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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly elections) से पहले सूबे की राजनीति जोड़-तोड़ और गठबंधन के सभी समीकरण को आजमाने में लगी है. इसी को आगे बढ़ाते हुए समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने 16 दिसंबर को अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव (Shivpal Singh Yadav) से मुलाकात की और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के साथ गठबंधन की घोषणा की.
समाजवादी पार्टी के भीतर नियंत्रण के लिए संघर्ष शुरू होने के लगभग पांच साल बाद दोनों नेताओं के बीच ये पहली औपचारिक, आमने-सामने की बैठक हुई है.
अब तक के तमाम चुनावी सर्वे में अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी यूपी विधानसभा चुनाव में सीएम योगी के नेतृत्व वाली बीजेपी को चुनौती देती नजर आ रही है. ऐसे में अखिलेश यादव 'यादव वोट बैंक' को पूरी तरह अपने पाले में करने के लिए प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) से लेकर गैर-ओबीसी वोटों के लिए सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के साथ गठबंधन का औपचारिक ऐलान कर चुके हैं.
मुलायम सिंह यादव के बाद एसपी पर नियंत्रण के लिए संघर्ष को लेकर शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी से अलग हो गए थे. उन्होंने अपनी नई पार्टी बनाने का ऐलान किया. यहां तक कि प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के अध्यक्ष शिवपाल यादव ने मुलायम सिंह यादव को अपने पक्ष में करने की कोशिश की.
प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) को अपने साथ करके अखिलेश यादव ने यादव वोट बैंक को मजबूती से अपने पाले में करने की कवायद की है. याद रहे कि 2019 लोकसभा में एसपी के अक्षय यादव फिरोजाबाद लोकसभा सीट हार गए क्योंकि शिवपाल यादव की पार्टी ने यादव वोट को बांट दिया था.
21 अक्टूबर को सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) ने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन का ऐलान किया. सुहेलदेव पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर तो यहां तक कह गए कि भले ही उन्हें चुनाव लड़ने के लिए एक भी सीट न मिले, एसपी के साथ गठबंधन होगा.
2019 तक योगी की सरकार में शामिल और बीजेपी के पूर्व सहयोगी राजभर को अपने पाले में करके अखिलेश यादव ने मुख्य रूप से पिछड़ी जातियों को साधने का प्रयास किया है, जो SBSP का आधार मानी जाती हैं और पूर्वी उत्तर प्रदेश की आबादी में 20% से अधिक हिस्सेदारी रखती हैं. राजभर समुदाय राज्य की आबादी का 3% है और इसकी सूबे की लगभग 125 विधानसभा सीटों में उपस्थिति है.
समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल ने 7 दिसंबर को मेरठ में एक रैली में 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए औपचारिक रूप से अपने गठबंधन की घोषणा की.
RLD के दम पर एसपी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों के गुस्से को बीजेपी के खिलाफ वोट में बदलना चाहेगी. खासकर जाट बहुल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में RLD से गठबंधन संजीवनी का काम कर सकता है.
संजय सिंह चौहान की जनवादी सोशलिस्ट पार्टी को बिंद और कश्यप समुदायों के बीच मजबूत ताकत माना जाता है, जो पूर्वी यूपी के एक दर्जन से अधिक जिलों जैसे बलिया, जौनपुर, प्रयागराज में बड़ी संख्या में हैं. जनवादी सोशलिस्ट पार्टी के साथ अखिलेश यादव ने गठबंधन कर बीजेपी और इस क्षेत्र में मजबूत छोटी पार्टियों के गठबंधन को बैलेंस करने की कोशिश की है.
27 अक्टूबर को, जिस दिन अखिलेश और राजभर मऊ में अपनी संयुक्त रैली कर रहे थे, बीजेपी ने घोषणा की थी कि उसे पूर्वी यूपी के सात दलों - भारतीय मानव समाज पार्टी, मुसहर आंदोलन मंच (गरीब पार्टी), शोषित समाज पार्टी, मानवहित पार्टी, भारतीय सुहेलदेव जनता पार्टी, पृथ्वीराज जनशक्ति पार्टी और भारतीय समता समाज पार्टी का समर्थन मिला है.
महान दल पूर्वी यूपी के आंवला, मैनपुरी, एटा, नगीना, बदायूं और जौनपुर सहित पश्चिमी यूपी के एक दर्जन से अधिक लोकसभा क्षेत्रों में "गैर-यादव" ओबीसी जातियों जैसे शाक्य, सैनी, मौर्य और कुशवाहा के बीच प्रभाव का दावा करता है.
अखिलेश इसके साथ गठबंधन कर पहले से ही यादव वोटों पर पकड़ दावा करती एसपी के लिए गैर-यादव" ओबीसी वोटों का जुगाड़ करेंगे.
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