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समुद्री डाकुओं से भरे बड़े-बड़े जहाजों को बड़ी स्क्रीन पर इधर-उधर डोलते हुए देखकर हैरान-परेशान दर्शकों को ‘लाइफ जैकेट’ की जरूरत महसूस होती है.
असल में यह कहना गलत होगा. ट्रेलर में हमें सही चेतावनी दी गई थी कि फिल्म में कैसी-कैसी अजीबोगरीब चीजें देखने को मिल सकती हैं. अगर इस फिल्म में कुछ ऐसा है जो हमारे शक को यकीन में बदलती है, तो वो ये है कि- महज स्टाइल से कमजोर कहानी के कमी की भरपाई नहीं की जा सकती.
अमिताभ बच्चन और आमिर खान को पहली बार एक साथ देखने की चाहत बहुत से एडवांस बुकिंग करवा सकती है, बहुत से फैन्स को आकर्षित कर सकती है. लेकिन जब दर्शकों की भीड़ थियेटर में पहुंचती है, तो उसे एक अच्छी कहानी के साथ ऐसा कुछ चाहिए, जो उन्हें फिल्म के साथ बांधे रखे. इसे एक पीरियॉडिक ड्रामा में शॉर्ट्स पहने कैॉटरीना कैफ के आइटम डांस से हासिल नहीं किया जा सकता है.
फर्स्ट हाफ में किरदारों की ग्रांड एंट्री होती है. नैरेटर हमें रौनकपुर से रूबरू करवाता है. ये एक छोटी सी रियासत है, जो ब्रिटिश हुकूमत से जंग लड़ रही है. अमिताभ बच्चन 'आजादी', 'सपने' और 'भरोसे' की बातें करते हैं. यह एक रहस्यमय पॉजिटिव किरदार है और हमें रोमांचित करता है.
इसके बाद आमिर खान जल्द ही अपनी मुस्कान के साथ एंट्री करते हैं. उनकी आंखों में एक शरारती चमक है और जुबां पर डायलॉग - "मेरी फितरत में धोखा है." वो ब्रिटिशों के खिलाफ लड़ाई में मदद करने की पेशकश करता है. लिहाजा, हम जान जाते हैं कि यही वो अच्छा 'ठग' है.
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ईमानदारी से कहा जाए तो अमिताभ बच्चन की स्क्रीन पर मौजूदगी हमें ज्यादा खुश नहीं करती है. फिल्म आगे बढ़ने के साथ उनके किरदार को बर्दाश्त करना मुश्किल होता जाता है.
फिल्म का सेकंड हाफ एक के बाद एक कई एक्शन सीक्वेंस से भरपूर है.अचानक से फिरंगी की सोच बदल जाती है. खुदाबख्श बेबीसिटिंग के काम में वापस लग जाते हैं. जफीरा को कभी बड़ा होने की इजाजत नहीं दी जाती, और सुरैया का इस्तेमाल केवल ग्लैमर एलिमेंट लाने के मकसद से किया जाता है.
आकर्षक कॉस्ट्यूम्स में आमिर और अमिताभ को बड़ी स्क्रीन पर एक साथ देखने के अलावा, हमें कहानी के साथ खुद को जोड़े रखने की कोई खास वजह नजर नहीं आती. डायरेक्टर विजय कृष्ण आचार्य ने आखिरी बार धूम 3 बनाई थी. लेकिन इस फिल्म में उन्होंने निराश किया. दर्शकों को विवेक से काम लेने की सलाह दी जाती है.
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