

नोएडा सीट से वरिष्ठ बीजेपी नेता राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह ने सूबे में सबसे बड़ी जीतों में से एक हासिल की है. उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी और समाजवादी पार्टी कैंडिडेट को 1 लाख 80 हजार से ज्यादा वोटों से हराया है. पंकज सिंह पिछली बार भी नोएडा से ही विधायक थे. पंकज सिंह ने कहा है कि अगले पांच सालों में शहर को विश्वस्तरीय शहर बनाने के लिए काम करेंगे. लाइट और सड़क जैसी मूलभूत सुविधाएं पहले से शहर में बेहतर हुई हैं, बेशक उसकी वजह अकेले पंकज सिंह नहीं हैं, लेकिन इसका फायदा उन्हें मिला है.

इसके अलावा, दूसरे राज्यों से पलायन करके रोजगार के लिए आई एक बहुत बड़ी आबादी सोसायटीज में रहती है, जिनमें ज्यादातर अपर कास्ट के लोग हैं. जिनका वोट सीधे-सीधे पंकज सिंह को मिला है.

दादरी में रहा गुर्जर समुदाय का दबदबा

वहीं दादरी में 2017 में भी तेजपाल सिंह नागर ही विधायक थे. उन्होंने दोबारा यहां से जीत हासिल की है. इतिहास उठाकर देखें तो एकाध बार के अलावा यहां से हमेशा गुर्जर समुदाय का विधायक ही जीता है. तेजपाल सिंह गुर्जर समुदाय से आते हैं. और उन्होंने एक लाख से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की है. हालांकि, पिछले चुनावों में उन्होंने जिस प्रत्याशी को हराया था वो भी गुर्जर समुदाय से ही था, लेकिन तेजपाल सिंह को BJP लहर के एक्स्ट्रा पॉइंट मिले थे.

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कैसा असर रहा गोरक्षा के मुद्दे का?

दादरी 2015 से ही देश-विदेश में चर्चा का विषय बना हुआ था. यहां अखलाक नाम के एक शख्स की भीड़ ने हत्या कर दी थी. हालांकि, तब प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी, लेकिन केंद्र में बीजेपी सरकार आ चुकी थी. दादरी में अखलाक की लिंचिंग के बाद से ही देशभर में गाय के नाम पर लिंचिग की घटनाएं शुरू हुई थीं. दक्षिणपंथी संगठनों ने गोरक्षा का मुद्दा जमकर उठाया था. यानी यहां गुर्जर समुदाय की बहुलता और दक्षिणपंथियों के गोरक्षा मुद्दे पर मुखर होने का फायदा सीधे-सीधे बीजेपी को मिला है.

जेवर एयरपोर्ट से थी पश्चिमी यूपी को साधने की तैयारी काम आई

जेवर एयरपोर्ट का पिछले साल ही उद्घाटन हुआ है. यहां से 2024 लोकसभा चुनावों के पहले ही उड़ानें भी शुरू की जाने की संभावना है. ये क्षेत्र किसानों के दबदबे वाला क्षेत्र माना जाता है. हालांकि, किसान बिलों की वजह से किसान बीजेपी से नाराज जरूर थे, लेकिन जेवर एयरपोर्ट से मिलने वाले आर्थिक फायदों से भी इनकार नहीं किया जा सकता है. यहां इस एयरपोर्ट के आने की वजह से नए तरह से रोजगारों और उद्योगों को फायदा मिलेगा. जिससे विकास को गति मिलेगी. एक ये भी वजह रही इस इलाके में बीजेपी के जीतने की, न सिर्फ जेवर मे बल्कि नोएडा और दादरी में भी.

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कृषि कानूनों की वापसी का फायदा पहुंचा बीजेपी को

दादरी, जेवर जैसे इलाके दिल्ली से सटे होने की वजह से किसान आंदोलनों को बहुत नजदीक से देखने वाले इलाके रहे. चूंकि यहां किसानों का दबदबा है और कृषि बिलों पर सरकार के बैकफुट पर जाते ही किसानों के मन में बीजेपी को लेकर जो नाराजगी थी, वो कहीं न कहीं कम हुई.

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