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हिंदुस्तान की आजादी के दस बरस बीत गए थे, 1957 में अमिय चक्रवर्ती की एक फिल्म रिलीज हुई. फिल्म का नाम था- ‘देख कबीरा रोया’. अमिय चक्रवर्ती सिनेमा की बड़ी हस्ती थे. उन्होंने फिल्में लिखने के साथ-साथ फिल्म निर्माण में भी अपना सिक्का जमाया था. 40 और 50 के दशक में उन्हें बड़ा फिल्मकार माना जाता था. उनके खाते में ‘दाग’ और ‘सीमा’ जैसी फिल्में थीं. 1955 में रिलीज हुई फिल्म ‘सीमा’ के लिए तो उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला था.
अमिय चक्रवर्ती को इस बात का श्रेय भी जाता है कि उन्होंने दिलीप कुमार जैसे सशक्त अभिनेता की खोज की और उनके करियर की पहली फिल्म ‘ज्वार भाटा’ बनाई. अमिय चक्रवर्ती का एक परिचय ये भी है कि वो महान सितार वादक भारत रत्न पंडित रविशंकर के दूर के रिश्तेदार भी थे. 1957 में अमिय चक्रवर्ती का सिर्फ 44 साल की उम्र में निधन हो गया. खैर, अमिय चक्रवर्ती की फिल्म ‘देख कबीरा रोया’ पर वापस लौटते हैं.
फिल्म के गाने लता मंगेशकर, तलत महमूद, आशा भोंसले, मोहम्मद रफी और सुधा मलहोत्रा जैसे दिग्गज कलाकारों ने गाए थे, दिक्कत ये थी कि मदन मोहन फिल्म में एक खास गाना मन्ना डे से गवाना चाहते थे. वो गाना था- ‘कौन आया मेरे मन के द्वारे’ ‘कौन आया मेरे मन के द्वारे’ ये गाना अनूप कुमार पर फिल्माया गया था.
चूंकि फिल्म के लगभग सभी गाने शास्त्रीय रागों पर ही आधारित थे, इसलिए मदन मोहन मन्ना डे की आवाज में ये गाना रिकॉर्ड करना चाहते थे. ऐसा भी कहा जाता है कि इस फिल्म से पहले मदन मोहन के बारे में ये बात कही जाती थी कि उनके तैयार किए गए संगीत में ज्यादातर हिट गाने महिला गायकों ने गाए हैं.
ये भी एक पक्ष था कि मदन मोहन की नजर मन्ना डे पर टिक गई थी. इसी फिल्म में मन्ना डे के अलावा मदन मोहन ने तलत महमूद से भी एक गाना गवाया था. जो काफी पसंद किया गया. उस गाने के बोल थे- हमसे आया ना गया.
खैर, मन्ना डे को इस गाने के लिए तैयार करने के लिए मदन मोहन ने कमाल का घूस दिया. हुआ यूं कि एक रोज मदन मोहन ने मन्ना डे को फोन किया और पूछा कि वो क्या कर रहे हैं. मन्ना डे ने जवाब दिया कि कुछ नहीं बस बैठा हूं. इस पर मदन मोहन ने कहा कि मेरे घर आ जा, मैं तुझे मटन भिंडी खिलाता हूं.
मन्ना डे ने चौंकते हुए पूछा कि ये कैसी डिश है मटन के साथ भिंडी. मदन मोहन ने कहा कि मन्ना ये तो आकर और खाकर ही पता चलेगा कि ये कैसी डिश है. मन्ना डे उन दिनों बांद्रा में रहते थे और मदन मोहन पैडर रोड पर.
राग रागेश्री के आधार पर हिंदी फिल्मों में कुछ और भी गीत कंपोज किए गए. इसमें नौशाद साहब का कंपोज गया फिल्म मुगल-ए-आजम का ये गाना बहुत खूबसूरत है. इस गाने को उस्ताद बड़े गुलाम अली खान ने गाया था. बोल थे- शुभ दिन आयो. इसके अलावा भी राग रागेश्री के आधार पर हिंदी फिल्मों में गाने कंपोज किए गए हैं. जिसमें 1953 में रिलीज फिल्म-अनारकली का ‘मोहब्बत ऐसी धड़कन है’, जिसे संगीतकर सी. रामचंद्र ने कंपोज किया था.
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आइए अब आपको राग रागेश्री के शास्त्रीय पक्ष के बारे में बताते हैं. इस राग की उत्पत्ति खमाज थाट से हुई है. इसके आरोह में शुद्ध ‘नी’ और अवरोह में कोमल ‘नी’ का प्रयोग किया जाता है. कुछ जानकार इस राग में सिर्फ कोमल ‘नी’ का ही प्रयोग करते हैं. इस राग के आरोह में ‘रे’ और ‘प’ जबकि अवरोह में सिर्फ ‘प’ नहीं लगाया जाता है.
ऐसे में राग रागेश्री के आरोह में पांच स्वर और अवरोह में छह स्वर लगते हैं. इसलिए इस राग की जाति औडव षाढ़व होती है. इस राग का वादी स्वर ‘ग’ और संवादी ‘नी’ है. इस राग को गाने बजाने का समय रात का दूसरा प्रहर है. ये मालगुंजी और बागेश्वरी से मिलता जुलता राग है. आइए राग रागेश्री का आरोह अवरोह देखते हैं.
( रागगीरी, पत्रकार शिवेंद्र कुमार सिंह और गिरिजेश कुमार की हाल ही प्रकाशित किताब है. प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित इस किताब को हाल ही में रिलीज किया गया. ये किताब हिंदी फिल्मी गानों में शास्त्रीय रागों के इस्तेमाल के रोचक किस्सों पर आधारित है. किताब का एक अंश)
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