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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्र से मांग की है कि भारतीय नोट पर देवी-देवातओं गणेश और लक्ष्मी की तस्वीर लगाई जाए. इसके जवाब में सत्तारूढ़ बीजेपी ने केजरीवाल को ''हिंदू विरोधी'' ( बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने ऐसा कहा) और इसके साथ ही "कट्टर हिंदू" (बीजेपी आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने ऐसा कहा) बताया. वहीं करेंसी में देवी-देवताओं की फोटो की मांग को लेकर सवाल उठाते हुए कांग्रेस के मनीष तिवारी ने पूछा गांधी के साथ डॉ. अंबेडकर की तस्वीरें क्यों नहीं चुन सकते?
आगामी गुजरात चुनाव (2022 गुजरात विधानसभा चुनाव) को देखते हुए, भारतीय मुद्रा में हिंदू देवी-देवताओं को शामिल करने का ड्रामा जारी है. ऐसे में हमने एक नजर इस पर भी दौड़ाई कि साल दर साल आखिर भारतीय नोट में कैसे बदलाव आया है.
यहां हम इन सवालों के जवाब देने की कोशिश कर रहे हैं
इतिहास में धार्मिक चित्र यदि मुद्रा में प्रिंट किए गए थे तो वह चित्र कौन थे?
करेंसी में गांधीजी की फोटो कब शामिल की गई थी?
और ब्रिटिश शासन से आजाद होने के बाद से भारत में रुपये के नोट में कौन से बदलाव हुए हैं?
15 अगस्त, 1947 की मध्य रात औपनिवेशिक ब्रिटिश शासन से भारत को आजादी मिली. चूंकि उस समय भारत की मुद्रा ब्रिटिश पाउंड से जुड़ी हुई थी इसलिए तब भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के बराबर था. उस समय भारत के पास एक क्लियर बैलेंस शीट भी थी, जिसमें किसी प्रकार की विदेशी उधारी नहीं थी.
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के शब्दों में, "औपनिवेशिक व्यवस्था से आजाद भारत में करेंसी मैनेजमेंट का जो ट्रांजिशन था वह काफी सहज तरीके से हुआ था."
आजादी के बाद एक नए करेंसी नोट की जरूरत महसूस की जा रही थी, क्योंकि तब की मौजूदा नोटों में ब्रिटेन के शासक किंग जॉर्ज VI की तस्वीर थी. ऐसा डिफाल्ट रूप से था, क्योंकि भारत एक ब्रिटिश उपनिवेश था, इसलिए जॉर्ज VI भारत का भी सम्राट थे.
आजादी के बाद से लेकर भारत के गणराज्य बनने के बीच की अवधि में आरबीआई द्वारा जॉर्ज VI की तस्वीर वाली तत्कालीन नोटों को लगातार जारी किया जाता रहा.
भारत के गणतंत्र बनने से एक साल पहले यानी 1949 में भारत सरकार ने एक रुपये के नोट के लिए नया डिजाइन जारी किया.
जहां एक ओर जॉर्ज की तस्वीर को बदलने की जरूरत पर समान रूप से एक सुर में सहमति व्यक्त की गई थी, वहीं दूसरी ओर इस बात पर असहमति थी कि जॉर्ज के स्थान पर किसकी तस्वीर का चयन किया जाए. हालांकि प्रारंभिक तौर पर जो सुझाव प्राप्त हुए थे उसमें यह कहा गया था कि जॉर्ज की फोटो के स्थान पर गांधीजी की इस्तेमाल किया जाए. लेकिन अंतत: आरबीआई जॉर्ज के स्थान पर सारनाथ के अशोक स्तंभ की एक तस्वीर लगाने के निर्णय पर पहुंचा.
भारतीय रुपये के नोटों के डिजाइन में क्रमिक रूप से कैसे बदलाव हुआ इस पर आगे जानने से पहले यहां पर हम एक बात स्पष्ट करें.
भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 22 के तहत, भारत में बैंक नोट जारी करने के लिए अधिकृत एकमात्र निकाय आरबीआई है.
इसके अलावा, अधिनियम की धारा 25 में यह भी कहा गया है कि बैंक नोटों के डिजाइन, रूप और सामग्री को मंजूरी देने से पहले पहले केंद्र सरकार को आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड से अनुमोदन लेना होगा.
यह जानने के बाद आइए अब आगे बढ़ते हैं.
1950 में भारतीय गणराज्य ने विभिन्न रंग और डिजाइन में 2,5,10 और 100 रुपये मूल्य वर्ग का अपना पहला बैंक नोट जारी किया. मूल्य वर्ग की जो 1950 सीरीज जारी की गई थी उसमें नोट के पीछे हिरण, हाथी, बाघ, चिंकारे और अन्य स्थानीय जीवों की तस्वीरें शामिल थीं.
1953 में करेंसी नोटों पर हिंदी भाषा को प्रमुखता से प्रदर्शित करने का निर्णय लिया गया, तो वहीं आरबीआई ने इस सुझाव को माना था कि "रुपया" का बहुवचन "रुपये" हो.
1954 में आरबीआई ने 1,000 रुपये, 5,000 रुपये और 10,000 रुपये के उच्च मूल्य के रुपये के नोट जारी किए, जिसमें क्रमशः तंजौर मंदिर, गेटवे ऑफ इंडिया और सारनाथ के अशोक स्तंभ जैसे प्रमुख जगहों की तस्वीरे थीं.
2022 में रहने वाले हम में से अधिकांश लोग भारतीय करेंसी नोट पर गांधी को देखने की उम्मीद करते हैं, लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था.
1969 में, आरबीआई ने गांधीजी की 100 साल की जयंती के सम्मान में, उनकी स्मृति में एक यादगार डिजाइन सीरीज जारी की थी, जिसमें गांधीजी को महाराष्ट्र के सेवाग्राम आश्रम के सामने बैठे हुए दिखाया गया था.
1980 में, भारतीय करेंसी नोट में बदलाव हुआ, इसके तहत नोट की डिजाइन में देश की वैज्ञानिक उपलब्धियों और प्रगति को शामिल किया गया. करेंसी नोट में भारत के पहले उपग्रह आर्यभट्ट के प्रतीक और सागर सम्राटआयल रिग (1974 में अपतटीय ड्रिल करने वाला पहला भारतीय तेल रिग था) की तस्वीर शामिल थी.
1980 की करेंसी नोटों की सीरीज में हीराकुंड बांध और कृषि यंत्रीकरण की प्रगति की तस्वीर भी शामिल थीं.
कोणार्क चक्र, शालीमार गार्डन, मोर (भारत का राष्ट्रीय पक्षी) जैसे और अधिक भारतीय प्रतीकों को शामिल करते हुए छोटे मूल्यवर्ग के नोटों में भी बदलाव किया गया था.
1987 में 500 रुपये का नोट प्रस्तुत किया गया था, यह गांधीजी की तस्वीर वाली पहली आधिकारिक करेंसी बन गई जिसमें बार-बार गांधीजी की तस्वीर इस्तेमाल की जाने लगी.
1996 में, गांधी की तस्वीर वाली करेंसी नोटों की आधिकारिक सीरीज जारी की गई थी. इस नोट में एक नया वाटर मार्क, नेत्रहीनों के लिए इंटैग्लियो फीचर, सुरक्षा धागे और एक छिपी हुई तस्वीर सहित पहले से कई बेहतर सिक्योरिटी फीचर थे.
इसके चार साल बाद अक्टूबर और नवंबर 2000 में आरबीआई ने 1000 और 500 रुपये के नोट अपग्रेटेड सिक्योरिटी फीचर्स और गांधीजी की तस्वीर के साथ जारी किए.
गांधीजी की सीरीज वाली नोटों के पिछले हिस्से में हिमालय, संसद, कृषि यंत्रीकरण के साथ-साथ हाथी और बाघ जैसे जानवरों की तस्वीरें भी शामिल की गई थीं.
2005 में, इन नोटों के सिक्योरिटी फीचर्स को अपग्रेड किया गया, जिसके तहत वाइड कलर शिफ्टिंग मशीन-रीडेबल मैग्नेटिक विंडोड सिक्योरिटी थ्रेट्स और अलग-अलग नोटों को अलग पहचान देने के लिए संख्यात्मक बैक-टू-बैक रजिस्ट्रेशन शामिल था.
2011 में, यह निर्णय लिया गया था कि भविष्य में जो नोट शुरु किए जाएंगे उन सभी करेंसी नोटों में रुपये के सिम्बल (₹) को जोड़ा जाएगा.
2015 में, सरकार ने एक रुपये के नोट को रीइंट्रोड्यूस (फिर से शुरु) किया था.
लेकिन नवंबर 2016 में भारत को प्रभावित करने वाला सबसे बड़ा आर्थिक सुधार तब लागू किया गया जब 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया गया था और लीगल टेंडर के रूप में उन नोटों के स्टेटस को रद्द कर दिया गया था.
इसके तुरंत बाद, सरकार ने 2000 और 200 रुपये के नोट भी पेश किए थे, ये नोट भी गांधीजी की सीरीज वाले नोट थे.
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