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सोमवार, 12 दिसंबर को असम (Assam) के हैलाकांडी जिले में दो संगठनों से जुड़े कुल 1,179 ब्रू मिलिटेंट ने एक औपचारिक समारोह में 350 हथियारों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया. पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (स्पेशल ब्रांच) हिरेन चंद्र नाथ ने कहा कि आत्मसमर्पण करने वाले मिलिटेंट यूनाइटेड डेमोक्रेटिक लिबरेशन फ्रंट ऑफ बराक वैली (UDLF-BV) और ब्रू रिवोल्यूशनरी आर्मी ऑफ यूनियन (BRAU) से संबंधित थे.
राजेश चरकी के नेतृत्व में BRAU के कुल 634 सदस्यों और धन्याराम रियांग के नेतृत्व में UDLF-BV के 545 मिलिटेंट्स ने आत्मसमर्पण किया.
हिरेन चंद्र नाथ ने कहा कि इन दोनों समूहों के साथ शांति प्रक्रिया 2017 से चल रही थी. कुछ मतभेद थे, लेकिन मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के मार्गदर्शन में हम उन्हें बातचीत के लिए मना सके. अन्य औपचारिकताएं जल्द ही शुरू होंगी. हम प्रक्रिया को इस तरह आगे बढ़ाएंगे कि भविष्य में क्षेत्र में कोई नया मिलिटेंट ग्रुप नहीं बने.
उन्होंने दावा किया कि असम-मिजोरम सीमावर्ती क्षेत्रों के पास ब्रू-आबादी वाले अधिकांश गांवों में अभी तक विकास नहीं हुआ है और उन्होंने इन क्षेत्रों की बेहतरी के लिए सरकार से योजनाओं की मांग की है.
BRAU ने वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत समुदाय के लिए भूमि और राज्य में अनुसूचित जनजाति (मैदान) की स्थिति की मांग करते हुए मुख्यमंत्री को संबोधित मांगों का एक चार्टर भी प्रस्तुत किया.
ब्रू या रेयांग समुदाय के लोग मूल रूप से पूर्वोत्तर भारत के रहने वाले हैं, जो खास तौर से त्रिपुरा, मिजोरम और असम में जिंदगी बसर कर रहे हैं. ब्रू मिजोरम में मिजो और रियांग जनजाति के बीच हुई हिंसक झड़पों के बाद मिजोरम से आने वाली त्रिपुरा जनजाति रियांग के एक सशस्त्र संगठन का हिस्सा हैं.
साल 1995 में मिजोरम की ‘मिजो’ तथा ‘ब्रू’ जनजातियों के बीच हुए आपसी झड़प के बाद ‘यंग मिजो एसोसिएशन’ (Young Mizo Association) तथा ‘मिजो स्टूडेंट्स एसोसिएशन’ (Mizo Students’ Association) ने यह मांग रखी कि ब्रू लोगों के नाम राज्य की मतदाता सूची से हटाए जाए क्योंकि वे मूल रूप से मिजोरम के निवासी नहीं हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक त्रिपुरा में ब्रू समुदाय को विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह के रूप में पहचाना जाता है. मिजोरम में इन्हें जातीय संगठनों द्वारा टारगेट किया गया था, जिन्होंने मांग की थी कि ब्रू को मतदाता सूची से बाहर कर दिया जाए.
इसके बाद ब्रू समुदाय द्वारा समर्थित उग्रवादी समूह ब्रू नेशनल लिबरेशन फ्रंट (BNLF) तथा एक राजनीतिक संगठन ब्रू नेशनल यूनियन (BNU) के नेतृत्व में साल 1997 में मिजो जनजातियों के ग्रुप से हिंसक संघर्ष हुआ. इसके बाद लगभग 37 हजार ब्रू समुदाय के लोगों को मिजोरम छोड़ना पड़ा. इसके बाद उन्हें त्रिपुरा के शरणार्थी शिविरों में रखा गया.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक इसकी शुरुआत नागरिक सुरक्षा मंच नामक एक संगठन के ज्ञापन, प्रदर्शनों और प्रेस कॉन्फ्रेंस से हुई. ये विरोध हाईवे ब्लॉक करने और पुलिस के साथ हई हिंसक झड़पों तक बढ़ते गए.
त्रिपुरा स्थित एक संगठन मिजो कन्वेंशन ने संयुक्त आंदोलन समिति (JMC) नाम के एक मंच के साथ मिलकर ऐलान किया कि कंचनपुर में 1,500 से अधिक ब्रू परिवारों को बसने की अनुमति नहीं दी जाएगी.
1997 में ब्रू जनजाति के 37 हजार लोग जातीय संघर्ष के कारण मिजोरम से त्रिपुरा भाग गए. तब से पांच हजार मिजोरम लौट आए जबकि 32 हजार त्रिपुरा के शिविरों में ही जिंदगी गुजारने लगे.
पूर्ववर्ती त्रिपुरा शाही परिवार के वंशज और पूर्व में कांग्रेस के नेता प्रद्योत देब बर्मन की अध्यक्षता में स्वदेशी प्रगतिशील क्षेत्रीय गठबंधन (The Indigenous Progressive Regional Alliance-TIPRA) ने ब्रू के पीछे अपना समर्थन दिया और शांति का आह्वान किया.
दूसरी ओर विपक्षी कांग्रेस और सीपीएम ने पुलिस फायरिंग की आलोचना की थी.
ब्रू समुदाय के साथ लगातार हुई पुनर्स्थापन की कोशिशों में सफल नहीं होने के बाद केंद्र सरकार ने शरणार्थी शिविर में होने वाली खाद्य आपूर्ति को 1 अक्तूबर 2019 को बंद कर दिया. इसके साथ ही केंद्र सरकार ने ब्रू समुदाय के समक्ष एक अंतिम प्रस्ताव रखा कि जो परिवार 30 नवंबर 2019 से पहले वापस मिजोरम लौटने को तैयार हो जाएगा उसे 25 हजार रुपए की सहयोग राशि दी जाएगी. इसके बावजूद भी इस समुदाय के लोग वापस जाने को तैयार नहीं हुए.
खाद्य आपूर्ति रोकने के बाद 6 लोगों की मौत हो गई, जिसमें चार नवजात बच्चे भी शामिल थे. इन मौतों की वजह भुखमरी को बताया गया. हालांकि स्थानीय प्रशासन ने इस बात का इसका खंडन किया था.
साल 2018 में ब्रू समुदाय के नेताओं ने केंद्रीय गृह मंत्रालय तथा त्रिपुरा-मिजोरम राज्य सरकारों के साथ राजधानी दिल्ली में एक समझौता किया. इसके मुताबिक केंद्र सरकार ने ब्रू जनजातियों के पुनर्वास के लिये आर्थिक मदद तथा घर बनाने के लिये जमीन देने की बात मानी थी. इसके अलावा ब्रू समुदाय को झूम खेती करने की अनुमति, बैंक अकाउंट, राशन कार्ड, आधार कार्ड, अनुसूचित जनजाति प्रमाणपत्र आदि देने की बात हुई थी.
इसके बावजूद सिर्फ पांच हजार लोग ही वापस मजोरम जाने के लिये तैयार हुए. बचे हुए 35 हजार लोगों ने यह कहते हुए वापस आने से मना कर दिया कि समझौते के प्रावधान उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये पर्याप्त नहीं हैं. इसके साथ ही उन लोगों ने यह भी मांग रखी कि उन्हें एक साथ समूहों (Clusters) में बसाया जाए.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक जनवरी 2020 में केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों (त्रिपुरा-मिजोरम) और ब्रू प्रतिनिधियों द्वारा एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिससे बचे हुए 32 हजार ब्रू समुदाय के लोगों को राज्य में स्थायी रूप से बसने की अनुमति दी जा सके.
इसके कारण त्रिपुरा में बंगाली और मिजो समूहों ने विरोध प्रदर्शन किया. उनका दावा है कि उत्तरी त्रिपुरा जिले के कंचनपुर सब-डिवीजन में हजारों प्रवासियों को स्थायी रूप से बसाने से जनसांख्यिकीय असंतुलन होगा, स्थानीय संसाधनों पर दबाव बढ़ेगा और संभावित रूप से कानून और व्यवस्था की समस्याएं पैदा होंगी.
द प्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक त्रिपुरा की हमेशा से ये कोशिश रही है कि ब्रू समुदाय के लोग मिजोरम वापस चले जाएं क्योंकि वे बड़ी जनजातीय आबादी में जुड़ते हैं और राहत शिविरों द्वारा कब्जा की गई भूमि अधिवासित आदिवासियों के स्वामित्व में है.
ब्रू मिलिटेंट मुख्य रूप से मिजोरम, त्रिपुरा, असम के कुछ जिलों में ये एक्टिव थे. इसके अलावा मिजोरम-त्रिपुरा सीमा पर घने जंगल में ब्रू मिलिटेंट फिरौती, अपहरण, वसूली और ग्रेनेड के हमले में शामिल पाए गए.
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