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ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) से जूझती धरती को क्लीन एनर्जी के एक बड़े स्रोत का उपहार देने के लिए वैज्ञानिकों ने एक और कदम आगे बढ़ा दिया है. अमेरिकी वैज्ञानिकों ने घोषणा की है कि उन्हें न्यूक्लियर फ्यूजन (Nuclear fusion) से ऊर्जा पैदा करने की दौड़ में एक बड़ी सफलता मिली है. मंगलवार, 13 दिसंबर को रिसर्चर्स ने पुष्टि की है कि पहली बार ऐसा हुआ है कि न्यूक्लियर फ्यूजन के रिएक्शन को शुरू करने में लगने वाली ऊर्जा से अधिक उन्हें रिजल्ट के रूप में वापस मिला है.
यहां हम आपको इस एक्सप्लेनर में इन सवालों का जवाब देंगे:
न्यूक्लियर फ्यूजन या परमाणु संलयन क्या है?
न्यूक्लियर फ्यूजन इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्शन कैसे काम करता है?
न्यूक्लियर फ्यूजन से बड़े स्तर पर बिजली कब और कैसे पैदा की जा सकती है?
न्यूक्लियर फ्यूजन से हो सकता है ग्लोबल वार्मिंग का इलाज?
क्या आपको पता है न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्शन की मदद से ही सूरज समेत अन्य सभी तारे ऊर्जा पैदा करते हैं, जो रौशनी के रूप में धरती तक आती है. न्यूक्लियर फ्यूजन के रिएक्शन में एटम/परमाणु के एक जोड़े बाहर से ऊर्जा प्राप्त करते हैं और आपस में मिलकर एक भारी परमाणु बन जाते हैं. इस प्रक्रिया में बाईप्रोडक्ट के रूप में बहुत सारी ऊर्जा निकलती है.
ध्यान रहे कि न्यूक्लियर फ्यूजन से ठीक उलट है न्यूक्लियर फिजन या परमाणु विखंडन. न्यूक्लियर फिजन में ऊर्जा की मदद से एक परमाणु को दो हिस्सों में तोड़ा जाता है. वर्तमान में न्यूक्लियर पावर प्लांट में बिजली पैदा करने के लिए न्यूक्लियर फिजन के रिएक्शन का ही उपयोग करते हैं.
दरअसल न्यूक्लियर पावर प्लांट में प्रयोग किए जाने वाले न्यूक्लियर फिजन रिएक्शन में बहुत सारे रेडियोएक्टिव कचरे निकलते हैं. ये खतरनाक होते हैं और इसे सैकड़ों सालों तक सुरक्षित रूप से स्टोर करना होता है.
साथ ही न्यूक्लियर फ्यूजन के लिए तेल या गैस जैसे जीवाश्म ईंधन की आवश्यकता भी नहीं होती है. यह ग्रीनहाउस गैसों को भी उत्पन्न नहीं करता है, जो जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार हैं.
इसकी बजाय अधिकांश न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्शन में हाइड्रोजन का उपयोग किया जाता है, जिसे समुद्री जल और लिथियम से बहुत ही कम खर्च में निकाला जा सकता है. इसका अर्थ है कि न्यूक्लियर फ्यूजन के लिए फ्यूल (हाइड्रोजन) की आपूर्ति लाखों सालों तक की जा सकती है.
जब हाइड्रोजन जैसे हल्के तत्व/एलिमेंट के दो परमाणुओं को गर्म किया जाता है यानी बाहर से ऊर्जा प्रदान किया जाता है तो वे दोनों आपस में हीलियम जैसा एक भारी तत्व बन जाते हैं. इस न्यूक्लियर रिएक्शन में भारी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है, जिसका उपयोग बिजली उत्पन्न करने के लिए किया जा सकता है.
लेकिन यह प्रक्रिया इतना भी आसान नहीं. एक ही तत्व के दो परमाणु को आपस में जोड़ना बहुत कठिन है. इसका कारण है कि उन दोनों के एक समान चार्ज होता है और वे स्वाभाविक रूप से एक दूसरे से दूर जाते हैं. यही कारण है कि इस प्रतिरोध/रेसिस्टेंस से पार पाने के लिए बहुत अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है. चूंकि सूरज की सतह पर गर्मी लगभग दस मिलियन डिग्री सेल्सियस की होती है, हाइड्रोजन के दो परमाणु को ऊर्जा आसानी से मिल जाती है.
अब इसी राह में एक बड़ी सफलता हाथ लगी है. अमेरिका की नेशनल इग्निशन फैकल्टी (NFI) ने घोषणा की है कि उसने 192-बीम लेजर की मदद से हाइड्रोजन की एक छोटी मात्रा को इतना ऊर्जा दे दिया जिससे लगभग इतनी ऊर्जा पैदा हुई जो 15 - 20 इलेक्ट्रिक केतली को पावर देने के लिए पर्याप्त थी.
इसका मतलब यह है कि पहली बार वैज्ञानिक लेजर द्वारा दी गयी ऊर्जा की तुलना में अधिक ऊर्जा पैदा करने में सफल हुए हैं.
यह सही है कि वैज्ञानिकों को पिछले कुछ सालों में न्यूक्लियर फ्यूजन के फील्ड में कई सफलता मिली हैं, लेकिन इसके बावजूद, बड़े पैमाने पर इससे बिजली पैदा करना मुश्किल काम है. अमेरिका के NFI ने जरूर 15 - 20 इलेक्ट्रिक केतली को पावर देने के लायक ऊर्जा पैदा कर दिया है लेकिन यह मात्रा इतनी कम है कि इतने में तो वो लेजर भी न बने जो इस एक्सपेरिमेंट में काम आया था. दूसरी तरफ इस पूरे प्रोजेक्ट पर 3.5 बिलियन डॉलर का खर्च आया है.
वैज्ञानिकों को अभी भी अधिक तेजी से और सस्ते में न्यूक्लियर फ्यूजन से बिजली उत्पादन पर काम करना है.
न्यूक्लियर फ्यूजन के साथ सबसे अच्छी बात है कि यह तेल या गैस जैसे जीवाश्म ईंधन पर निर्भर नहीं है. यह ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा देने वाली ग्रीनहाउस गैसों में से किसी को रिलीज भी नहीं करता है. साथ ही यह सोलर या पवन ऊर्जा की तरह मौसम की स्थिति पर भी निर्भर नहीं है.
अगर वैज्ञानिक न्यूक्लियर फ्यूजन की मदद से बड़े स्तर पर बिजली पैदा करने की स्थिति में आ जाए तो इससे दुनिया के तमाम देशों को 2050 तक "नेट जीरो" कार्बन उत्सर्जन के अपने लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिल सकती है.
(इनपुट- बीबीसी)
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