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आबादी के लिहाज से उत्तर प्रदेश (Utter Pradesh) देश का सबसे बड़ा सूबा है. विधानसभा चुनाव के परिणामों पर सबकी निगाहें थीं और एक बार फिर बीजेपी ने यहां जीत हासिल की है. 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और एसपी दोनों ही पार्टियों ने जातीय आधार वाले छोटे-छोटे दलों के साथ गठबंधन किया. उत्तर प्रदेश की सियासत में इन छोटे दलों की बड़ी भूमिका रही है.
विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने राष्ट्रीय लोक दल, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, महान दल, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनवादी पार्टी, अपना दल (कमेरावादी), गोंडवाना पार्टी और कांशीराम बहुजन मूल निवास पार्टी जैसे कई छोटे दलों के साथ गठबंधन किया.
एसपी ने गठबंधन में शामिल दलों को सिर्फ 55 सीटें दीं. इसमें राष्ट्रीय लोकदल को 33, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को 18 और अपना दल (कमेरावादी) को चार सीटें दी गईं. एसपी ने सबसे ज्यादा 348 सीटों पर अपने सिंबल पर प्रत्याशी उतारे थे.
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की बात करें तो राजभर समाज के वोटों के दम पर पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर 2017 के पहले दो बार किस्मत आजमा चुके थे, लेकिन पार्टी का खाता नहीं खुला था. ओमप्रकाश राजभर भी चुनाव में हार गए थे.
इस बार सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया. एसपी के साथ गठबंधन में सुभासपा को 18 सीटें मिलीं. इसमें जहूराबाद, शिवपुर, जखनियां, रसड़ा, बेल्थरारोड, सलेमपुर, रामकोला, खड्डा, महाराजगंज सदर, घनघटा, शोहरतगढ़, महादेवा, संडीला, मिश्रिख, मेहनगर, जफराबाद, अजगरा और मऊ सदर सीटें शामिल हैं. पार्टी बहुत ज्यादा सीटों पर बढ़त नहीं बना पाई है. अभी तक 3 तीनों पर ही राजभर की पार्टी को बढ़त मिली है.
ओमप्रकाश राजभर खुद गाजीपुर के जहूराबाद सीट से चुनावी मैदान में हैं. साल 2017 में ओम प्रकाश राजभर गाजीपुर की जहूराबाद सीट से 2017 में चुनाव जीते थे. तब उनकी पार्टी ने बीजेपी के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ा था. उन्हें 18,000 से अधिक वोटों से जीत मिली थी लेकिन इस बार जहूराबाद सीट पर ओम प्रकाश राजभर, बीजेपी उम्मीदवार कालीचरण राजभर और बीएसपी उम्मीदवार शादाब फातिमा के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है.
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए एसपी और आरएलडी के बीच गठबंधन हुआ. एसपी और आरएलडी 2017 में भी साथ आए थे. लेकिन इस बार के चुनावों की खास बात ये थी कि किसान आंदोलन के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में परिस्थितियां तेजी से बदलीं और चूंकि जाट वोटों पर आरएलडी का दावा हमेशा से मजबूत रहा है और किसान आंदोलनों में जाट समुदाय के किसानों की संख्या बहुत ज्यादा रही, इसलिए अखिलेश यादव ने आरएलडी से हाथ मिलाया था.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कम से कम 13 सीटें ऐसी हैं, जहां जाट वोटों की अहमियत सबसे ज्यादा है. किसान आंदोलनों में उत्तर प्रदेश से शामिल ज्यादातर किसान जाट समुदाय से थे और ऐसा कहा गया गया कि ये कथित रूप से बीजेपी से नाराज हैं, इसलिए इसका फायदा आरएलडी और एसपी को मिलेगा. आरएलडी की इनके बीच अच्छी पैठ है. आरएलडी फिलहाल 9 सीटों पर आगे है.
यहां ये भी बता दें कि एसपी और आरएलडी ने 2017 का विधानसभा और लोकसभा उपचुनाव साथ मिलकर लड़ा था.
विधानसभा चुनाव में दोनों के बीच गठबंधन का उद्देश्य पश्चिमी यूपी की महत्वपूर्ण सीटों पर मुस्लिम और जाट वोटों को मजबूत करना था. 2013 में मुजफ्फरनगर में सांप्रदायिक हिंसा के बाद दोनों समुदायों के बीच संबंध तनावपूर्ण थे.
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