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देश में धर्म बदलकर मुस्लिम (Muslim) या ईसाई (Christian) बनने वाले अनुसूचित जातियों (Scheduled Castes) या दलितों (Dalits) को लेकर केंद्र सरकार एक बड़ा कदम उठा सकती है. केंद्र जल्द ही हिंदू (Hinduism), बौद्ध (Buddhism) और सिख (Sikh) धर्म को छोड़कर अन्य धर्मों में परिवर्तित होने वाले दलितों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति का अध्ययन करने के लिए एक राष्ट्रीय आयोग (National Commission) के गठन की तैयारी में है. कहा जा रहा है कि सरकार के इस कदम के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं.
चलिए आपको बताते हैं कि क्यों केंद्र सरकार इस मामले में राष्ट्रीय आयोग के गठन की तैयारी में है. इससे मुस्लिम-ईसाई बने दलितों को क्या फायदा होगा? देश में धर्मांतरित मुस्लिम- ईसाइयों के आरक्षण की क्या स्थिति है? इस मामले में अब तक क्या कदम उठाए गए?
भारत में अनुसूचित जातियों (Scheduled Castes) को आरक्षण देने का सबसे बड़ा कारण था 'छुआछूत'. देश में दलितों (Dalits) को हीन दृष्टि से देखा जाता था. इस समुदाय के लोगों को कई तरह की सामाजिक बुराइयों का सामना करना पड़ा. आज भी देश में दलित अत्याचार के मामले सामने आते रहते हैं.
1950 में इस प्रावधान के तहत पहला आदेश जारी किया गया था. उस वक्त इसमें केवल हिंदुओं को शामिल किया गया था.
1956 में सिख समुदाय की मांग के बाद अनुसूचित जाति कोटे के लाभार्थियों में दलित मूल के सिखों को शामिल किया गया.
1990 में सरकार ने दलित मूल के बौद्धों की इसी तरह की मांग को स्वीकार किया. सरकार ने अपने आदेश को संशोधित करते हुए कहा, "कोई भी व्यक्ति जो हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म से भिन्न धर्म को मानता है, उसे अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जाएगा."
जी नहीं. कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DoPT) की वेबसाइट के मुताबिक, "अनुसूचित जनजाति (ST) से संबंधित व्यक्ति के अधिकार उसके धार्मिक विश्वास से स्वतंत्र हैं." मंडल आयोग (Mandal Commission) की रिपोर्ट के क्रियान्वयन के बाद, कई ईसाई और मुस्लिम समुदायों को OBC की केंद्र और राज्य सूची में जगह मिली है.
देश में धर्मांतरित मुस्लिम और ईसाई दलितों को लेकर पिछली सरकार में कई तरह के प्रयास हुए हैं. लेकिन इन कोशिश को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका. 1990 के बाद इस मामले में संसद में कई विधेयक लाए गए. 1996 में संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश (संशोधन) विधेयक नाम से एक मसौदा तैयार किया गया, लेकिन मतभेदों की वजह से इसे संसद में पेश नहीं किया जा सका.
मई 2007 में रंगनाथ मिश्रा आयोग ने अपनी रिपोर्ट पेश की, जिसमें सिफारिश की गई कि अनुसूचित जाति का दर्जा पूरी तरह से धर्म से अलग कर दिया जाए और एसटी की तरह उसे धर्म-तटस्थ (Religion-Neutral) बनाया जाए. हालांकि तत्कालीन यूपीए सरकार ने इस सिफारिश को इस आधार पर स्वीकार नहीं किया कि जमीनी अध्ययनों (Field Studies) से इसकी पुष्टि नहीं हुई थी.
वहीं सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया कि धर्मांतरण के बाद दलित मुसलमानों और दलित ईसाइयों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं हुआ.
इस तरह के आयोग के गठन का कदम उन दलितों के लिए सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष लंबित कई याचिकाओं के मद्देनजर महत्व रखता है, जो ईसाई या इस्लाम में परिवर्तित होने के बाद एससी आरक्षण का लाभ चाहते हैं.
इस मामले में 30 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली 3 सदस्यीय बेंच ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को इस मुद्दे पर केंद्र सरकार का रुख पेश करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया है. इस मामले में अगली सुनवाई 11 अक्टूबर को होगी.
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय और कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के सूत्रों के मुताबिक, उन्हें ईसाई और इस्लाम धर्म अपनाने वाली अनुसूचित जातियों की स्थिति जानने के लिए एक पैनल बनाने के लिए हरी झंडी दिखा दी गई है. इस प्रस्ताव पर गृह, कानून, सामाजिक न्याय और वित्त मंत्रालयों के बीच बातचीच चल रही है.
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