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एक सौ से ज़्यादा मौतें और ये आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है. असम 122 सालों में सबसे भयानक बाढ़ से जूझ रहा है. लोग मर रहे हैं, हज़ारों लोगों का बुरा हाल हैं, घर बह गए हैं और शहर डूब गए है, फिर भी ये इस समय देश की सबसे बड़ी समस्या नहीं है, सिर्फ़ इतना ही नहीं, हम तो ये भी मान चुके है कि बाढ़ तो हर साल आती है, हर साल आएगी और लोग मरते रहेंगे.
पर अगर आप उन चंद लोगों में शामिल हैं जिन्होंने रुक कर ये सोचा हो कि आखिर ये बाढ़ हर साल आती क्यूं है? तो शायद आपका जवाब होगा खराब आपदा प्रबंधन या खराब शहर की योजना. बिलकुल, ये सब कारण ठीक हैं, लेकिन 122 सालों में सबसे भीषण बाढ़ होने के लिए ये वजह काफ़ी नहीं है. इतनी तबाही और बर्बादी के मुख्य कारणों में शामिल है जलवायु परिवर्तन.
इसलिए ताकि जब आप इन बाढ़ पीड़ितों को देख कर इनके लिए करुणा महसूस करें और आपको उस व्यवस्था पर गुस्सा आए जिसकी वजह से इनका ये हाल हुआ है, तो आपको ये याद रहे कि इस सब के पीछे क्लाइमेट चेंज का हाथ भी है, और इस से निपटना भी उतना ही ज़रूरी है.
जब तक हमें ये समझ नहीं आएगा कि ऐसी भीषण त्रासदी की वजह क्लाइमेट चेंज है और सरकारें इसे रोक भी सकती हैं, तब तक हम अपने नेताओं से इस पर काम करने की मांग नहीं करेंगे, जब तक जलवायु परिवर्तन हमारी चुनावी रैलियों में मुद्दा नहीं बनेगा, नेताओं के भाषणों का हिस्सा नहीं बनेगा. तब तक हम साल दर साल ऐसी त्रासदियों में मरने वालों के बढ़ते आंकड़े गिनते रहेंगे.
चलिए, अब मै भी जरा शांत हो कर आपको समझती हूं कि कैसे क्लाइमेट चेंज ने असम की बाढ़ को और बदतर कर दिया.
सबसे पहली बात ये बाढ़ सिर्फ असम या उत्तर पूर्व तक ही सीमित नहीं है उत्तर और उत्तरपूर्वी बंगलादेश के कम से कम 12 जिले भी बाढ़ की चपेट में है. नदियों का जलस्तर बढ़ रहा है और रिकॉर्ड तोड़ रहा है, और जल्द ही जलस्तर के नए रिकॉर्ड भी देखने को मिल सकते हैं भारत के सात उत्तर पूर्वी राज्यों, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, बिहार और झारखंड में.
मूल रूप से, क्लाइमट चेंज का मतलब है ग्लोबल वॉर्मिंग, जिसका मतलब है वातावरण का गर्म होना. ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से बंगाल की खाड़ी से आने वाली मानसून की हवाओं में नमी सोख कर चलने की क्षमता बाढ़ जाती है. गर्म हवा ज्यादा नमी सोख सकती है, वो भी लम्बे वक्त तक.
इसी के साथ हम दक्षिण-एशियाई के बारिश के पैटर्न को भी बदलता देख रहे हैं. इस क्षेत्र में बारिश आमतौर पर पूरे साल में होती है लेकिन अब बारिश का मौसम भी लम्बे वक्त तक सूखा रहता है और कुछ ही दिनों में जमकर बारिश हो जाती है. आने वाले समय में पूरे साल होने वाली बारिश कुछ ही दिनों तक सिमटती जाएगी बाढ़ का खतरा बढ़ता जाएगा.
हां बिल्कुल है, तापमान में हो रही हर आधा डिग्री की बढ़त से भी पूरे विश्व को फर्क पड़ता है और विशेषज्ञों का कहना है कि ”तापमान में हो रही हर एक डिग्री के बढ़ने से कुल बारिश की मात्रा लगभग 7% बढ़ जाएगी. मॉनसूनी इलाकों में ये इजाफा लगभग 10% तक होगा.”
इसी के साथ बारिश प्रति माह लगभग 6 से 7 % बढ़ गयी है, और ये स्थिति साल दर साल खराब ही होती जाएगी. ऐसी भीषण त्रासदियों की तीव्रता और आवृत्ति यानी वो कितनी बार आती हैं दोनों ही बढ़ती जाएंगी. IPCC रिपोर्ट भी यही कहती है कि अगर क्लाइमेट चेंज के बदलावों को रोकने के लिए सख्त कदम अभी नहीं उठाए गए तो हालात बिगड़ते जाएंगे और भविष्य और मुश्किल होता जाएगा खासकर उनके लिए जो असुरक्षित यानी ज्यादा खतरे वाले इलाकों में रह रहे हैं.
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