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इतनी गर्मी क्यों है? समझिए हीट वेव की स्थिति कैसे बन रही है

Heatwave तब कहते हैं जब दो या उससे ज्यादा दिन तक सामान्य से ज्यादा गर्मी रहती है.

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भारत
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धरती का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है. ऐसे में जिसे देखो वो इस भीषण गर्मी से परेशान है. गर्मी के सारे के सारे रिकॉर्ड टूटते चले जा रहे हैं. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है और इतनी गर्मी क्यों पड़ रही है ?

इतनी गर्मी क्यों है? द क्लाइमेट चेंज डिक्शनरी- हीट वेव

'लेकिन मार्च में मई जैसी गर्मी क्यों लग रही है? मार्च में लू यानी हीट वेव? इतनी ज्यादा गर्मी है!' अगर आपने ये बातें नहीं कही या नहीं सुना तो शायद मार्च की इस रिकॉर्ड तोड़ गर्मी पर मीम जरूर देखे होंगे.

लेकिन इतनी गर्मी है क्यों?

क्लाइमेट चेंज डिक्शनरी में हम इसी हीट वेव पर बात करेंगे...

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मार्च में, जब पंखे स्लो स्पीड में चल रहे थे, जब कूलर अभी ठीक ही कराए जा रहे थे और जब पसीने पाउडर, रूहअफजा और रसना के विज्ञापन अभी आने शुरू ही हुए थे, देश के कई हिस्सों में लू या हीट वेव चलने लगी.

हीट वेव तब कहते हैं जब दो या उससे ज्यादा दिन तक सामान्य से ज्यादा गर्मी रहती है, जब एक इलाके में ऐतिहासिक औसत से ज्यादा तापमान हो.

और जब हम ऐतिहासिक औसत से ज्यादा तापमान कहते हैं तो इसका मतलब ये नहीं है. ये गंभीर मसला है. इसका मतलब है इतना ज्यादा तापमान जो जान ले सकता है. और लोग मर रहे हैं. हर साल ये आंकड़ा बढ़ रहा है.

20 साल तक की गई एक स्टडी के मुताबिक दुनिया में हर साल 50 लाख से ज्यादा लोगों की मौत बढ़ते पारे के कारण हो रही है और आधे से ज्यादा मौतें एशिया में हो रही है.

भारत को विशेष चिंता की जरूरत है क्योंकि भारत ने पिछले डेढ़ दशक में अपने सबसे ज्यादा 15 गर्म सालों में से 12 देखे हैं

अभी तक हीट वेव के बजाय शीतलहर से ज्यादा ज्यादा मौतें हुई हैं लेकिन अब ये चीज बदल रही है.

क्यों?

बहुत दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है. ये जलवायु परिवर्तन यानी क्लाइमेट चेंज है.

हीट वेव के कारण हो रही मौतों में से एक तिहाई मौतें की वजह इंसानों के कारण दुनिया के बढ़ते तापमान से हो रही हैं. यानी इंसानों के कारण हो रहे जलवायु परिवर्तन की वजह से.

इसका मतलब ये नहीं है कि शीतलहर नहीं होती है. शीत लहर की स्थिति भी गंभीर होती जा रही है और मौतों की संख्या बढ़ती जा रही है.

इस भले इंसान की तरह अगर आप भी सोच रहे हैं कि अगर शीत लहर है तो धरती गर्म क्यों हो रही है.

ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण गर्मी भी बढ़ेगी और सर्दी भी. लेकिन आज हीट वेव पर ही बात करते हैं.

तो हीट वेव की स्थिति बनती कैसे है?

गर्म हवा हमेशा हीट वेव नहीं होती है. हीट वेव की स्थिति तब बनती है जब गर्म हवा फंस कर रह जाती है.

इसे समझने के लिए, आइए हम पांचवीं क्लास के साइंस के लेसन को याद करते हैं. एसी हमेशा कमरे की दीवार के सबसे ऊपर ही क्यों लगाए जाते हैं? क्योंकि गर्म हवा हल्की होती है और ऊपर जाती है, जैसे हॉट एयर बलून के साथ होता है और ठंडी हवा भारी होती है, इसलिए वह नीचे बैठ जाती है. इस प्रक्रिया से हवा प्रसारित होती जिससे गर्म हवा बाहर जाती है और ठंडी हवा अंदर रहती है.

कभी-कभी जब हवा हाई प्रेशर सिस्टम बनाती है, तो यह गर्म हवा जमीन से उठ नहीं पाती और नीचे ही फंस जाती है. हवा का इस तरह फंसना ही उसे हीटवेव बनाता है.

आमतौर पर जब गरमी होती है, तो गर्म हवा ऊपर उठती है, फिर बारिश होती है और गर्मी कम हो जाती है. लेकिन जब हवा ऊपर नहीं उठेगी तो बारिश नहीं होगी और फिर गर्मी हो जाएगी. काफी गर्मी.

भारत में जैसे-जैसे मौसम सर्दियों से गर्मियों में बदलते हैं, तो मार्च में थोड़ी गर्मी होना शुरू होती है, लेकिन यह केवल कुछ राज्यों में ही होता है. लेकिन इस साल ये कुछ राज्यों तक सीमित ना हो कर और ज्यादा राज्यों तक फैली. भौगोलिक रूप से अधिक भूभाग गर्म हो गया. ये गर्मी बढ़ने की वजह यानी हीटवेव बना.

और फिर अब उन कारणों से बारिश नहीं हुई जो मैंने अभी-अभी आपको बताईं. प्री मॉनसून बारिश नहीं हुई तो इसकी वजह से भी टेंप्रेचर और बढ़ गया जो पहले से बढ़ा हुआ था.

दुनिया भर में अफ्रीका के उप-सहारा क्षेत्र से लेकर अंटार्कटिका तक तापमान में बढ़ोतरी हुई है. ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन, प्रदूषण, जंगल की कटाई सहित वो सभी भयानक चीजें जो हम कर रहे हैं उसकी वजह से धरती के तापमान में वृद्धि हुई है. ग्लोबल वार्मिंग ने इन विसंगतियों को जन्म दिया है. जलवायु परिवर्तन से इस तरह की घटनाएं बढ़ी हैं.

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वैश्विक तापमान बढ़ने से जलवायु परिवर्तन और बदतर होता जा रहा है

वर्तमान में, हम पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.1 डिग्री सेल्सियस ऊपर हैं. इसने हमें पहले ही उस मुकाम तक पहुंचा दिया है जहां हम अभी हैं. यदि वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है, तो पृथ्वी की 14% आबादी हर पांच साल में कम से कम एक बार भीषण गर्मी की चपेट में आएगी.

अगर वैश्विक तापमान 1.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ता है तो हर 5 साल में कम से कम एक बार 1.7 अरब अतिरिक्त लोग भीषण गर्मी की चपेट में आएंगे.

और अगर 3 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है, तो सालाना वैश्विक हीटवेव 5 प्रतिशत से बढ़कर 80 प्रतिशत होने का चांस है. आशा करते हैं कि ऐसा न हो.

विश्व के देश लंबे समय से बढ़ते तापमान को सीमित करने की कोशिश कर रहे हैं. मौजूदा लक्ष्य इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोकना है. यह समझने के लिए कि हम इस तापमान वृद्धि को रोकने के लिए क्या कर रहे हैं, इसमें भारत की क्या भूमिका है और हमारा भविष्य कितना उज्ज्वल या अंधकारमय दिखता है. हमारे पिछले वीडियो देखें.

उपदेश का वक्त खत्म, चाहे ये आपको दूर की मुसीबत नजर आती हो लेकिन इसका असर आप पर भी पड़ रहा है. आपका बिजली का बिल अब पहले की तरह नहीं रहेगा, लिहाजा उसके लिए एक रिमाइंडर, ये आपके फैशन, आपकी छुट्टियों और अगर आप इस्तेमाल करते हैं तो आप घमौरियों का कौन सा पाउडर यूज करते हैं, ये सब बदलने वाला है.

(The Climate change dictionary से आपको हम क्लाईमेट चेंज पर ग्लोबल पॉलिटिक्स के बारे में आसान शब्दों में बताने की कोशिश करते हैं, तो देखना न भूलें.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

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