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पुण्यतिथि विशेष | मदन मोहन के सदाबहार नगमे... जो अमर हो गए  

मदन मोहन साल 1950 में बतौर संगीतकार फिल्म ‘आंखें’ से फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल हुए

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एक फिल्म स्टूडियो के मालिक का बेटा, एक फौजी, जिसने जंग के मैदान में गोलियां चलाईं, वो बना लेजेंड्री म्यूजिक डायरेक्टर मदन मोहन कोहली. वो अपने मधुर संगीत से आज भी लाखों-करोड़ों दिलों में बसते हैं. भले ही 4 दशक पहले मदन मोहन ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन आज भी उनके रचे संगीत लोग सुनते हैं, तो तन-मन झूम उठता है.

उनका जन्म 25 जून 1924 को बगदाद में हुआ था. उनके पिता रायबहादुर चुन्नीलाल इराकी पुलिस के साथ काम करते थे.बचपन से ही मदन मोहन को संगीत का शौक था और वो अपने घर में रखे ग्रामाफोन पर घंटों संगीत सुना करते थे.

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जैसे ही इराक ने ब्रिटिश राज से आजादी पाई वैसे ही चुन्नीलाल साहब अपने पूरे परिवार के साथ भारत आ गए. और चुन्नी लाल बॉम्बे टाकीज और फिल्मीस्तान जैसे बड़े फिल्म स्डूडियो में पार्टनर बन गए. ऐसा माना जाता है कि मदन मोहन को संगीत की प्रेरणा उनकी मां से मिली.

1943 में पिता के कहने पर मदन मोहन ने सेना में भर्ती होने का फैसला किया और आर्मी जॉइन कर ली, लेकिन उनका दिल संगीत से जुड़ा हुआ था. और पहला मौका मिलते ही उन्होंने फौज की नौकरी छोड़ दी और लखनऊ में आकाशवाणी के लिए काम करने लगे.

यहीं से शुरू हुआ उनके संगीत का सफर. बॉलीवुड में अपने करियर की शुरुआत मदन मोहन ने सहायक संगीतकार के रूप में की. इसके बाद साल 1950 में बतौर संगीतकार फिल्म 'आंखें' से फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल हुए .

1950, 1960 और 1970 के दशक में मदन मोहन ने बॉलीवुड की कई फिल्मों में बतौर म्यूजिक डायरेक्टर काम किया. मोहम्मद रफी, लता मंगेशकर और तलत महमूद जैसे महान गायकों से मोहन ने कई यादगार गाने गंवाए हैं. फिल्म 'दस्तक' के लिए उन्हें नेशनल फिल्म अवॉर्ड (बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर) और 'वीर जारा' के लिए आईफा अवॉर्ड (बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर) मिला है.

मदन मोहन जिंदगी से भरपूर इंसान थे, वो अच्छे गाने बनाने के साथ-साथ अच्छा खाना भी बनाते थे, लेकिन शराब की लत ने उनकी हालत बहुत खराब कर दी थी और 14 जुलाई 1975 को वो इस दुनिया को अलविदा कह गए. उनके निधन के बाद भी वो लोगों के बीच संगीत बिखेरते रहे.

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