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कबीर खान (Kabir Khan) की डायरेक्शन में बनी फिल्म 'चंदू चैंपियन' (Chandu Champion) 14 जून को बड़े पर्दे पर रिलीज हो रही है. इस फिल्म में कार्तिक आर्यन (Kartik Aryan) मुरलीकांत पेटकर (Murlikant Petkar) की भूमिका निभा रहे हैं. पेटकर वह शख्स हैं जिसने पैरालंपिक में भारत को पहली बार स्वर्ण पदक दिलाया था.
लेकिन उनके सफर की शुरूआत कहां से हुई और कहानी के किस कड़ी ने चंदू चैंपियन फिल्म बनाने के लिए प्रोत्साहित किया? यहां आपको बताते हैं.
1972 के समर पैरालंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के साथ मुरलीकांत पेटकर भारत के पहले पैरालंपिक स्वर्ण पदक विजेता बने. 2018 में, पेटकर को पद्म श्री से सम्मानित किया गया था.
मुरलीकांत पेटकर का जन्म 1 नवंबर 1944 को महाराष्ट्र के सांगली के पेठ इस्लामपुर क्षेत्र में हुआ था. वह कम उम्र में पुणे चले गए और भारतीय सेना में शामिल हो गए.
पेटकर क्राफ्ट्समैन रैंक के जवान के तौर पर कॉर्प्स ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स और मैकेनिकल इंजीनियर्स (EME) का हिस्सा थे.
1965 के भारत-पाक युद्ध में कई गोलियां लगने से वह गंभीर रूप से घायल हो गये.
उन्हें नौ गोलियां लगीं. हालांकि कथित तौर पर एक गोली अभी भी उनकी रीढ़ के पास अटकी हुई है और उन्होंने अस्थायी रूप से अपनी याददाश्त खो दी थी.
EME में रहते हुए, पेटकर को 1964 में टोक्यो में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सेवा खेल प्रतियोगिता (International Services Sports Meet) के मुक्केबाजी इवेंट में भारतीय सेना का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला.
ईएमई सिकंदराबाद में उन्होंने बॉक्सिंग जारी रखी और नेशनल के लिए खुद को तैयार करने लगे.
1972 में अपने ऐतिहासिक जीत से पहले भी मुरलीकांत पेटकर ने अंतरराष्ट्रीय खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया था.
1970 में स्कॉटलैंड में आयोजित तीसरे राष्ट्रमंडल पैराप्लेजिक खेलों में, पेटकर ने 50 मीटर फ्रीस्टाइल तैराकी में स्वर्ण, भाला फेंक में रजत और शॉट-पुट में कांस्य पदक जीता.
1972 में जर्मनी में समर पैरालंपिक हुआ. मुरलीकांत पेटकर ने 50 मीटर फ्रीस्टाइल में स्वर्ण पदक जीता.
पेटकर ने यह दूरी 37.331 सेकंड में तैरकर विश्व रिकार्ड भी अपने नाम दर्ज कर लिया.
1982 में अर्जुन पुरस्कार के लिए पेटकर का नाम खारिज कर दिया गया.
बाद में, 2018 में उन्हें राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने पद्मश्री से सम्मानित किया.
पद्मश्री से सम्मानित किए जाने के बाद पेटकर ने न्यूज एजेंसी आईएएनएस से कहा, “मैंने वह सब पीछे छोड़ दिया है. मुझे खुशी है कि सरकार ने आखिरकार मेरी उपलब्धियों को मान्यता दी. मुझे उस वक्त निराशा हुई थी जब सरकार ने विकलांग होने के तर्ज पर मुझे अर्जुन पुरस्कार देने से इनकार कर दिया था.''
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