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दुनिया को अपने संगीत से रौशन करने वाले खय्याम के नगमे लोगों के जेहन में हमेशा अमर रहेंगे. खय्याम को हिंदी सिनेमा को बेहतरीन संगीत से नवाजने के लिए जाना जाता है. आजादी के पहले शुरू हुआ संगीत का सफर दशकों तक चलता रहा. बॉलीवुड में हीरो बनने का ख्वाब देखने वाले खय्याम के संगीतकार बनने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है.
चचा ने थप्पड़ तो मार दिया, लेकिन भतीजे का सपना पूरा करने के लिए मदद भी की. उनके चाचा के खास दोस्त थे महान संगीतकार पंडित हुस्न लाल भक्त राम और पंडित अमरनाथ. खय्याम के चाचा ने उनको अपने दोस्तों से मिलवाया और कहा- 'ये बच्चा एक्टर बनना चाहता है, ये पढ़ता-लिखता भी नहीं है’. तो दोनों ने खय्याम को संगीत सिखाने का फैसला किया, जिसके बाद खय्याम ने 5 साल तक दिल्ली में संगीत की शिक्षा ली.
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दिल्ली से खय्याम का अगला पड़ाव था मायानगरी मुंबई, जहां शुरुआती दिनों में उन्हें नाकामयाबी नसीब हुई. काम की तलाश में खय्याम दर-दर भटकते रहे और आखिर में निराश होकर लाहौर लौट गए. लाहौर में महान संगीतकार चिश्ती बाबा से खय्याम की मुलाकात हुई, जिनसे खय्याम ने संगीत की तालीम ली.
लाहौर में खय्याम को पहली सैलरी 125 रुपये मिली, अपने एक इंटरव्यू में इसका जिक्र करते हुए उन्होंने कहा था-
लाहौर में काम करने के बाद 1947 में आजादी से कुछ महीने पहले खय्याम फिर मुंबई पहुंचे. मुंबई में सबसे पहले खय्याम ने अपने गुरु पंडित हुस्न लाल, भक्त राम और पंडित अमरनाथ जी से मुलाकात की. खय्याम ने अपने गुरु जी को कुछ गाकर सुनाया और उनके गुरु ने तुरंत उन्हें फिल्म 'रोमियो जुलिएट' में काम करने का मौका दिया. फिल्म के लिए गाना रिकॉर्ड हुआ 'दोनों जहां तेरी मोहब्बत में हार के वो जा रहा है'....उस दौर की महान गायिका जोहरा के साथ उन्होंने गाना गाया.
‘रोमियो जुलियट’ के बाद खय्याम को मौका मिला ‘हीर रांझा’ में संगीत देने का. खय्याम ने पहली बार फिल्म 'हीर रांझा' में संगीत दिया, लेकिन मोहम्मद रफी के गीत 'अकेले में वह घबराते तो होंगे' से उन्हें बॉलीवुड में पहचान मिली. इसके बाद फिल्म 'शोला और शबनम' ने उन्हें संगीतकार के तौर पर स्थापित कर दिया.
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