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लता मंगेशकर जैसी या किसी भी शख्सियत के निधन पर फोन कर प्रतिक्रिया पूछना अजीब है, लेकिन मैं इस बार फिर हिम्मत जुटाकर लेखक, कवि, गीतकार और निर्देशक गुलजार को फोन किया. गुलजार ने लता के साथ लंबे समय तक काम किया. असंख्य गाने और फिल्म 'लेकिन' में दोनों का साथ काम करना कोई कैसे भूल सकता है. 'लेकिन' ने लता ने प्रोड्यूस किया था और गुलजार ने डायरेक्ट. गुलजार साहब के साथ मेरी बातचीत के कुछ अंश ये हैं..
सर, मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि शुरुआत कैसे करूं. क्या मैं आपसे ये कह सकता हूं कि आप जहां से ठीक समझें, वहां से अपनी बात को शुरू करें?
गुलजार: फिल्म इंडस्ट्री के लिए मेरा पहला गाना था, मोरा गोरा अंग लई ले...ये फिल्म 'बंदिनी' का गाना था, जिसे लता मंगेशकर ने गाया था. मैं साहित्यिक लेखक बनना चाहता, लेकिन शैलेंद्र ने काफी जोर दिया कि मैं बिमल दा (बिमल रॉय) के लिए इस गीत के लीरिक्स लिखूं और उनका असिस्टेंट बन जाऊं. उन दिनों लता जी और सचिन दा (एसडी बर्मन) के बीच कुछ गलतफहमियां हो गई थीं. करीब तीन साल तक उन्होंने लता जी से गाना नहीं गवाया, लेकिन जब वो इस गाने की रिकॉर्डिंग के लिए फिल्म सेंटर रिकॉर्डिंग स्टूडियो आईं, तो ऐसा कुछ नहीं दिखा
कि उनके बीच किसी तरह की अनबन हो.
दरअसल, इंडस्ट्री में ये प्रैक्टिस थी कि जब भी लता जी किसी गाने को प्रस्तुत करने वाली होतीं तो बड़े से बड़े कंपोजर्स और गीतकार एक्स्ट्रा कांशस हो जाते कि वो उनके कद के साथ न्याय कर पाएंगे या नहीं.
क्या लता मंगेशकर के अलावा उस दौर में कोई और ऐसा सिंगर था, जिसे आप पसंद करते थे?
गुलजार: मैं फिल्मों का बहुत शौकीन नहीं था. तब रेडियो पर गाने पर गाने सुनता था. उस वक्त कुछ सिंगिंग स्टार्स थे, जिन्हें मैं सुना करता था. सुरैया, उससे पहले नूरजहां, जो बाद में बंटवारे के बाद पाकिस्तान चली गईं. इन सभी को सुनता था. लता जी तब अपने टीनएज के सालों में काफी संघर्ष के बाद देश में एक डॉमिनेंट फीमेल वॉयस के रूप में सामने आई थीं.
आपने लता मंगेशकर और आशा भोसले दोनों के साथ काम किया है और दशकों तक आपका दोनों गायिकाओं के साथ अच्छा मेल रहा है.
गुलजार: मेरे लिए वो दोनों नील आर्मस्ट्रॉन्ग और एडविन बज एलड्रिन की तरह हैं, जो एक के बाद एक पहली बार चांद पर पहुंचे थे. ये ऐसा था जैसे लता जी विंडो साइड पर हों और आशा जी उनके ठीक बगल में. उनमें कोई ज्यादा और कम नहीं है, इसलिए ये सवाल ही नहीं उठता कि दोनों में से बेहतर कौन है. ये कुछ इस तरह है कि कोई लंबा चलने वाला रिकॉर्ड हो और वो दोनों इसके दो साइड.
लता जी के मेथड ऑफ वर्किंग के बारे में कुछ बताएं?
गुलजार: वो रिहर्सल्स को लेकर बहुत अलग थीं और हर बात का खास ख्याल रखती थीं. चाहे एक दिन पहले सलिल चौधरी के मोहन स्टूडियो में रिकॉर्डिंग हो या मदन मोहन के पेडार रोड वाले स्टूडियो में.
रिहर्सल से पहले लता जी हमेशा पूछती थीं कि वो किस तरह के कैरेक्टर के लिए गा रही हैं और उसकी उम्र क्या है? क्या वो एक कॉलेज गर्ल है या वर्किंग वुमन है? ये सभी बातें वो जरूर पूछती थीं, ये कोई और सिंगर नहीं करता था. कई निर्देशकों को ये पसंद नहीं आता था, लेकिन जब वो रिकॉर्डिंग के बाद गाना सुनते थे, तो उन्हें मानना पड़ता था कि लता जी सही थीं.
क्या उन्हें कभी एक से ज्यादा टेक की जरूरत पड़ी?
गुलजार: गाने की रिहर्सल के दौरान ही वो बारीकियों को समझ जाती थीं इसलिए रिकॉर्डिंग के वक्त फर्स्ट टेक ही काम कर जाता था.
एक बार वेस्टर्न आउटडोर स्टूडियो में मशहूर दमन सूद ने एक गाना रिकॉर्ड किया था और इसके फर्स्ट टेक से ही मैं और पंचम बहुत ज्यादा खुश हो गए. लेकिन दमन ने दूसरे टेक के लिए रिक्वेस्ट की. लता जी थोड़ी सी हैरान थीं और सोचने लगीं कि उन्होंने कहां गलती की, तब दमन ने कहा कि नहीं नहीं, ऐसा कुछ नहीं है और दूसरे टेक की जरूरत नहीं है, लेकिन फिर भी लता जी दोबारा केबिन में गईं और हमें फर्स्ट टेक से भी ज्यादा बेहतर गाना रिकॉर्ड करके उन्होंने दिया.
उनका सेंस ऑफ ह्यूमर कमाल का था. क्या आपको इससे जुड़ा कोई वाकया याद है?
गुलजार: देखिए हर फिल्मकार, कम्पोजर, गीतकार ये चाहता था कि फिल्म के साउंडट्रैक में लता मंगेशकर का एक गाना जरूर हो. जब विशाल भारद्वाज फिल्म 'माचिस' के लिए याद न आए कोई... की रिकॉर्डिंग कर रहे थे, तब वो एक न्यूकमर थे. उन्होंने कहा कि वो बहुत नर्वस हैं, तब लता जी ने हंसकर उनसे कहा था, ' प्लीज, आप मुझे भी एक न्यूकमर की तरह ही ट्रीट करें.'
फिर एक बार उन्होंने पाकिस्तान के तानाशाह ज़िया उल हक़ के बारे में एक मजाक किया था. ये जोक कुछ ऐसा था कि उनका नाई उनसे बार बार पूछ रहा कि आप चुनाव की घोषणा कब करेंगे? और तब ज़िया उल हक़ ने चिढ़कर अपने स्टाफ को बुलाया और ये देखने के लिए कहा कि उस नाई का मकसद क्या है? नाई ने उनसे बस इतना कहा कि जब भी मैं इनसे पूछता हूं, तब इनके बाल खड़े हो जाते हैं और तब ऐसे बालों को काटना आसान हो जाता है.
आपके लिखे गीतों में लता जी का गाया कौन सा गाना आपके दिल के बेहद करीब है?
गुलजार: 'हमने देखी है उन आंखों की महकती खुशबू...' (खामोशी) और एक फिल्म जो मैंने डायरेक्ट की थी 'मेरे अपने' उसका गाना रोज अकेली आए...इसके अलावा 'आंधी' फिल्म का गाना 'इस मोड़ से जाते हैं...'
'लेकिन' के प्रोड्यूसर के तौर पर आप उन्हें कैसे देखते हैं?
गुलजार: मैं कहूंगा कि वो एक खराब प्रोड्यूसर थीं क्योंकि, वो बहुत उदार थीं. वह शूटिंग के दौरान एक बार राजस्थान आई थीं और दो बार मुंबई के सेट पर. एक या दो बार में भी उन्होंने यूनिट पर पर्सनलाइज्ड गिफ्ट्स की बारिश कर दी थी. वो जानती थीं कि मैं गौतम बुद्ध के स्टैच्यू और उनकी मूर्तियां कलेक्ट करता रहता हूं, तो उन्होंने मुझे कीमती पत्थरों से बनी तीन मूर्तियां गिफ्ट की थीं.
करीब 6 महीने पहले उन्होंने मुझे एक बड़ा भारी सा मार्बल से बना बुद्ध का स्टैच्यू भेजा था. उन्होंने फोन किया और कहा, 'ये मेरे घर चले आए थे, मुझे पता है इन्हें किसके घर पहुंचाना है.'
हृदयनाथ मंगेशकर ने 'लेकिन' के लिए जो म्यूजिक दिया, उससे वो बहुत खुश हुई थीं. 'यारा सीली सीली गाना...' काफी पॉपुलर हुआ, लेकिन उनके दिल में जिस गाने की खास जगह थी, वो था- लोक संगीत पर आधारित गाना 'सुनियो जी एक अरज...'
एआर रहमान के लिए जब आपके लिखे गीत जिया जले...की रिकॉर्डिंग हुई, तब उस वक्त की कोई बात अगर आपको याद हो?
गुलजार: रहमान के लिए ये लता जी का पहला गाना था. इसकी रिकॉर्डिंग के लिए वो उनके चेन्नई के स्टूडियो गई थीं. उन्होंने हमसे कहा था कि इसकी लीरिक्स और कंपोजिशन दोनों ही उन्हें बहुत पसंद आई.
क्या आपने महसूस किया कि उनकी आवाज समय के साथ इवॉल्व हो रही है?
गुलजार: उन्हें जैसा सुना था, वैसी ही रहीं. उनकी आवाज वैसी ही प्योर रही, जैसी हमेशा से थी. वह उन्हीं दिनों में अपने गाने रिकॉर्ड करती थीं, जब उनकी आवाज अच्छी शेप में होती थी. दूसरे शब्दों में कहें तो वो परफेक्शन में भी परफेक्शन ढूंढती थीं और फिर अपना बेस्ट देती थीं.
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