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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election) के आखिरी चरण में मिर्जापुर जिले में वोटिंग है. मिर्जापुर नाम से आपको वेब सीरीज 'मिर्जापुर' की याद नहीं आती जिसके हर डायलॉग में बोला गया शब्द 'भौकाल' शब्द हर किसी के जुबान पर चढ़ गया था. भौकाल यानी जलवा, ऐसा ही जलवा इस जिले का और यहां की राजनीति का. यहीं के कमलापति त्रिपाठी यूपी के सीएम बने और यहीं से राजनीति शुरू करने वाले राजनाथ सिंह पहले यूपी सीएम और फिर देश के गृहमंत्री बने. यहां के हाथ से कालीन बुनने वाले बाल मजदूरों को मुक्ति दिलाने के अभियान ने कैलाश सत्यार्थी को नोबेल पुरस्कार दिलाया था और इसी जिले ने चम्बल की दस्यु सुंदरी फूलन देवी को संसद की सीढ़ियां चढ़वाई थीं. पिछले चुनाव में इस जिले की पांचों विधानसभा सीटों पर कब्जा जमाने वाली बीजेपी दोबारा जीत के लिए जान लगा रही हैं, बीजेपी के कई बड़े नेता मिर्जापुर में नजर आ रहे हैं.
धार्मिक नगरी मिर्जापुर का अपना महत्व है, मिर्जापुर में विंध्यवासिनी देवी के दरबार में हाजिरी लगाने वाले भक्तों में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे नेता शामिल रहे हैं. वर्तमान समय में भी अमित शाह, राजनाथ सिंह, योगी आदित्यनाथ जैसे कई दिग्गज अक्सर मंदिर में दर्शन के लिए जाते रहे हैं. यही नहीं गांधी परिवार की भी इस मंदिर को लेकर श्रद्धा रही है, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लेकर, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी भी विंध्यवासिनी देवी के दर्शन के लिए जाते रहे हैं.
मिर्जापुर की पांचों विधानसभा सीटों में सबसे ज्यादा चर्चित मिर्जापुर नगर विधानसभा सीट है. राजनाथ सिंह पहली बार 1977 में इसी सीट से विधायक चुने गए थे, जो प्रदेश के मुख्यमंत्री से लेकर रक्षामंत्री तक बने. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के रत्नाकर मिश्र ने इस सीट पर समाजवादी पार्टी के कैलाश चौरसिया को 57412 वोटों के अंतर से हराकर जीत दर्ज की थी, जो इस सीट पर हुए कुल वोटों का 25.49 फीसदी था. 2017 में इस सीट पर बीजेपी का वोट शेयर 48.48 फीसदी था.
इससे पहले 2012 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर समाजवादी पार्टी का कब्जा था. एसपी के कैलाश नाथ चौरसिया ने इस सीट पर बीएसपी के रंग नाथ मिश्रा को 22299 वोटों से हराया था. 2012 में इस सीट पर समाजवादी पार्टी का 36.51 फीसदी वोट शेयर था.
मिर्जापुर की छानबे विधानसभा सीट पर 2017 में बीजेपी की सहयोगी अपना दल ने जीत दर्ज की थी. अपना दल के राहुल प्रकाश ने बहुजन समाज पार्टी के धनेश्वर को 63468 वोटों से हराकर इस सीट को अपने नाम किया था.
यह विधानसभा सीट अनुसूचित जाति जनजाति के लिए सुरक्षित है, छानवे आदिवासी, कोल, बाहुल्य इलाका है, इसका ज्यादातर हिस्सा पिछड़ा है.
अगर 2012 के विधानसभा के नतीजों के बीत करें ते इस सीट से समाजवादी पार्टी के भाई लाल कोल ने जीत दर्ज की थी, समाजवादी पार्टी के लिए इस सीट से ये पहली जीत थी.
मिर्जापुर की मझवां विधानसभा सीट कभी अनूसूचित जाति के लिए आरक्षित हुआ करती थी. लेकिन 1974 के बाद से ये सामान्य हो गई. इस सीट से कई दिग्गजों ने अपनी किस्मत आजमाई है, जिसमें लोकपति त्रिपाठी, रूद्र प्रसाद और भागवत पाल शामिल हैं.
2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की शुचिस्मिता मौर्या ने बीएसपी के रमेश बिंद को 41 हजार वोटों से हराया था. इस विधानसभा सीट पर लगातार तीन बार बीएसपी का कब्जा रहा है. तीनों बार डॉ रमेश बिन्द यंहा से विधायक बनें. बाद में डॉ रमेश बिंद बीजेपी में शामिल हुए और फिलहाल वो भदोही जिले से बीजेपी सांसद हैं.
इस क्षेत्र में ब्राह्मण और मौर्या मतदाताओं की तादाद ज्यादा है. वहीं दलित भी मझवां सीट पर अहम भूमिका निभाते हैं.
चुनार विधानसभा सीट बीजेपी का गढ़ माना जाता है, इस सीट पर एक ही परिवार का दबदबा रहा है. इस सीट से पूर्व सिंचाई मंत्री ओम प्रकाश सिंह सात बार विधायक बने. 2017 के विधानसभा चुनाव बीजेपी ने इस सीट को अपने कब्जे में कर लिया था. बीजेपी ने ओमप्रकाश सिंह के बेटे अनुराग सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया उन्होंने एसपी के जगदम्बा सिंह पटेल को शिकस्त देकर यह सीट हासिल की थी.
वहीं 2012 के विधानसभा चुनाव में जगदंबा सिंह समाजवादी पार्टी के टिकट पर जीते थे. 2007 के विधानसभा चुनाव में ओम प्रकाश सिंह भारतीय जनता पार्टी से जीते थे. चुनार विधानसभा में 1 लाख 20 हजार कुर्मी, 42 हजार दलित, 30 हजार मुस्लिम, 32 हजार बियार, 35 हजार यादव, 25 हजार ब्राह्मण और 15 हजार क्षत्रिय वोटर्स हैं.
मड़िहान विधानसभा पटेल बहुल क्षेत्र है, चुनाव में यहां SC-ST की भी अहम भूमिका रहती है, 2012 में ये सीट कांग्रेस के कब्जे में थी तो 2017 में बीजेपी (BJP) के रमाशंकर सिंह ने 106517 वोटों से कांग्रेस के ललितेशपति त्रिपाठी को हराया था. वहीं बीएसपी के अवधेश कुमार 52782 मतों के साथ तीसरे स्थान पर रहे थे.
ये विधानसभा सीट परिसीमन के बाद पहली बार 2008 में अस्तित्व में आई और 2012 में पहली बार चुनाव हुआ, जिसमें कांग्रेस के पंडित ललितेश पति त्रिपाठी जीते थे. ललितेश ने समाजवादी पार्टी के सत्येंद्र कुमार पटेल को हराया था.
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