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2017 में आई फिल्म 'हिंदी मीडियम' की स्पिन ऑफ फिल्म अंग्रेजी मीडियम हमें इस बात का सही एहसास दिलाती है कि इरफान खान को पर्दे पर देखने को हमने कितना मिस किया. इस फिल्म की शूटिंग उस समय की गई थी जब इरफान बीमारी से उबर रहे थे और अच्छी सेहत पाने के लिए जंग लड़ रहे थे. इस फिल्म में इरफान अपने उस लय में बखूबी नजर आए हैं, जिसमें वे सबसे अच्छा काम करते हैं - सहजता से अपने किरदारों को पर्दे पर जीवंत करते हैं.
फिल्म में इरफान ने चंपक बंसल का किरदार अदा किया है, जो एक सिंगल पिता है और अपनी बेटी की परवरिश करता है. तारिका (राधिका मदान) एक औसत स्टूडेंट है, जिसकी अपने पिता के साथ एक प्यारी सी बॉन्डिंग है. वो दुनिया भर में ट्रैवल करने के बड़े सपने देखती है. चंपक को जल्द ही पता चल जाता है कि वह चाहे कितनी भी कोशिश कर ले, बेटी की आकांक्षाओं को दबाया नहीं जा सकता. आखिरकार बेटी के लिए उसे पिघलना पड़ता है. लेकिन इसमें समस्या आ जाती है. वह अनजाने में एक ऐसा काम कर देता है कि लंदन के एक यूनिवर्सिटी में बेटी की स्कॉलरशिप ही खतरे में आ जाती है. इसलिए, अब अगर तारिका अपनी पसंद के कॉलेज में यूके में पढ़ना चाहती है, तो यह पूरी तरह से परिवार के ऊपर वित्तीय बोझ होगा.
निर्देशक होमी अदजानिया के पास लगभग 145 मिनट तक फिल्म के साथ हमें बांधे रखने का बड़ा काम है, लेकिन ये काम वे केवल छिटपुट रूप से ही कर पाते हैं. इसमें कई पड़ाव आते हैं- कभी एक ऐसे कटघरे में, जहां परिवार को एक केस लड़ते हुए देखा जा सकता है. कभी एक ऐसे ट्रैवल एजेंट के चक्कर लगते दिखाया गया है ,जो गैरकानूनी तरीके विदेश ले जाता है. चंपक और उसका छोटा भाई लंदन पुलिस ऑफिसर से बचने के चक्कर में एक महिला से दोस्ती करते हैं. और ये उतना ही निराशाजनक है, जितना कि यूट्यूब पर वीडियो देखने से पहले किसी विज्ञापन के खत्म होने का इंतजार करना. इन सब में असली कहानी कहीं छुप सी जाती है.
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फिल्म में बहुत सारे दिलचस्प पहलु हैं जिन्हें शुरू तो किया गया और आखिरकार बीच में छोड़ दिया गया. एक ऐसा ही उदहारण बेटी के विदेश जाने का जुनून है. यह अकादमिक उत्कृष्टता के बारे में ज्यादा नहीं है, लेकिन विदेशी संस्कृति और जीवनशैली के प्रति आकर्षण है.
अंग्रेजी मीडियम में कुछ बहुत से मजबूत परफॉर्मेंस हैं. हालांकि वे सभी ज्यादातर विस्तारित कैमियो के रूप में दिखाई देते हैं. डिंपल कपाड़िया एक गुस्सैल स्वभाव वाली उम्रदराज महिला हैं, करीना कपूर हमेशा गुस्से में रहने वाली एक पुलिस ऑफिसर के किरदार में हैं. और रणवीर शौरी बचपन के दोस्त बबलू के किरदार में हैं. कम स्क्रीन टाइम मिलने के बावजूद पंकज त्रिपाठी ने दुबई के एक ट्रैवल एजेंट का किरदार बेहतरीन ढंग से निभाया है.
ज्यादातर हिस्सों के लिए 'अंग्रेजी मीडियम' इरफान और दीपक डोबरियाल का है. वे जिस कॉमिक टाइमिंग का बखान करते हैं वह शानदार है. एक साथ उनके सीन्स और खास तौर से किकू शारदा के साथ उनके सीन्स. हालांकि कहानी को आगे ले जाने में इसका ज्यादा योगदान नहीं है. राधिका मदान अपने किरदार में अच्छी हैं, लेकिन उनकी अटकती हुई डायलॉग डिलीवरी थोड़ी सी खटकती है.
जब कैमरा इरफान पर टिका होता है कि सब कुछ एक साथ आने लगता है. यहां वे एक ऐसे एक्टर हैं, जो इतनी सहजता से एक पिता के किरदार में एक आकर्षक परफॉर्मेंस के साथ-साथ अपनी कॉमेडी शैली को भी बेहतर तरीके से निभाते हैं. पूरी फिल्म एक तरह से इरफान का ही शो है, लेकिन इसकी बिखरी हुई कहानी की वजह से फिल्म को खामियाजा भुगतना पड़ता है..
5 में से 2.5 क्विंट की रेटिंग
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