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कुछ दिन पहले एक खबर आई कि दिल्ली के द्वारका में एक 17 साल की लड़की पर दो नकाबपोश लोगों द्वारा एसिड अटैक किया. वह नाबालिग लड़की स्कूल जा रही थी, लेकिन एसिड अटैक के बाद उसे सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया जहां पता चला कि वह 8 फीसदी तक झुलस गई, उसके चेहर और गर्दन में चोटें आई हैं.
वारदात वाले दिन ही दिल्ली पुलिस ने उन आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया था. पुलिस द्वारा कहा गया है कि आरोपियों ने ई-कॉमर्स वेबसाइट फ्लिपकार्ट पर एसिड खरीदा था. पुलिस के मुताबिक वारदात को अंजाम देने के लिए इस्तेमाल किया गया जिस एसिड का इस्तेमाल किया गया वह नाइट्रिक एसिड लग रहा है, लेकिन इसकी पुष्टि तब तक नहीं होगी, जब तक कि फोरेंसिक जांच पूरी नहीं हो जाती है.
इसके बाद हमारे सामने कुछ ऐसे सवाल खड़े हो जो काफी स्पष्ट हैं.
क्या 2013 से भारत में एसिड की ओवर-द-काउंटर बिक्री प्रतिबंधित नहीं है?
फ्लिपकार्ट पर एसिड कैसे बेचा जा रहा था?
एसिड सेलर (विक्रेता) के खिलाफ क्या कार्रवाई की जा सकती है, खासकर ऐसे मामले में अगर वह सेलर ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर हो?
घटना 14 दिसंबर की सुबह की है जब 12वीं कक्षा की छात्रा द्वारका स्थित अपने घर से स्कूल जाने के लिए निकली थी. मोहन गार्डन पुलिस स्टेशन में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 326 ए (एसिड के इस्तेमाल से जानबूझकर गंभीर चोट पहुंचाने) के तहत मामला दर्ज किया गया है.
ऑनलाइन एसिड खरीदे जाने के आरोपों को लेकर दिल्ली पुलिस ने एक दिन बाद ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म फ्लिपकार्ट को नोटिस भेजकर उससे सेलर (विक्रेता) और लेन-देन की जानकारी मांगी थी. द्वारका के डीसीपी हर्षवर्धन ने कहा है, "उनसे (फ्लिपकार्ट से) तेजाब की बिक्री से जुड़े नियमों का पालन करने को कहा गया है."
इसी दौरान एक बयान में फ्लिपकार्ट ने द क्विंट को बताया कि "जिस सेलर ने एसिड बेचा था उसे ब्लैकलिस्ट कर दिया गया है. इसके साथ ही इस मामले की जांच में जुटे संबंधित अधिकारियों को हम हर तरह से पूरा सपोर्ट कर रहे हैं."
2013 से भारत में बिना लाइसेंस के एसिड की ओवर-द-काउंटर बिक्री पर रोक लगा दी गई है, लेकिन 10 साल बाद भी अपराधी स्पष्ट तौर पर कानूनों को दरकिनार करते हुए ऑनलाइन शॉपिंग पोर्टल्स के माध्यम से एसिड मंगवा रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2013 में लक्ष्मी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया ऐसिहासिक मामले में एसिड अटैक सर्वाइवर्स को कानूनी सहायता प्रदान करने की पेशकश की थी. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने एसिड अटैक को जघन्य और गैर-जमानती अपराध के रूप में स्वीकारते हुए ऐसे मामले में 10 वर्ष तक की सजा के साथ-साथ एसिड की बिक्री और खरीद की जांच के लिए उचित कार्यवाही भी सुनिश्चित करने को कहा था.
सुप्रीम कोर्ट ने इन आवश्यकताओं को रेखांकित किया था :
ऐसे संस्थान जो एसिड बेचना चाहते हैं, उन्हें एसिड की बिक्री के लिए लाइसेंस लेना होगा.
उन संस्थानाओं को पॉइजन एक्ट (जहर अधिनियम), 1919 के तहत खुद को रजिस्टर्ड कराना होगा.
एसिड विक्रेताओं को एक रजिस्टर मेंटेन करना होगा, जिसमें एसिड के स्टॉक और बिक्री से संबंधित रिकॉर्ड होगा.
एसिड खरीदने वाले को सरकार द्वारा जारी फोटो पहचान पत्र प्रदान करना होगा, जिसमें खरीदार का पता अनिवार्य रूप से हो. इसके अलावा उसे यह भी बताना होगा कि वह किस लिए एसिड खरीद रहा है.
नाबालिगों को एसिड नहीं बेचा जा सकता है.
एसिड की अवैध खरीद-बिक्री पर अंकुश लगाया जा सके, इसके लिए राज्य और केंद्र शासित प्रदेश इन दिशानिर्देशों के ऊपर कानून बना सकते हैं.
अगर कोई भी व्यक्ति इन दिशानिर्देशों का उल्लंघन करता हुआ पाया जाता है, तो जिले के एसडीएम के पास एक औपचारिक शिकायत दर्ज की जा सकती है. ऐसे में एसडीएम द्वारा ऊपर बताए गए नियमों का उल्लंघन करने वाले दुकानदारों पर जुर्माना लगाया जा सकता है.
इसके अलावा इस नियम के मुताबिक दिल्ली में कोई भी व्यक्ति जो तेजाब या ऐसी कोई अन्य वस्तु बेचता है जो मानव त्वचा को नुकसान पहुंचा सकती है, तो उसे दिल्ली पुलिस के लाइसेंसिंग विभाग से लाइसेंस प्राप्त करने की अवश्यकता होती है और पुलिस कर्मियों द्वारा अपने व्यवसाय स्थान (परिसर) का उचित सत्यापन कराने के बाद हर साल लाइसेंस को रीन्यू कराने की जरूरत होती है.
2013 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से एसिड अटैक के मामलों की संख्या एक गंभीर और चिंताजनक तस्वीर दिखाती है, यह दर्शाती है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा बताए गए नियमों और दिशा-निर्देशों का या तो पालन नहीं किया जा रहा है या उनकी अनदेखी की जा रही है.
इसी साल अगस्त में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने संसद में एक सवाल का जवाब देते हुए कहा था कि 2018 से 2022 के बीच देश भर में महिलाओं पर एसिड अटैक के 386 मामले दर्ज किए गए हैं.
वहीं इसके पहले के आंकड़ों पर गौर करें तो 2014 से 2018 के बीच देश भर में एसिड अटैक के 1 हजार 483 मामले सामने आए हैं. भले ही पिछले तीन वर्षों में दर्ज मामलों की संख्या में गिरावट आई है लेकिन इसके बावजूद भी सजा बहुत कम (62 मामलों) मामलों में मिली है.
अतीजीवन फाउंडेशन एसिड अटैक सर्वाइवर्स के सशक्तिकरण और पुनर्वास के लिए काम करता है इसकी संस्थापक प्रज्ञा प्रसून ने द क्विंट को बताया कि "अभी भी एसिड आसानी से मिल रहा है, खासतौर पर दूर-दराज के इलाके जो मीडिया की चमक से दूर हैं, वहां यह सहजता से मिल जाता है, वहां दुकानदारों को एसिड की बिक्री से जुड़े कानूनों की जानकारी नहीं है."
प्रज्ञा प्रसून ने बताया कि भले ही आंकड़े यह दर्शा रहे हैं कि एसिड अटैक के मामलों में कमी आई है लेकिन कई बार विशेष रूप से घरेलू हिंसा के मामलों में पीड़ितों और सर्वाइवर्स द्वारा औपचारिक रूप से पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं कराई जाती है. प्रज्ञा प्रसून ने इस मामले में जो खराब कन्विक्शन दर है उस पर भी अफसोस जताया.
प्रज्ञा प्रसून खुद एसिड-अटैक सर्वाइवर हैं, वे कहती हैं कि "एसिड सर्वाइवर्स का परिवार एसिड पीड़िता का इलाज कराने के लिए अपनी सारी ऊर्जा और पैसे लुटा देता है. इलाज के बाद कोर्ट केस के लिए उसके पास बड़ी मुश्किल से कुछ बच पाता है. वहीं इन मामलों को छह महीने से एक साल के भीतर निपटा दिया जाना चाहिए लेकिन फास्ट ट्रैक अदालतों में सुनवाई होने के बावजूद भी ये (सुनवाई) चलती रहती हैं. अंतत: यह पूरी प्रक्रिया एसिड अटैक के अपराधियों को को सशक्त बनाती है."
जयाना कोठारी सुप्रीम कोर्ट की सीनियर एडवोकेट हैं और एसिड-अटैक पीड़ितों की पैरवी कर चुकी हैं, उन्होंने द क्विंट को बताया कि "मुझे नहीं लगता कि ये दिशानिर्देश पर्याप्त हैं. पहली बात तो यह है कि बहुत से लोगों को इन नियमों और दिशा-निर्देशों के बारे में पता ही नहीं है. अगर फ्लिपकार्ट जैसी बड़ी कंपनियां इतनी लापरवाह हैं, तो मुझे पूरा यकीन है कि केमिस्ट और दुकानदार भी इसको लेकर जागरूक नहीं हैं. इन दिशा-निर्देशों का बेहतर क्रियान्वयन हो इसके लिए जनता में इसको लेकर जागरूकता होना जरूरी है."
द क्विंट को ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म फ्लिपकार्ट ने एक बयान में बताया कि "जो प्रोडक्ट्स अपेक्षित मानकों का उल्लंघन करते हैं, फ्लिपकार्ट मार्केटप्लेस प्लेटफॉर्म उन प्रोडक्ट्स की बारीकी से निगरानी करता है और उन्हें हटाता है. ऐसे विक्रेता जो अवैध, असुरक्षित और प्रतिबंधित उत्पादों को बेचने में संलग्न पाए जाते हैं, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाती है."
भले ही फ्लिपकार्ट ने सेलर को ब्लैकलिस्टेड कर दिया और जांच में मदद करने के लिए सहमत हो गया है. लेकिन ये एक्शन पूर्व में उठाए गए एक निवारक कदम के बजाय घटना की जवाबी कार्रवाई है.
कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) ने ई-कॉमर्स दिग्गज फ्लिपकार्ट और अमेजन पर जमकर निशाना साधा है.
कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स ने अधिकारियों से आग्रह किया है कि इस तरह की चूक के मामले में ई-कॉमर्स लाइसेंस रद्द किया जाए और उन पर भारी जुर्माना लगाया जाए. इसके अलावा यह भी कहा गया है कि ई-कॉमर्स दिग्गजों को आईटी अधिनियम की धारा 79 के तहत डेटा मध्यस्थ (data intermediary) के तौर पर सुरक्षा की अनुमति नहीं दी जा सकती है, "क्योंकि वे वेयरहाउसिंग, एडवरटाइजिंग, डिलेवरी, लॉजिस्टिक, पेमेंट सेटेलमेंट आदि करते हैं जो डेटा मध्यस्थों के क्षेत्र में नहीं आते हैं."
इसी बीच, जयाना कोठारी ने कहा कि केवल "विक्रेता को ब्लैकलिस्ट करना पर्याप्त नहीं है."
उन्होंने कहा "ऐसे सेलर्स को फ्लिपकार्ट जैसी ई-कॉमर्स वेबसाइटों पर जगह नहीं मिल पाए यह सुनिश्चित करने के लिए कंपनियां आंतरिक तौर पर क्या कर रही हैं?"
सुप्रीम कोर्ट के वकील पंकज कुमार ने द क्विंट को बताया कि "प्रतिबंधित उत्पाद की बिक्री पर लागू होने वाले जो नियम खुदरा दुकानों में लगाए जाते हैं, आदर्श रूप से वे नियम ई-कॉमर्स सहित किसी भी प्रकार की बिक्री पर लागू होने चाहिए."
पंकज कुमार ने दिल्ली में अवैध रूप से एसिड बेचने वालों पर 50,000 रुपये के जुर्माने पर कहा कि "जब तक कि एक केंद्रीकृत निगरानी समिति का गठन नहीं किया जाता तब तक यह सुनिश्चित करने के लिए कोई सिस्टम नहीं है कि यह जुर्माना एसिड हमले के मामलों को रोकने में मदद कर रहा है."
पंकज कुमार ने कहा कि अपराध होने के बाद जांच शुरु करने और विक्रेता पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाने के लिए बहुत देर हो चुकी है; मौजूदा दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि इस पर रोक लगाने का कोई फैक्टर नहीं है, केवल अपराध की भरपाई की जा रही है.
दिल्ली महिला आयोग (DCW) की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने 14 दिसंबर को दिल्ली के गृह मंत्रालय को भेजे गए एक नोटिस में "दिल्ली में एसिड की बिक्री को विनियमित करने के लिए दिल्ली सरकार के आदेश के कार्यान्वयन में विफलता" की ओर इशारा किया. दिल्ली सरकार का आदेश क्षेत्र के एसडीएम को औचक निरीक्षण करने और उल्लंघन करने पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाने का अधिकार देता है.
आयोग द्वारा इस साल अक्टूबर में तैयार की गई एक रिपोर्ट से पता चला था कि एसिड की बिक्री को नियंत्रित करने के लिए दिल्ली के कई जिलों में नियमित निरीक्षण (इंस्पेक्शन) नहीं किया जा रहा था.
रिपोर्ट में बताया गया है कि "शहादरा और उत्तरी जिले के एसडीएम ने 2017 से लेकर अब तक एक भी निरीक्षण नहीं किया है."
रिपोर्ट में बताया गया है कि "2017 के बाद से पूर्व, उत्तर, नई दिल्ली, उत्तर पूर्व और शाहदरा जिले के एसडीएम ने कोई जुर्माना नहीं लगाया है. पिछले छह वर्षों में पश्चिम जिले ने अधिकतम – 9 लाख 90 हजार रुपये का जुर्माना वसूल किया है. उत्तर पश्चिम जिले ने केवल 20 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है. दिल्ली में 2017 से एकत्र की गई 36.5 लाख रुपये की जुर्माना राशि का उपयोग एसिड अटैक सर्वाइवर्स के पुनर्वास के लिए नहीं किया गया है."
प्रज्ञा प्रसून ने बताया कि "पूरी तरह से एसिड की बिक्री को रोकने के लिए एक राष्ट्रीय अभियान शुरू किया जाना चाहिए. और यह तभी संभव हो सकता है, जब भारत की केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारें इसे रोकने के लिए मिलकर काम करें. अब हमें अपने दैनिक जीवन में एसिड की जरूरत क्यों है? बाजार में बेहतर और सुरक्षित सफाई उत्पाद उपलब्ध हैं."
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