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आयुष्मान खुराना की नई फिल्म ‘आर्टिकल 15’, देश के रग-रग में समाई जाति व्यवस्था का नासूर बखान करती है. ये फिल्म 28 जून को रिलीज होने वाली है. ये फिल्म साल 2014 में उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में हुई दो नाबालिग लड़कियों से साथ सामूहिक बलात्कार और उनकी निर्मम हत्या पर आधारित है.
फिल्म का ट्रेलर 2014 में हुई बर्बर वारदात की महज एक बानगी भर है. लेकिन सच्चाई इससे कहीं ज्यादा घिनौनी है. इस मामले की जांच Special Investigation Team (SIT) और सीबीआई कर रही हैं. लेकिन जैसे-जैसे इन एजेंसियों की पड़ताल आगे बढ़ रही है, मामला और उलझता जा रहा है.
आखिर उन दिनों क्या हुआ था? वारदात को पांच साल बीत गए. आरोपी जमानत पर रिहा हैं और पीड़ितों को अब तक इंसाफ का इंतजार है. एक नजर डालते हैं पूरी घटना पर:
28 मई, 2014. बदायूं के कटरा सादतगंज गांव में दो लड़कियों के शव आम के एक पेड़ से लटके पाए गए. दोनों नाबालिग लड़कियों की उम्र 14 और 15 साल थी. रिश्ते में दोनों चचेरी बहनें थीं. शव मिलने के एक दिन पहले, शाम को नित्यकर्म से फारिग होने दोनों खेत की ओर गई थीं. उसी समय से उनका अता-पता नहीं था.
जब रात तक दोनों बहनें नहीं लौटीं, तो घरवालों ने उन्हें तलाशना शुरू किया. अगली सुबह उनकी लाश एक पेड़ से लटकी पाई गई.
जिस वक्त तलाश जारी थी, और जब पुलिस मामले की जांच कर रही थी, उस दौरान हुई घटनाओं ने पूरी जांच प्रक्रिया को सवालों में ला खड़ा किया.
लड़कियों का शव मिलने के घंटों बाद तक नाराज गांववालों ने पुलिस को पेड़ से शव नहीं उतारने दिया. जब तक संदिग्ध आरोपियों को गिरफ्तार नहीं कर लिया गया, तब तक शव पेड़ से लटके रहे.
पेड़ से लटके शवों की तस्वीर मीडिया ने छापी और देशभर में इस घटना पर आक्रोश छा गया.
The Guardian के मुताबिक अगले दिन, यानी 28 मई को, जब इस मामले में पहली गिरफ्तारी हुई, तब जाकर गांव वालों ने शवों को पेड़ उतारने की इजाजत दी.
6 जून 2014 को मामले की जांच SIT को सुपुर्द कर दी गई.
ये मामला दुनियाभर में सुर्खियों में था और हर ओर इसकी निन्दा हो रही थी. हालात देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने 12 जून 2014 को मामले की जांच सीबीआई से कराने का फैसला किया. लेकिन सीबीआई की जांच में मामला और उलझ गया. इस जांच ने ना सिर्फ परिजनों की शिकायत को खारिज कर दिया, बल्कि मुख्य चश्मदीद बाबू राम के बयान को भी गलत करार दिया.
मामला सामने आने के बाद से पीड़ितों की जाति को लेकर अटकलबाजियों का दौर शुरू हो गया था. शुरुआती जांच में जाति का उल्लेख नहीं था. लेकिन रॉयटर की एक रिपोर्ट के मुताबिक दोनों लड़कियां दलित समुदाय से थीं. इस पर केन्द्र सरकार ने पूछा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 (SC/ST) के तहत मामला क्यों दर्ज नहीं किया गया, जबकि आरोपियों पर बलात्कार और हत्या जैसे संगीन अपराध थे.
The Hindu में छपी खबर के मुताबिक, उत्तर प्रदेश सरकार ने जवाब दिया कि पीड़ित दलित समुदाय से नहीं थे.
सरकार ने कभी पीड़ितों की जाति के बारे में नहीं बताया, लेकिन कई रिपोर्ट के मुताबिक दोनों लड़कियां शाक्य या मौर्य जाति की थीं, जबकि आरोपी यादव समुदाय से थे. उत्तर प्रदेश में दोनों समुदायों को ओबीसी का दर्जा मिला हुआ है.
इस मामले में ‘जाति कार्ड’ को महत्त्वपूर्ण मानने का एक महत्त्वपूर्ण कारण था कि शुरू में मामले की जांच करने वाले दोनों पुलिस अधिकारी भी यादव समुदाय से थे. पक्षपात के आरोपों के बाद जिला पुलिस ने अपनी जांच में बताया:
मीडिया ने पीड़ितों के परिजनों के बयानों और सबूतों में फर्क के बारे में बताया. इसके अलावा जांच में कोताहियों के बारे में भी जानकारियां दी गईं.
1. उत्तर प्रदेश पुलिस की जांच
एक लड़की के पिता ने आरोप लगाया कि जब वो अपनी बेटी के गायब होने की शिकायत दर्ज कराने थाने पहुंचा, तो पुलिस ने उनके साथ बिलकुल सहयोग नहीं किया.
पीड़ित के पिता ने उसी इंटरव्यू में कहा कि मुख्य आरोपी पप्पू यादव ने उस रात लड़कियों के अपने घर होने की बात कबूल की थी. Outlook की एक रिपोर्ट के मुताबिक सीबीआई का भी मानना था कि पुलिस ने FIR दर्ज करने से पहले अपना काम तत्परता के साथ नहीं किया था.
2. सुबूत के तौर पर मोबाइल फोन पाया गया
वारदात के एक महीने बाद जांच करने वाली सीबीआई की टीम को मौके से मोबाइल फोन मिला. मौके पर खींची गई तस्वीर के आधार पर ये बरामदगी हुई. India Today में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक तस्वीर को बड़ा करके देखने पर बड़ी लड़की के ऊपरी अंदरूनी वस्त्र में मोबाइल फोन खोंसा हुआ पाया गया.
पहले ये फोन भी गुम बताया गया था. जांच के लिए इसे गुजरात की प्रयोगशाला में भेजा गया. प्रयोगशाला की रिपोर्ट के मुताबिक “मोबाइल फोन हाल ही में टूटा था और उसे जानबूझकर तोड़ा गया था.”
सीबीआई इस नतीजे पर पहुंची कि एक लड़की ने वारदात से कुछ घंटे पहले पप्पू यादव से मोबाइल पर बात की थी. लिहाजा आरोपी के साथ उसका इश्क हो सकता है.
Indian Express में छपी रिपोर्ट के मुताबिक जिस हवाई चप्पलों की जोड़ी को सीबीआई अहम सुबूत मान रही थी, उसे भी परिवार वालों ने लम्बे समय तक अपने पास रखा था.
3. पहला पोस्टमार्टम
Economic Times में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक शवों का पोस्टमार्टम करने वाली डॉक्टरों की टीम की एक सदस्या का कहना था कि इससे पहले उन्होंने कभी पोस्टमार्टम नहीं किया था.
जिस दिन सीबीआई ने शवों के दाह संस्कार का फैसला किया, उसके एक दिन पहले ये बयान आया. सीबीआई ने पाया था कि नियमों के मुताबिक पोस्टमार्टम नहीं किया गया था.
4. सीबीआई की DNA जांच
शवों का दाह संस्कार करने की इजाजत न मिलने पर सीबीआई ने लड़कियों के कपड़ों और कुछ दूसरे निजी साज-सामान के आधार पर DNA जांच कराने का फैसला किया. इनमें योनि से जुड़े सुबूत भी थे, जिन्हें स्थानीय डॉक्टरों ने इकट्ठा किया था.
जांच के आधार पर सीबीआई इस नतीजे पर पहुंची कि लड़कियों के साथ बलात्कार नहीं हुआ है, लिहाजा आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज नहीं किया जाएगा.
Indian Express में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक एक पीड़ित के पिता ने इस जांच रिपोर्ट को नकार दिया और एजेंसी पर आरोप लगाया कि वो जानबूझकर दूसरी बार पोस्टमार्टम करने में कोताही बरत रही है. लड़कियों के परिजनों का ये भी आरोप था कि जिन कपड़ों के आधार पर DNA जांच की गई, वो लड़कियों के नहीं थे.
5. आरोपी ने बलात्कार और हत्या का गुनाह स्वीकार किया
The Times of India में छपी रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश पुलिस ने शुरुआती जांच के बाद आधिकारिक बयान में बताया कि दो आरोपियों ने दोनों लड़कियों से बलात्कार और हत्या का गुनाह कबूल किया था. जब सीबीआई अपने नतीजे पर पहुंची तो एक पीड़ित के पिता ने भी ये बात दोहराई.
पीड़ित के पिता ने कहा, “सीबीआई बलात्कार से कैसे इंकार कर सकती है, जबकि एक आरोपी ने गिरफ्तारी के बाद सरेआम अपना गुनाह कबूल किया था.”
6. मुख्य चश्मदीद के खाते में पैसे जमा हुए
Indian Express में छपी रिपोर्ट के मुताबिक सीबीआई जांच के दौरान पता चला कि पीड़ितों के परिजनों ने बाबू राम समेत दो चश्मदीदों के खाते में 1-1 लाख रुपये जमा किये थे.
पीड़ितों के परिजनों ने ये पैसे उन 5 लाख रुपयों से दिये थे, जो उन्हें बीएसपी से मिले थे. पीड़ितों के पिताओं ने सीबीआई को बताया कि उन्होंने बाबू राम की मदद के लिए उसे पैसे दिये थे.
7. मुख्य चश्मदीद पोलीग्राफ जांच में फेल
बाबू राम की भूमिका उस वक्त संदेहास्पद हो गई, जब वो सीबीआई की पोलीग्राफ जांच में नाकाम रहा.
पांचों आरोपी इस जांच में कामयाब रहे. Indian Express में छपी रिपोर्ट के मुताबिक मुख्य सवालों पर बाबू राम के बयान बदले हुए थे.
उसके बयान के आधार पर पुलिस ने पांच आरोपियों को गिरफ्तार किया था और शिकायत दर्ज की थी. गिरफ्तार आरोपियों में तीन भाई और पुलिस के दो सिपाही शामिल थे. जांच के दौरान अपने बयान में उसने कहा कि उसने लड़कियों को पप्पू के साथ देखा, जिसके बाद दोनों में मार-पीट हुई. जबकि शुरुआती बयान में उसने कहा था कि लड़कियों को पप्पू के साथ देखने के फौरन बाद वो उनके परिवार वालों के पास भागा आया और उन्हें इस घटना की जानकारी दी. इसके बाद उन्होंने दोनों लड़कियों की तलाशी के लिए पुलिस से गुहार लगाई.
पोलीग्राफ जांच में उसने एक मोबाइल फोन होने की बात भी कबूल की, जिससे पहले उसने इंकार किया था. उससे मोबाइल फोन बरामद कर जांच के लिए भेजा गया, ताकि जानकारी मिल सके कि उसमें से कोई डेटा डिलीट तो नहीं किया गया है.
पूरे देश के ध्यान में आने के बाद भी ये मामला सालों से POCSO की अदालत में नतीजे का इंतजार कर रहा है. पीड़ित परिवारों के वकील कोकाब हसन नकवी के मुताबिक सीबीआई के मामला बंद करने की अपील के बाद अदालत ने आरोपी पप्पू यादव को पूछताछ के लिए समन भेजा था.
बचाव पक्ष के वकील ने सभी पांच आरोपियों से पूछताछ की मांग रखी और अदालत ने पांचों आरोपियों को पूछताछ के लिए समन भी भेजा. लेकिन मामला अब भी किसी नतीजे तक नहीं पहुंचा है और सभी पांचों आरोपी जमानत पर रिहा हैं.
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