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UP चुनाव: आजमगढ़ से आजम के गढ़ तक वो सीटें, जहां BJP कभी नहीं खोल पाई खाता

मोदी-योगी की लहर के बीच भी यूपी कई सीटें ऐसी रहीं जहां से बीजेपी को कभी नसीब नहीं हुई जीत.

स्मिता चंद
उत्तर प्रदेश चुनाव
Published:
<div class="paragraphs"><p>बीजेपी को दलित समुदाय तक अपनी पहुंच बनाने में ज्यादा सफलता नहीं मिली है</p></div>
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बीजेपी को दलित समुदाय तक अपनी पहुंच बनाने में ज्यादा सफलता नहीं मिली है

(Photo: The Quint)

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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election) के सात चरणों का मतदान हो चुका है. उम्मीदवारों की किस्मत अब EVM में कैद हो गई है और 10 मार्च को जनता का फैसला लोगों के सामने होगा. फिलहाल एग्जिट पोल बता रहे हैं कि योगी सरकार की वापसी हो रही है. 2017 के चुनाव में बीजेपी को 300 से ज्यादा सीटों पर जीत मिली थी, लेकिन यूपी की कुछ ऐसी सीटें भी हैं, जहां बीजेपी को कभी जीत नसीब नहीं हुई. इनमें आजमगढ़ जिले की आठ विधानसभा सीटों से लेकर आजम खान के गढ़ रामपुर तक की कई सीटें शामिल हैं.

बीजेपी को ऐसी सीटों पर जीत का अभी भी इंतजार है, इसलिए उसने इन सीटों पर पूरी जान लगा दी है, अब नतीजे बताएंगे क्या इन सीटों पर बीजेपी का खाता खुलेगा? हम आपको बता रहे हैं उन सीटों के बारे में जो बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती रही हैं.

गोरखपुर की चिल्लूपार सीट

गोरखपुर भले ही बीजेपी का गढ़ माना जाता हो, लेकिन यहां की चिल्लूपार सीट ऐसी सीट है, जहां बीजेपी का अब तक खाता नहीं खुला. 2017 के विधानसभा चुनाव में 9 में से 8 सीटें बीजेपी ने जीती थी, लेकिन चिल्लूपार की सीट बीएसपी के खाते में गई. यहां से हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय शंकर तिवारी को उतारा गया था.

पिछले तीन चुनावों से ये सीट बीएसपी के नाम रही है, इस बार हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय शंकर बीएसपी का दामन छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हो चुके हैं. बीजेपी की तरफ से राजेश त्रिपाठी मैदान में हैं.

देवरिया की भाटपाररानी विधानसभा सीट

देवरिया की भाटपाररानी विधानसभा सीट समाजवादी पार्टी का गढ़ मानी जाती है. पूर्व मंत्री कामेश्‍वर उपाध्‍याय इस सीट से पांच बार विधायक चुने गए. 2013 में उनके निधन के बाद उनके बेटे आशुतोष उपाध्‍याय इस सीट से विधायक बने. इस सीट से अभी तक बीजेपी का खाता भी नहीं खुला. 2017 के चुनाव में समाजवादी पार्टी की सीट से उम्मीदवार आशुतोष उपाध्‍याय को 61862 वोट मिले थे.

उन्‍होंने बीजेपी के जयंत कुशवाहा उर्फ गुड्डन को 11 हजार से अधिक वोटों से हराया था. भाटपाररानी सीट पर एसपी पांच बार, कांग्रेस चार बार, जनता दल दो बार, संयुक्‍त सोशलिस्‍ट पार्टी, जनता पार्टी, जनता पार्टी सेकुलर एक-एक बार यहां से जीत चुकी हैं, लेकिन बीजेपी का अभी तक खाता भी नहीं खुला है.

समाजवादी पार्टी का गढ़ आजमगढ़

पूर्वांचल का जिला आजमगढ़ समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता है.. अखिलेश यादव यहां से सांसद है. 2017 के विधानसभा चुनाव में भी समाजवादी पार्टी का इस जिले पर दबदबा रहा. आजमगढ़ जिले की कुल 10 सीटों में आठ सीटें आजमगढ़ सदर, गोपालपुर, सगड़ी, मुबारकपुर, अतरौलिया, निजामाबाद और दीदारगंज और मऊ सदर ऐसी हैं, जहां आज तक बीजेपी को कामयाबी नहीं मिली है. 2017 में यहां की 10 विधानसभा सीटों में से 5 सीट समाजवादी, 4 सीट बीएसपी और सिर्फ एक सीट बीजेपी के खाते में आ पाई थी.

गोपालपुर विधानसभा सीट

गोपालपुर विधानसभा सीट पर बीजेपी का आज तक खाता नहीं खुला है. 30 सालों में 20 साल इस सीट पर समाजवादी पार्टी का कब्जा रहा. 1996, 2002 और 2012 में समाजवादी पार्टी से वसीम अहमद जीते थे. कांग्रेस को भी यहां तीन बार जीत मिली, वहीं बीएसपी दो बार जीती है.

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सगड़ी विधानसभा सीट

आजमगढ़ की सगड़ी विधानसभा सीट पर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच जंग चलती रही है. इस सीट से तीन बार समाजवादी पार्टी और चार बार बीएसपी जीती है. 2017 में बीएसपी की वंदना सिंह जीती थीं. 2012 से पहले तक ये सीट सामान्‍य थी, परिसीमन के बाद इसे अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया.

मुबारकपुर विधानसभा सीट

मुबारकपुर सीट पर 1996 से लगातार बीएसपी का कब्जा रहा है. 2017 में भी बहुजन समाज पार्टी ने इस सीट से जीत दर्ज की थी. पिछले दो बार से शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली जीत रहे हैं.

अतरौलिया

अतरौलिया विधानसभा सीट को भी समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता है. एसपी के वरिष्ठ नेता और पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे बलराम यादव यहां से पांच बार विधायक रह चुके हैं. फिलहाल उनके बेटे संग्राम यादव यहां से विधायक हैं. 2007 के चुनाव में बीएसपी के सुरेंद्र प्रसाद मिश्र ने बलराम यादव को हराया था. 2012 के चुनाव में बलराम यादव के बेटे संग्राम यादव जीते और एक बार फिर 2017 के चुनाव में भी उनको जीत मिली.

निजामाबाद विधानसभा 

निजामाबाद विधानसभा सीट पर भी सालों से समाजवादी पार्टी का कब्जा रहा है, समाजवादी पार्टी के आलम बदी यहां से विधायक हैं. 1996 से लगातार इस सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं. इस सीट से भी बीजेपी को अभी तक निराशा ही मिली है.

दीदारगंज विधानसभा चुनाव

आजमगढ़ की दीदारगंज विधानसभा सीट 2008 के परिसीमन के बाद अस्‍तित्‍व में आई. 2012 के विधानसभा चुनाव में यहां से समाजवादी पार्टी के आदिल शेख जीते थे, तो वहीं 2017 में बीएसपी नेता और पूर्व विधानसभा अध्‍यक्ष सुखदेव राजभर यहां से जीतकर पांचवीं बार विधानसभा पहुंचे थे. पिछले साल ही उनका निधन हो गया था.

जौनपुर की मछली शहर विधानसभा सीट

मछली शहर विधानसभा सीट भी हमेशा बीजेपी से दूर ही रही है, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का इस सीट पर कब्जा रहा है. 2017 के चुनाव में समाजवादी पार्टी के जगदीश सोनकर यहां से जीते थे. इसे पहले 2012 के विधानसभा चुनाव में जगदीश सोनकर समाजवादी पार्टी की सीट से जीते थे. इस सीट पर 1957 से लेकर 2017 तक एक भी बार बीजेपी नहीं जीत सकी है.

आजम खान की रामपुर सीट

आजम खान की परंपरागत सीट रामपुर भी बीजेपी के लिए दूर की कौढ़ी बनी हुई है. यहां से आजम खान आठ बार चुनाव जीत चुके हैं. इस बार के चुनाव में भी कई विशेषज्ञों की निगाहें रामपुर पर हैं, इसकी वजह भी सपा नेता आजम खां ही हैं, जो जेल में बंद हैं और जेल से ही उन्होंने इस बार का चुनाव लड़ा है. उनका मुकाबला भाजपा के आकाश सक्सेना से है. देखना है कि इस बार भाजपा आजम के इस गढ़ को भेद पाएगी या नहीं.

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