The Elephant Whisperers: निराले प्रेम गीत के जादुई संकेत

The Elephant Whisperers review:कार्तिकी गोंजाल्विस के निर्देशन में बनी ये फिल्म 95वें ऑस्कर पुरस्कार के लिए नामांकित

चैतन्य नागर
मूवी रिव्यू
Published:
<div class="paragraphs"><p>The Elephant Whisperers documentary</p></div>
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The Elephant Whisperers documentary

(फोटोःट्विटर)

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कार्तिकी गोंजाल्विस (Kartiki Gonsalves) के निर्देशन में बनी पहली फिल्म द एलिफेंट विस्परर्स (The Elephant Whisperers) इन दिनों चर्चा में है और नेटफ्लिक्स पर देखी जा सकती है. 95वें अकादमी या ऑस्कर पुरस्कार के लिए नामांकित तीन भारतीय फिल्मों में से ये एक है. सबसे उम्दा वृत्तचित्र की श्रेणी में नामांकित 41 मिनट की ये फिल्म एक दक्षिण भारतीय युगल, बोम्मन और बेली, और एक अनाथ हाथी, रघु के बीच के अनूठे संबंधों के इर्द-गिर्द बनाई गई है.

कार्तिकी के लिए रघु को समझने की यात्रा लगभग छह साल पहले शुरू हुई थी जब उन्होंने रघु को एक नदी में स्नान के लिए ले जाते हुए बोम्मन को देखा था. कार्तिकी को अपनी कार से झांकते हुए देखकर बोम्मन ने उन्हें अपने साथ आने के लिए कहा. ऑस्कर नामांकित कार्तिकी ने रघु को इधर-उधर एक गेंद की तरह लुढ़कते हुए और खुद को पानी से छींटे मारते देखा. उसने थोड़े ही समय में अनाथ हाथी के साथ एक विशेष संबंध बना लिया और यही रिश्ता फिल्म की अवधारणा का आधार बन गया. फिल्म में रघु बोम्मन के लिए एक बच्चे के समान है. फिल्म देख कर ऐसा लगता है कि इंसान को अपनी ही प्रजाति का शिशु नहीं चाहिए बल्कि किसी भी प्रजाति का शिशु उसके लिए एक बच्चे की तरह बन सकता है. ये कुदरत के साथ इंसान के गहरे अंतर्संबंध को दर्शाने वाली फिल्म है.

उस संबंध को जिसे खोकर हम अगिनत दुखों को अपने जीवन में आमंत्रित कर रहे हैं. फिल्म को देख कर लगता है कि धरती वास्तव में कितनी सुन्दर हो सकती है, यदि इसमें जीवन के सभी रूपों का सह अस्तित्व हो और कोई किसी के जीवन में दखल न दें. इंसान की बेवजह दखलंदाजी से दुनिया कितनी कुरूप होती जा रही है, फिल्म बड़ी बारीकी और स्नेह के साथ ये संदेह देती है. इस बारे में कोई ज्ञान या दर्शन झाड़े बगैर. द एलिफेंट विस्परर्स आपके साथ फुसफुसाहट में बातें करती है. किसी शोर के बगैर. इसमें गहरे, निस्वार्थ प्रेम की अभिव्यक्ति है, मूक पशुओं का गहरा पर शांत प्रेम है. किसी भी अनावश्यक सिनेमैटोग्रेफिक बोझ से पूरी तरह मुक्त, एक भारी-भरकम जीव के प्राण वायु के सामान हल्केपर प्रेममयी अस्तित्व पर एक मुकम्मल बयान है ये फिल्म.    

निलगिरी पहाड़ों के उस पार, मायर नदी के पास बोम्मन और बेली थेप्पकडू एलिफेंट कैंप में रहते हैं. रघु की मां बिजली के झटके के कारण मर जाती है. रघु अनाथ हो जाता है और उसे बोम्मन और बेली अपनी देख रेख में ले लेते हैं. कार्तिकी ने बिना किसी बौद्धिक बोझिलता के एक गहरे स्तर पर लोगों को शायद यह समझाने की कोशिश की है कि हाथी कितने इंटेलीजेंट और संवेदनशील जीव होते हैं.

जंगल में रहने वालों की संवेदनशीलता ही उन्हें बचा सकती है, न कि किसी बड़ी यूनिवर्सिटी में होने वाले शोध कार्य. उन संबंधों की कोमलता का फिर से स्पर्श करनी की जरूरत है जो तथाकथित सभ्यता और विकास के फेर में बुरी तरह जख्मी हुए जा रहे हैं. फिल्म में बोम्मन और बेली अपनी कहानी खुद ही कहते हैं और इस वजह से दर्शक स्वयं को उनके साथ और अधिक जुड़ा हुआ महसूस करता है. किसी और पेशेवर नैरेटर की आवाज, भाषा और अंदाज वृत्त चित्र को अस्वाभाविक बना डालता. उसमें वह भावनात्मक टटकापन नहीं आ पाता जो रघु की प्रेम में डूबे बोम्मन और बेली के तौर तरीकों में है.

फिल्म का एक बहुत ही मजबूत पक्ष है इसकी फोटोग्राफी. ये अद्भुत है. जंगल में जागती हुई सुबह, ऊंघती शामें, घूप सेंकते दिन और इन बदलते हुए दृश्यों की पृष्ठभूमि में हाथियों और इंसानों के बीच लिखी जा रही एक प्रेम कथा. कार्तिकी डिस्कवरी और एनिमल प्लेनेट चैनल्स के लिए कैमरा क्रू के सदस्य की हैसियत से काम कर चुकी हैं और उनका हुनर देखने में ज्यादा समय नहीं लगता. पर्यावरण और जीवों के लिए उनकी समानुभूति बिलकुल साफ झलकती है पूरी फिल्म में.        

इस फिल्म को जब से ख्याति मिली है, बड़ी तादाद में लोग सरकारी अनुमति के साथ बोम्मन और बेली से मिलने उनके  घर जा रहे हैं. द एलिफेंट विस्परर्स के निर्माता हैं गुनीत मोंगा और अचिन जैन. यह फिल्म  सिख्या एंटरटेनमेंट के बैनर तले बनाई गई है. नदियां सूखती हैं, फिर लबालब भर जाती हैं, दरख्तों के रंग हर मौसम में बदल जाते हैं, गरमी के मौसम में जंगल धू-धू कर जलते हैं. लंगूर शांत होकर हाथियों के मनोरंजक खेल को ताकते रहते हैं, कभी-कभार एक मोर उनकी खबर पूछने चला आता है; चीतल, हिरन और कहीं-कहीं तेंदुआ और सिंह भी दिख जाते हैं.

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इन सबके बीच निर्बाध रूप से एक प्रेम कविता लिखी जा रही है---रघु के साथ उनके रखवालों बोम्मन और बेली के बीच के प्रेम की कविता. बोम्मन और बेली कट्टूनायकन कबीले के हैं. जंगल हमेशा उनके जीवन की धुरी रहे हैं. बेली के पति को एक बाघ ने मार डाला था और तब से जंगल के साथ उसके संबंधों में भय का आगमन हो गया था. रघु इस भय को खत्म करने का भी काम करता है, अनजाने में ही. बेली अपने बच्चे को भी खो चुकी होती है. रघु ने अपनी मां को खोया है. दोनों कुदरत की गोद में बैठ कर अपने अनकहे दुःख को दूर करने का काम भी चुपचाप करते हैं, फुसफुसाकर एक दूसरे को तसल्ली देते हैं.

अपने स्पर्श के जरिये, अपने ऐसे प्रेम के जरिये जो भाषा से परे है, इंसानी दुनिया के तौर-तरीकों से अलग पर बहुत ही शुद्ध. बगैर किसी कारोबार का, बगैर बनियौटी का निश्छल प्रेम. बोम्मन को रघु की देखभाल का काम वन विभाग ही सौंपता है. रघु के जरिये वह भी दादा की उम्र में एक शिशु बन जाता है. एक मां भी बन जाता है.

परिवार बड़ा भी होता है. रघु को अपनी ही बिरादरी का एक छोटा बच्चा मिल जाता है जिसका नाम है अम्मू. बोम्मन और बेली दक्षिण भारत में हाथी के दो अनाथ बच्चों को पालने वाले पहले युगल बन जाते हैं. कार्तिकी की फिल्म किसी जंगल में होने वाली यात्रा के सामान है. किसी सफारी की तरह. जहां हम इंसान और जंतुओं के सहस्तित्व को देखते हैं, एक ऐसे स्पेस में जो दिनों दिन घटता जा रहा है. इंसान जंगलों को लीले जा रहा है. वन्य जीव इधर उधर ठिकाना तलाश रहे हैं और गायब होने के कगार पर हैं. परिंदे खोते जा रहे हैं; एक एक कर जंगल विकास की भेट चढ़ते जा रहे हैं. जो लोग इंसानी समाज की तुलना जंगलराज से करते हैं, उनके लिए ये फिल्म आंखें खोलने वाली है. काश हमारा समाज इसी तरह प्रेम और शांतिपूर्ण सहस्तित्व पर आधारित होता. बेवजह खून खराबा नहीं होता. तब हम इंसानी समाज की तुलना जंगलराज से करने से पहले कई बार सोचते.

आइये इस फिल्म के बहाने हाथियों के बारे में कुछ दिलचस्प बातें भी जानें:

  • धरती पर रहने वाले सबसे बड़े जीव होने के बावजूद हाथी एक घंटे में करीब 25 मील चल/दौड़ लेते हैं.

  • कई तरह की आवाजें निकालने वाले हाथी उन कदमों की आवाज भी समझ लेते हैं जो जमीन से होते हुए उनके पैरों और फिर उनके कानों तक पहुंचती है. इस कंपन के जरिये वे अपने संदेश भी एक दूसरे तक पहुंचाते हैं.

  • हाथियों के झुण्ड की नेता एक हथिनी होती है. बच्चों की परवरिश समूचा झुण्ड मिल कर करता है. नर बारह साल की उम्र में झुण्ड छोड़ देते हैं पर मादा झुण्ड के साथ ही रहती है.
    कोई बच्चा रोता है तो झुण्ड के हाथी उसे अपनी सूंड से सहलाते हैं. हाथी बहुत बुद्धिमान समझे जाते हैं. उनमें करुणा, सजगता जैसे गुण भी होते हैं. हाथी ऐसी दुर्लभ प्रजातियों में है जो खुद को आईने में देख कर पहचान लेता है.

  • हाथी का बच्चा 22 महीनों तक पेट में रहता है. किसी भी स्तनपायी के लिए यह सबसे लंबी अवधि है. बच्चे के जन्म का जश्न पूरा झुण्ड मनाता है. बच्चे  को छूकर और चिंघाड़ कर.

  • हाथी की उम्र औसतन पचास से सत्तर वर्ष होती है. किसी हाथी के मरने पर झुण्ड के बाकी सदस्य मातम भी मनाते हैं.सभी मृत हाथी के माथे  का स्पर्श करते हैं और कुछ देर मौन खड़े रहते हैं. हाथी की स्मृति खोती नहीं. कहते हैं हाथी कभी भी नहीं भूलता. हाथी की सूंड में करीब चालीस हजार मांसपेशियां होती हैं. एक घोड़े के आकार की किसी चीज और चावल के एक दाने को भी वह सूंड से उठा लेता है. एक दिन में हाथी करीब तीन सौ किलो भोजन कर लेता है!

  • हाथी घंटों तक शांत होकर एक जगह खड़ा रह सकता है. हाथियों का एक बड़ा झुण्ड आपके थोड़ी ही दूर से गुजर जाएगा और आपको इसका अहसास भी नहीं होगा. इतनी शांति के साथ वे चल-फिर सकते हैं, अपनी भारी भरकम काया के बावजूद. 

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