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हॉरिजॉन्टल रिजर्वेशन क्या है और ट्रांसजेंडर इसकी मांग क्यों कर रहे हैं?

Tamil Nadu के ट्रांस समुदाय की मांग है कि राज्य और केंद्र दोनों स्तरों पर रोजगार और शिक्षा में ट्रांसजेंडर समुदाय को हॉरिजोंटल आरक्षण दिया जाए.

मीनाक्षी शशि कुमार
कुंजी
Published:
<div class="paragraphs"><p>हॉरिजोंटल रिजर्वेशन क्या है और ट्रांसजेंडर इसकी मांग क्यों कर रहे हैं?</p></div>
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हॉरिजोंटल रिजर्वेशन क्या है और ट्रांसजेंडर इसकी मांग क्यों कर रहे हैं?

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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[यह खबर मूल रूप से 20 अप्रैल 2022 को प्रकाशित हुई थी. इसे 10 जनवरी 2024 को क्विंट हिंदी के आर्काइव से एक बार फिर प्रकाशित किया गया है, क्योंकि मद्रास हाई कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार से शिक्षा और सार्वजनिक रोजगार में ट्रांसजेंडर को 1% हॉरिजोंटल आरक्षण - Horizontal Reservation देने पर विचार करने का आग्रह किया गया है.]

17 अप्रैल 2023 को, 15 से अधिक ट्रांसजेंडर्स (Transgender) चेन्नई के कलैगनार करुणानिधि स्मारक के पास शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन कर रहे थे, जब उन्हें चेन्नई पुलिस ने "जबरन" हिरासत में ले लिया और उनके साथ "दुर्व्यवहार" किया. उसी शाम रिहा होने से पहले प्रदर्शनकारियों को एक सामुदायिक हॉल में ले जाया गया.

विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व दलित ट्रांस एक्टिविस्ट ग्रेस बानू और ट्रांस राइट्स नाउ कलेक्टिव ने किया, जो बानू द्वारा स्थापित ट्रांस लोगों का एक दलित बहुजन आदिवासी समूह है.

एक्टिविस्ट ग्रेस बानू को सोमवार, 17 अप्रैल को चेन्नई पुलिस ने हिरासत में लिया था.

(फोटो: एक्सेस्ड बाय क्विंट हिंदी)

दरअसल, उनकी मांग है कि राज्य और केंद्र दोनों स्तरों पर रोजगार और शिक्षा में ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए हॉरिजोंटल आरक्षण दिया जाए.

बानू ने क्विंट हिंदी को बताया कि, "करुणानिधि [तमिलनाडु के पूर्व सीएम] ट्रांस समुदाय के पहले समर्थकों में से एक थे, जिन्होंने हमारे लिए बहुत कुछ किया. लेकिन डीएमके [द्रविड़ मुनेत्र कड़गम] सरकार, जो ट्रांस-फ्रेंडली होने का दावा करती है, वह हमें हमारे अधिकार देने को तैयार नहीं है."

ट्रांस समुदाय के लोग सोमवार, 17 अप्रैल को चेन्नई में करुणानिधि स्मारक के पास विरोध प्रदर्शन कर रहे थे.

(फोटो: एक्सेस्ड बाय क्विंट हिंदी)

इससे पहले अप्रैल में, दिल्ली और मुंबई में ट्रांस लोगों ने भी सभी जातियों में हॉरिजोंटल आरक्षण की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किया था. वास्तव में, ट्रांस समुदाय सालों से इसके लिए लड़ रहा है - यहां तक ​​कि 2014 के NALSA फैसले से भी पहले से लड़ रहे है- जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों को ट्रांस लोगों को आरक्षण देने पर विचार करने का निर्देश दिया था.

तो, हॉरिजोंटल आरक्षण वास्तव में कैसे काम करता है? ट्रांस समुदाय इसके लिए क्यों लड़ रहा है? हॉरिजोंटल आरक्षण को लेकर क्या कानूनी लड़ाई है? चलिए हम समझाते हैं.

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हॉरिजोंटल आरक्षण क्या है?

हॉरिजोंटल आरक्षण यानी हर जाति में से कुछ फिसदी कटौती करते हुए अन्य कैटेगरी जैसे दिव्यांग जन, महिला आदि को आरक्षण देना. अगर कोई दिव्यांग जन दलित है तो अनुसूचित जाति से ही कटौती कर दलित दिव्यांग जन तो आरक्षण दिया जाएगा.

तमिलनाडु में ट्रांस लोगों की मांग है कि हॉरिजोंटल आरक्षण में ट्रांस की श्रेणी भी शामिल हो और इसके तहत शिक्षा और रोजगार में ट्रांसजेंडर लोगों के लिए एसटी, एससी, ओबीसी और सामान्य सीटों का एक प्रतिशत आरक्षित किया जाए.

बानू ने तर्क दिया कि, "हॉरिजोंटल आरक्षण कोई नई व्यवस्था नहीं है. इस तरह के आरक्षण सभी जाति श्रेणियों में महिलाओं और विकलांग लोगों को दिए जाते हैं. उदाहरण के लिए, एक दलित ट्रांस महिला को लें. वह दोगुनी उत्पीड़ित है, और इसलिए, उसे दोनों श्रेणियों में आरक्षण की आवश्यकता होगी. हॉरिजोंटल आरक्षण की कमी ट्रांस लोगों को अवसरों से वंचित करना है."

"विरोध प्रदर्शन में भाग लेने वाले अधिकांश ट्रांस लोग [17 अप्रैल 2023 को] तमिलनाडु लोक सेवा आयोग (टीएनपीएससी), तमिलनाडु यूनिफॉर्मड सर्विसेज रिक्रूटमेंट बोर्ड (टीएनयूएसआरबी), और तमिलनाडु राज्य पात्रता परीक्षा जैसी विभिन्न परीक्षाओं में शामिल हुए थे. वे सभी योग्य उम्मीदवार हैं लेकिन आरक्षण की कमी के कारण उन्हें नौकरियां नहीं मिल रही हैं."
ग्रेस बानू, दलित ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता

2021 में, कर्नाटक सिविल सेवा पदों के लिए रोजगार में ट्रांस लोगों को 1 प्रतिशत हॉरिजोंटल आरक्षण देने वाला भारत का पहला और एकमात्र राज्य बन गया है. इसका मतलब है कि हर जाति वर्ग में ट्रांस लोगों के लिए कम से कम 1 प्रतिशत सीटें आरक्षित होंगी.

यह समझने के लिए कि ट्रांस समुदाय हॉरिजोंटल आरक्षण पर जोर क्यों दे रहा है, हमें ट्रांस लोगों के लिए मौजूदा वर्टिकल आरक्षण व्यवस्था (एससी, एसटी, ओबीसी - ये वर्टिकल आरक्षण है) पर करीब से नजर डालनी होगी.

वर्टिकल आरक्षण के साथ क्या समस्याएं हैं?

बानू ने समझाया कि, "2014 के एनएएलएसए फैसले के बाद जिसमें ट्रांस लोगों को आरक्षण देने पर विचार करने की बात है - इसके बाद तमिलनाडु सरकार ने 2017 में ट्रांस समुदाय को 'सबसे पिछड़ा वर्ग' या एमबीसी श्रेणी में शामिल किया. यह ओबीसी श्रेणी के समान है."

हालांकि, उन्होंने कहा कि एमबीसी को एक अलग वर्टिकल श्रेणी के रूप में माना जाता है, और यदि एक दलित ट्रांस व्यक्ति को एमबीसी श्रेणी (ट्रांसजेंडर कोटा में) से आरक्षण मिलता है, तो उन्हें कोई एससी आरक्षण नहीं मिलेगा.

यानी ट्रांस समुदाय को 'सबसे पिछड़ा वर्ग' में शामिल किया गया और उसे एससी, एसटी, ओबीसी, EWS, सामान्य वर्ग के बराबर किया गया. इसका मतलब अगर कोई ट्रांस दलित हो तो उसे दलित ना मानकर केवल ट्रांस माना जाएगा और आरक्षण दिया जाएगा, जबकि ट्रांस लोगों की मांग है कि जाति के साथ साथ ट्रांस होने पर भी आरक्षण दिया जाए - जिसे हॉरिजोंटल आरक्षण कहते हैं.

"जो लोग एससी/एसटी श्रेणियों और ट्रांसजेंडर समुदाय दोनों में आते हैं, उन्हें दोनों श्रेणियों के तहत आरक्षण नहीं दिया जाएगा. इसके अलावा, जो ट्रांस लोग पहले से ही ओबीसी श्रेणी में आते हैं, उन्हें ट्रांसजेंडर कोटा में कोई अतिरिक्त लाभ नहीं मिलेगा."
ग्रेस बानू, दलित ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता

आरक्षण के इस तरीके के साथ एक अतिरिक्त समस्या यह है कि ट्रांस लोगों को आरक्षण के लिए अन्य ओबीसी के साथ प्रतिस्पर्धा करनी होगी, जिससे सीट पाने की संभावना कम हो जाएगी.

2021 में, केंद्र ने ट्रांसजेंडर लोगों को ओबीसी की सूची में शामिल करने के लिए एक कैबिनेट नोट भी पेश किया था.

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