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हर तरह के निवेश से पहले उसके बारे में ठीक-ठीक जानना बेहद जरूरी होता है और राइट्स इश्यू का विकल्प सामने आने के बाद खास तौर पर रिलायंस के शेयरधारकों के लिए यह आवश्यक हो गया है. ये इश्यू किस हालात में लाया जा रहा है, इसकी विशेषता क्या है, निवेशकों के पास क्या विकल्प हैं और उनका असर क्या होगा, इन सब बातों का गहरा ज्ञान होना जरूरी है क्योंकि ये किसी साधारण राइट्स इश्यू से एकदम अलग है.
राइट्स इश्यू के जरिए कंपनी अपने मौजूदा शेयरधारकों को नए शेयर खरीदने का प्रस्ताव देती है. इसलिए अगर आपके पास पहले से कंपनी के शेयर हैं तो स्वत: आप अतिरिक्त शेयर सब्सक्राइब करने यानी उसे पाने के हकदार बन जाते हैं. आम तौर पर बाजार में कंपनी के शेयर की कीमत में छूट के साथ राइट्स इश्यू किए जाते हैं और यही बात शेयरधारकों को लुभाती है क्योंकि इसके जरिए कम पैसों में उन्हें नए शेयर मिल जाते हैं. रिलायंस इंडस्ट्रीज के शेयरधारक 20 मई से 3 जून 2020 तक राइट्स इश्यू की इस प्रक्रिया में शामिल हो सकते हैं.
मौजूदा शेयरधारकों को दिए जाने वाले नए शेयर हमेशा किसी ना किसी अनुपात में दिए जाते हैं. इनका जिक्र 1:2 या 1:10 जैसे लहजों में किया जाता है. जहां कि पहला नंबर कंपनी से मिलने वाला शेयर होता है और दूसरा नंबर आपके पास मौजूद शेयर की संख्या होती है जिसके हिसाब से आपको ऑफर दिया जाता है.
मुमकिन है कि हर निवेशक के पास 15 के गुनाकार में ही शेयर मौजूद ना हों और कई तो ऐसे भी होंगे जिनके पास 15 से कम शेयर होंगे. ऐसे हालात में निवेशकों को राइट्स तभी मिलेंगे जब उनके पास कम-से-कम 15 या 15 के मल्टीपल में शेयर मौजूद हों. आंशिक तौर पर कोई भी भागीदारी नहीं दी जाएगी.
जैसे कि अगर किसी निवेशक के पास 32 शेयर हों तो उन्हें पहले 30 शेयर के लिए सिर्फ 2 नए शेयर लेने का अधिकार होगा, 32 में 2 शेयर को नजरअंदाज कर दिया जाएगा. ठीक इसी तरह अगर किसी निवेशक के पास पहले से 11 शेयर हों तो उन्हें एक भी नए शेयर का अधिकार नहीं होगा. निवेशकों को एक रियायत दी गई है कि कंपनी के शेयर बचे रहने की हालत में अगर वो आंशिक भागीदारी के आधार पर एक अतिरिक्त शेयर का आवेदन करते हैं तो आवंटन में उन्हें प्राथमिकता दी जाएगी.
आम तौर पर राइट्स इश्यू को स्वीकार करते ही उसकी कीमत अदा करनी होती है. हालांकि कंपनियां ये रकम किस्तों में भी मांग सकती हैं. रिलायंस इंडस्ट्रीज के मामले में भी ऐसा ही किया जा रहा है, जहां शुरुआत में सिर्फ 25 फीसदी रकम भुगतान करनी है बाकी हिस्सा बाद में दिया जा सकता है. जहां इश्यू की कीमत 1257 रुपये तय की गई है, निवेशक को राइट्स के सब्सक्रिप्शन के वक्त सिर्फ 314.25 रुपये देने होंगे. यानी राइट्स इश्यू के साथ शेयरों की पूरी कीमत नहीं मांगी गई है, उसका आंशिक भुगतान ही करना होगा.
अलग से होगी और इनके दाम भी अलग होंगे. जो निवेशक इन शेयरों को पूरी कीमत अदा से पहले ही बेचने का मन बना रहे हैं, उन्हें ये समझ लेना होगा कि इन शेयर के दाम भुगतान की गई रकम के हिसाब से ही तय होंगे. लंबे वक्त के लिए निवेश करने वाले लोगों के लिए रिलायंस इंडस्ट्रीज का ट्रेडिंग मूल्य ही मायने रखेगा क्योंकि वो राइट्स इश्यू के जरिए मिले शेयर की पूरी कीमत दे चुके होंगे और 1257 रुपये के भुगतान के बाद इसी कीमत पर उन्हें रिटर्न मिलेगा.
जिन निवेशकों को राइट्स शेयर का ऑफर मिला है, जिसे कि राइट्स का अधिकार भी कहा जाता है, वो कई तरह से इसका इस्तेमाल कर सकते हैं. निवेशक चाहें तो राइट्स इश्यू को पूरी तरह से सब्सक्राइब कर सकते हैं. इसके अलावा अगर वो चाहें तो कुछ और शेयर के लिए आवेदन भी कर सकते हैं. हालांकि वो उन्हें तभी आवंटित किया जाएगा जब दूसरे निवेशकों ने इश्यू को सब्सक्राइब ना किया हो. लेकिन इसकी कोशिश तो की ही जा सकती है. कुछ निवेशक ऐसे भी होंगे जो और पैसा नहीं लगाना चाहते, वो अपने राइट्स को किसी और बेच सकते हैं.
इसका मतलब ये है कि अगर आप रिलायंस इंडस्ट्रीज के शेयरधारक नहीं हैं फिर भी आपके हक में किसी दूसरे निवेशक के छोड़े गए राइट्स इश्यू में आप निवेश कर सकते हैं या स्टॉक एक्सचेंज से राइट्स के अधिकार खरीद सकते हैं. राइट्स एनटाइटलमेंट की कीमत का मसला थोड़ा पेचीदा होता है इसलिए इसकी बारीकियों को ठीक से देखना होगा.
एक संभावना ये भी है कि कोई निवेशक उसे मिले राइट्स इश्यू में से कुछ हिस्सा अपने पास रख सकता है और बाकी को किसी और के लिए छोड़ सकता है. इसलिए निवेशकों के पास कई तरह के विकल्प मौजूद हैं जिनका वो चुनाव कर सकते हैं.
किसी भी तरह का फैसला लेने से पहले निवेशकों को बिग पिक्चर पर नजर रखनी होगी, क्योंकि उनके पास विकल्पों की भरमार है. अपने होल्डिंग प्लान के हिसाब से उन्हें अपनी अलग रणनीति बनानी चाहिए. राइट्स इश्यू के तहत मिलने वाले शेयरों के लिए निवेशकों को भविष्य में बाकी रकम भी देनी होगी. जो निवेशक लंबे समय के लिए पैसा लगाना चाहते हैं उनके लिए भविष्य में कंपनी की विकास क्षमता ही मायने रखती है.
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