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‘नमस्ते इंग्लैंड’ को दूर से नमस्ते, न कोई लॉजिक न अच्छा सिनेमा 

अर्जुन और परिणीति की फिल्म में अबतक की सबसे खराब पर्फोरमेंस है

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‘नमस्ते इंग्लैंड’ को दूर से नमस्ते, न कोई लॉजिक न अच्छा सिनेमा

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‘नमस्ते इंग्लैंड’ के बचाव में कोई ये कह सकता है फिल्म ने पिंड के पंजाबियों की दुखती रग पर हाथ रखा है. इसमें विलेन कहता है, ''मैंने तेरा वीजा लगने ही नहीं देना.''

फिल्म की कहानी भी इसी के इर्द-गिर्द घूमती रहती है. आखिर मेकर्स के हिसाब से हर पंजाबी के लिए अपने रहन सहन को और अच्छा करने के लिए गांव की जमीन, घर परिवार, पेग और भंगड़ा ये सब छोड़ना काफी इमोशनल होता है.

वीजा के बिना जिंदगी क्या है?

परम और जसमीत यही खोजने की कोशिश करते हैं. एक ग्रीन कार्ड पाने के लिए शादी करती है तो दूसरा अवैध तरीके से बांग्लादेश जाता है ताकि अवैध तरीके से इंग्लैंड जा सके.

कम शब्दों में कहूं तो नमस्ते इंग्लैंड का मतलब लॉजिक को बाय बाय और अच्छे सिनेमा के लिए RIP.

फिल्म में ये परम (अर्जुन कपूर) है, जिसे जसमीत (परिणीति चोपड़ा) की ईयरिंग की वजह से प्यार हो जाता है. 10 ड्रेस, 20 लोकेशन और 3 गानों के बाद हमें पता चलता है कि जसमीत ज्वैलरी डिजाइनर बनना चाहती है.

लेकिन उसके दादा जी और वीर जी तो पुराने ख्यालों के हैं. तो बेचारी जसमीत क्या करे? वो परम से शादी कर लेती है और कहती है - मेरे जीने की वजह एक ही है कि मेरा हसबैंड अंडरस्टैडिंग हो.

इंग्लैंड घूमने के बाद आखिरकार दोनों पिंड लौट आते हैं. फिल्म में दोनों की अबतक की सबसे खराब पर्फोरमेंस हैं. लेकिन दोनो करते भी क्या? उन्हें जो दिया गया उन्होंने वो किया.

तो जनता को मैं तो यहीं कहूंगी कि ‘नमस्ते इंग्लैंड’ को दूर से नमस्ते.

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