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स्कूल में अपराध-कॉलेज में गुंडा टैक्स: जौनपुर के बाहुबली धनंजय सिंह की कहानी

UP Elections 2022: पिछली बार मुलायम की एक रैली ने हराया, क्या अब 13 साल बाद चुनाव जीत पाएंगे Dhananjay Singh

क्विंट हिंदी
उत्तर प्रदेश चुनाव
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Uttar Pradesh Election 2022 News In Hindi

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UP Elections 2022: साल 1998 की बात है... एक बाहुबली माफिया (Bahubali) ने अपनी आपराधिक करतूतों के बल पर यूपी (UP) के लखनऊ से जौनपुर तक के इलाके में हलचल मचा रखी है. कई सारे मामलों में वांछित इस बाहुबली पर 50 हजार रुपए का इनाम है. पुलिस को कहीं से खबर लगी कि वह भदोही- मिर्जापुर रोड पर बने एक पेट्रोल पंप पर डकैती डालने आने वाला है. पुलिस ने उसे ढेर करने के पूरे प्लान के साथ नाकाबंदी की. मुठभेड़ हुई और उस बाहुबली माफिया सहित चार लोगों को छलनी कर दिया. अगले दिन अखबारों की सुर्खियों में उस बाहुबली के एनकाउंटर की खबर छाई रही.

यह था फेमस भदोही एनकाउंटर, जो बाद में भदोही फेक एनकाउंटर के नाम से फेमस हुआ और इस एनकाउंटर ने यूपी के इस बाहुबली माफिया के कदमों को अपराध की दुनिया से उठाकर राजनीति जगत में जमाने के लिए जरूरी जमीन देने का काम किया. क्योंकि वह बाहुबली इस एनकाउंटर के कुछ महीनों बाद सबके सामने जिंदा आकर पेश हो गया, और वहीं से रॉबिनहुड बनने का सफर उसने शुरू किया. इस बाहुबली माफिया का नाम था धनंजय सिंह (Dhananjay Singh), जिसने अपराध की दुनिया की पगडंडी पर चलते हुए देश की सर्वोच्च पंचायत यानी लोकसभा तक की चौखट तक का रास्ता तय किया. बाद में इस फेक एनकाउंटर में शामिल तीन दर्जन पुलिसकर्मियों पर केस तो दर्ज हुए पर इसने धनंजय को राजनीति जमाने लायक आवश्यक सुर्खियां जरूर दे दी थीं.

जौनपुर जिले में दबंग छवि रखने वाले धनंजय सिंह जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर मल्हनी सीट से विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. ढेर सारे आपराधिक मामलों में वांछित हैं, धनंजय को पुलिस रिकॉर्ड में भगोड़ा बताया गया था. पर अब उनके मामलों में जमानत की धारा जोड़ दी गई हैं तो वह अपने चुनाव प्रचार को खुलकर अंजाम दे पा रहे हैं. धनंजय पर इस समय 10 मुकदमे विचाराधीन हैं इनमें से 8 मुकदमे तो जौनपुर की अदालतों में ही चल रहे हैं.

स्कूल जीवन से ही अपराध

धनंजय सिंह का जन्म कोलकाता में हुआ था, लेकिन कुछ समय बाद उनका परिवार यूपी के जौनपुर में आकर बस गया. धनंजय ने अपने स्कूल जीवन से ही अपराध शुरू कर दिए थे. हाई स्कूल की पढ़ाई के दौरान उन पर अपने एक शिक्षक और एक सहपाठी छात्र की हत्या के आरोप लगे. 12वीं की परीक्षा तो उन्होंने पुलिस हिरासत में दी. इसके बाद जब वह लखनऊ यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने गए तो वहां चाकूबाजी, फायरिंग आदि मामलों में उनका नाम उछलने लगा. उन्होंने वहां ठाकुरों का गुट बनाकर यूनिवर्सिटी में दबंगई शुरू कर दी. दयाशंकर सिंह, बबलू सिंह और अभय सिंह जैसे नामी बदमाशों को साथ लेकर धनंजय ने ग्रुप बनाया. अपराधों को अंजाम देने के साथ-साथ वह छात्र राजनीति में भी हावी होने लगे.

रेलवे के ठेकों में माफियागिरी

यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान ही धनंजय ने रेलवे के ठेकों में माफियागिरी शुरू कर दी थी. यह उनका टेरर टैक्स का धंधा था. रेलवे में नीलाम होने वाले स्क्रैप के दाम को धनंजय का ग्रुप अपने हिसाब से मैनेज करवाता था और बदले में गुंडा टैक्स लेता था. अपने ठाकुर गुट के साथी अभय सिंह के साथ मिलकर धनंजय ने इस धंधे में अच्छी पकड़ बना ली. वसूली से खूब राशि आने लगी. इसी बीच धनंजय पर एक इंजीनियर को गोली मारने का मामला लद गया और पुलिस ने उन पर 50 हजार का इनाम घोषित कर दिया.

इसके बाद धनंजय फरार हो गए. तब तक उन पर हत्या, डकैती जैसे 12 मुकदमे दर्ज हो चुके थे. धनंजय के फरार होने के बाद उनके साथी अभय सिंह के पास रेलवे से वसूली के धंधे का पूरा कंट्रोल आ गया. यहीं से गुंडा टैक्स में वसूली को लेकर दोनों के बीच दरार आना शुरू हो गई.

ऐसे शुरू हुई राजनीति

अपराध की दुनिया में तेजी से आगे बढ़ रहे धनंजय के मन में पॉलिटिकल महत्वाकांक्षा तो थी ही, फेमस भदोही एनकाउंटर के बाद से ही कई नेता उसे संरक्षण देने लगे थे. उसे अपराध की कालिख छिपाने के लिए नेताओं की सफेद पोशाक पहनने की काफी जल्दी थी. अपनी इच्छा साकार करने का मौका उसे 2002 में मिला, जब जौनपुर में विनोद नाटे नाम के एक दबंग बाहुबली नेता की रोड एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई.

इस मौके को धनंजय ने तत्काल भुनाया और नाटे को गुरु बताकर तत्कालीन रारी विधानसभा (अब मल्हनी) चुनाव से निर्दलीय विधायक के तौर पर मैदान में उतर गए. नाटे की शहादत से उपजी सहानुभूति लहर में धनंजय को जीत भी मिल गई. यहीं से धनंजय की बाहुबली राजनीति शुरू हुई. विधायक बनने के बाद भी उनकी माफियागिरी निरंतर चलती रही. उन पर गोलीबारी भी हुई.
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मायावती से जुड़ना और बर्खास्तगी

साल 2007 में धनंजय ने निषाद पार्टी के टिकट से चुनाव लड़ा और फिर जीत हासिल की. इसके 1 साल बाद ही 2000 में धनंजय ने मायावती का दामन थामकर बीएसपी ज्वाइन कर ली. बहनजी ने उन्हें जौनपुर लोकसभा से 2009 के चुनावों में टिकट भी दिया. लगातार तीसरा चुनाव जीतकर धनंजय ने संसद की सीढ़ियां चढ़ लीं. धनंजय ने इस बार लगातार तीसरा चुनाव तो जीता पर 2009 की यह जीत उनके राजनीतिक जीवन की आखिरी जीत साबित हुई. हालांकि इसके बाद भी धनंजय ने चुनाव लड़ना छोड़ा नहीं. 2011 में वह बीएसपी से निष्कासित कर दिए गए.

2012 में जब उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुआ तो धनंजय ने अपनी उस समय की पत्नी जागृति सिंह को मल्हनी सीट से उतारा, लेकिन एसपी के उम्मीदवार पारसनाथ यादव से वह हार गईं. इसके बाद जागृति और धनंजय दोनों मुश्किलों में घिरे तथा एक हत्या मामले में दोनों को जेल जाना पड़ा. राजनीतिक जीवन में गड़बड़ियां आईं तो पारिवारिक जीवन भी बिखरने लगा तथा धनंजय का जागृति से तलाक हो गया.

मुलायम ने तोड़ी उम्मीद

2017 का चुनाव तो धनंजय का खासा चर्चित रहा था. इस बार भी वह अपने गढ़ जौनपुर जिले की मल्हनी सीट से ही लड़ रहे थे. माहौल भी उनके पक्ष में था और जीत की काफी उम्मीद व्यक्त की जा रही थी, लेकिन तब मुलायम सिंह के एक कदम ने उनकी जीत की उम्मीद तोड़ दी और एक बार फिर धनंजय को हारना पड़ा. हुआ यूं कि उस साल समाजवादी कुनबे में कलह चल रही थी तो मुलायम सिंह यादव अपने बेटे अखिलेश यादव के नेतृत्व में लड़े जा रहे चुनाव में कहीं प्रचार करने नहीं जा रहे थे. मल्हनी सीट से धनंजय के खिलाफ एसपी के पारसनाथ यादव उम्मीदवार थे, जो धनंजय की पत्नी को पिछले चुनाव में हरा चुके थे.

पता नहीं क्यों मुलायम सिंह यादव की पारसनाथ पर विशेष कृपा हुई और पूरे यूपी में केवल एक दो सीटों जिनमें मल्हनी भी शामिल थी, पर सभा लेने मुलायम सिंह यादव धमक बैठे. उन्होंने मंच से जैसे ही एसपी के पारसनाथ यादव से अपने खास रिश्ते का जिक्र करके वोट मांगे, इस सीट की फिजां बदल गई और धनंजय की किस्मत में एक बार फिर हार आकर बैठ गई.

परंपरागत सीट से ही ठोक रहे ताल

आखिरी चुनाव धनंजय सिंह ने साल 2020 में मल्हनी सीट से ही लड़ा था. उस साल पारसनाथ यादव की मृत्यु के बाद यहां उपचुनाव हुआ. एसपी ने यहां से पारसनाथ के बेटे लकी यादव को उतारा. धनंजय और लकी में तगड़ी टक्कर हुई लेकिन अपने पिता की मौत से उपजी सहानुभूति लहर का फायदा लकी यादव ले गए तथा धनंजय की किस्मत में एक बार फिर हार लिखना तय हो गया. इस सब के बावजूद धनंजय ने हार नहीं मानी है और उत्तर प्रदेश चुनाव 2022 में वह जेडीयू के टिकट पर अपनी परंपरागत सीट मल्हनी से ताल ठोक रहे हैं. देखना होगा कि इस बार इस बाहुबली नेता की किस्मत उसे 13 साल बाद फिर से जीत नसीब कराती है या नहीं?

कैसी है निजी जिंदगी?

धनंजय सिंह की तीन शादियां हुई हैं. पहली पत्नी मीनू सिंह की मौत शादी के 9 महीने बाद ही हो गई थी. इसके बाद धनंजय की जागृति सिंह से दूसरी शादी हुई. बाद में दोनों का तलाक हो गया. साल 2017 में धनंजय की तीसरी शादी दक्षिण भारत के एक कारोबारी की बेटी श्रीकला रेड्डी से हुई. दौलत के मामले में भी धनंजय सिंह बहुत आगे हैं. उनकी अचल संपत्ति 5 करोड़ 31 लाख रुपए है, तो वहीं पत्नी की अचल संपत्ति 7 करोड़ 80 लाख है. चल संपत्ति की बात करें हैं तो धनंजय के पास तीन करोड़ 56 लाख रुपए और पत्नी श्री कला के पास 6 करोड़ 71 लाख रुपए की राशि मौजूद है. इसके अलावा कई सारी महंगी लग्जरी गाड़ियां और सोने चांदी के गहने भी उनके पास हैं. धनंजय चावल मिल, पेट्रोल पंप, कृषि भूमि आदि के भी मालिक हैं.

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