"यह कुछ महीने पहले की बात है जब मुझमें सामाजिक और चिकित्सकीय रूप से बदलाव होना शुरू हो गया था. मैं हॉस्टल में इसलिए रहना चाहती थी क्योंकि मुझे बाहर ट्रांसफोबिया का अनुभव होने लगा था और जान का खतरा था." यह कहना है 27 वर्षीय जेना सागर (Zena Sagar) का जोकि एक ट्रांसवुमन हैं.
एक महीने की लंबी लड़ाई के बाद, 16 जून को आखिरकार उन्हें पश्चिम बंगाल के कोलकाता स्थित सत्यजीत रे फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट (SRFTI) के महिला छात्रावास में एक कमरा अलॉट किया गया.
जेना ने हाल ही में दुनिया के सामने अपनी पहचान का खुलासा किया है.
हालांकि उनकी यात्रा कठिनाइयों से भरी थी. जैसे कि हर दिन ट्रांसफोबिया का सामना करना, वित्तीय संकट और वूमेंस हॉस्टल में एक कमरे जैसी सुविधाओं के लिए एक अकेले संघर्ष करना.
जेना प्रतिष्ठित फिल्म संस्थान में सेकंड ईयर की छात्रा हैं. वे राजस्थान से हैं और दलित समुदाय से ताल्लुक रखती हैं.
उन्होंने 12 जून को द क्विंट से बात करते हुए कहा कि "मेरे पास परिवार से कोई फाइनेंसियल सपोर्ट नहीं है. पहले के दो साल तक मैं कॉलेज कैंपस के बाहर किराए के मकान में रह रही थी, लेकिन एक बार जब मैंने अपनी पहचान पर जोर देना शुरू किया, तब मुझे यह महसूस हुआ कि मुझ पर खतरा मंडरा रहा है."
इसके बाद ही उन्होंने हॉस्टल के लिए SRFTI का रुख किया, और यहीं से एक सुरक्षित स्थान पाने के लिए उनका अंतहीन संघर्ष शुरु हो गया.
जेना का कहना है कि भले ही उनके पास अभी ठहरने की जगह है, और एक या दो दिन में वे वहां शिफ्ट हो जाएंगी लेकिन उनका संघर्ष अभी भी जारी है.
वे कहती हैं कि "जब तक ट्रांसजेंडर छात्रों के लिए एक पॉलिसी नहीं बन जाती, तब तक मेरी लड़ाई जारी रहेगी. मुझे कमरा मिल गया, इससे मुझे राहत मिली है... अब आखिरकार मैं एक कमरे के लिए लड़ने के बजाय अपने कोर्स वर्क जैसी अन्य चीजों पर ध्यान देना शुरू कर सकती हूं."
यह अकेले जेना की कहानी नहीं है.
द क्विंट ने हैदराबाद यूनिवर्सिटी और पंजाब यूनिवर्सिटी की दो अन्य ट्रांसवुमेन से उनके कैंपस में उनके अपने अधिकारों के लिए लड़ाई के बारे में बात की. उस दौरान, दोनों ही एक सवाल के जवाब के लिए संघर्ष कर रही थी- "आखिर हम कहां ठहरें?"
"मुझसे कहा गया कि मैं वूमेंस हॉस्टल में रहने के लिए पात्र नहीं हूं."
जेना ने कहा कि जब उन्होंने SRFTI की प्रभारी अधीक्षक रीता ली से वूमेंस हॉस्टल में एक कमरे के संबंध में पूछा तो उन्होंने मना कर दिया.
जेना ने पुरानी घटना को याद करते हुए कहा कि "जब मैंने कमरे के संबंध में उनसे (रीता ली से) पूछा, तब उन्होंने मुझे ऊपर-नीचे देखा और कहा कि वह मुझे कमरा नहीं दे सकतीं. फिर हम एडमिन ऑफिसर के पास गए... मुझे उन्हें यह समझाना पड़ा कि मैं एक ट्रांसवुमन हूं. सबकुछ सुनने के बाद उन्होंने कहा कि इस मामले की जांच के लिए एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया जाएगा."
इसके बाद जेना ने रजिस्ट्रार के साथ-साथ पश्चिम बंगाल ट्रांसजेंडर बोर्ड को एक पत्र लिखा.
SRFTI के डायरेक्टर हिमांशु शेखर कठुआ ने 12 जून को द क्विंट से कहा कि "हम स्टूडेंट के आवेदन पर प्राथमिकता से प्रोसेस कर रहे हैं. हमें उम्मीद है कि हम जल्द ही इस मुद्दे को हल कर लेंगे."
दो दिन बाद, जेना को वूमेंस हॉस्टल में एक कमरा अलॉट कर दिया गया.
'किराए के घर में ट्रांसफोबिया और मौत के खतरे का सामना करना पड़ा'
जेना ने कुछ महीने पहले एक ट्रांसवुमन के रूप में अपनी पहचान पर जोर देना शुरू किया था. भले ही जन्म के समय उन्हें पुरुष (मेल) के तौर पर पहचान दी गई थी, लेकिन 27 वर्षीय जेना उस रूप में आइडेंटीफाई नहीं करती हैं. चार महीने पहले उन्होंने हार्मोन थेरेपी शुरू की थी.
जेना कहती है कि "इससे पहले, मैं एक छिपी हुई पहचान के साथ रह रही थी ..."
हालांकि जेना के बैचमेट और दोस्त सपोर्टिव हैं, लेकिन यह भावना बाहरी दुनिया में नहीं दिखती है.
जेना कहती हैं कि "मैं एक सिंगल रूम वाले अपार्टमेंट में रह रही थी. एक दिन मकान मालिक ने उस शख्स को देखा जिसे मैं डेट कर रही थी. उस दौरान मैं एक पुरुष वाली पहचान के साथ ही रह रही थी, जब मकान मालिक ने मुझे उसके साथ देखा ... तब उसने महसूस किया कि मैं एक क्वीयर हो सकती हूं. मुझे जान से मारने की धमकी मिली और मुझे वह घर छोड़ना पड़ा. उस समय मैं अपने जीवन के लिए डरी हुई थी."
इसके बाद जल्द ही, जेना दूसरे अपार्टमेंट में शिफ्ट हो गईं.
जेना कहती हैं कि "आगे चलकर मैंने कपड़ों के जरिए अपनी पहचान व्यक्त करनी शुरु कर दी थी. मकान मालिक ने मुझे जाने के लिए नहीं कहा था लेकिन मैं उनके हाव-भाव को देख कर यह समझ सकती थी कि वे सहज नहीं थे..."
यह वाला किराए का अपार्टमेंट कॉलेज से कुछ किलोमीटर की दूरी पर है और जेना देर रात आने-जाने में सुरक्षित महसूस नहीं करती हैं. जेना कहती है कि "कोर्स बहुत डिमांडिंग है और कभी-कभी हमें देर रात रुकना पड़ता है. इस वजह से मैं हॉस्टल रूम को बाकी जगह से ज्यादा पसंद करती हूं."
'पहले अधिकारियों को, फिर ट्रांसजेंडर वेलफेयर बोर्ड को लिखा'
जेना ने 15 मई को संस्थान के रजिस्ट्रार को एक पत्र भेजा जिसमें 2014 NALSA (नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी Vs यूनियन ऑफ इंडिया) के फैसले के अंश थे, जिसमें जिसमें ट्रांसजेंडर लोगों को 'थर्ड जेंडर' घोषित किया गया था और इस बात की पुष्टि की गई थी कि वे भी भारतीय संविधान के तहत दिए गए मौलिक अधिकारों के हकदार हैं.
जेना ने 'ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) नियम, 2020' का भी हवाला दिया, जोकि यह स्पष्ट करता है कि चिकित्सा हस्तक्षेप में किसी भी प्रकार का 'लिंग पुष्टिकरण चिकित्सा हस्तक्षेप' शामिल है.
अपनी वर्तमान जीवन स्थिति का जिक्र करते हुए जेना ने रजिस्ट्रार को लिखा कि "एक रेसीडेंसियल कोर्स में पढ़ने वाली छात्रा के रूप में ये स्थितियां मेरे लिए आदर्श नहीं हैं, क्योंकि मुझे सुरक्षा जैसी बुनियादी जरूरतों के बारे में विचार करना है, जोकि पढ़ाई के लिए अनुकूल वातावरण बनाने के लिए आवश्यक स्तंभ है."
रजिस्ट्रार को भेजे गए पत्र में जेना ने अपने एंडोक्रिनोलॉजिस्ट का पत्र अटैच करते हुए लिखा कि वह एक ट्रांस आईडी के लिए आवेदन करने की प्रक्रिया में है.
जेना अपने मुद्दों को लेकर पश्चिम बंगाल ट्रांसजेंडर वेलफेयर बोर्ड से भी संपर्क किया. बोर्ड ने मेल के जरिए जवाब दिया, जिसकी एक कॉपी क्विंट ने देखी है. मेल में दिए गए जवाब में लिखा था कि "जैसा कि आपने बताया SRFTI के अधिकारियों का व्यवहार बहुत ही ट्रांसफोबिक रहा है और उन्हें देश में मौजूदा ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के कानूनों की जानकारी नहीं है."
उन्होंने ट्रांसजेंडर प्रोटेक्शन एक्ट 2019 के तहत जेना के अधिकारों को दोहराया, जिसमें जेंडर डिस्फोरिया सर्टिफिकेट और एंडोक्रिनोलॉजिस्ट के पत्र की वैधता बताई गई है और इसके साथ ही कहा गया है कि भेदभाव-विरोधी नियम का पालन सभी शैक्षणिक संस्थानों में पालन किया जाना चाहिए.
SRFTI के डायरेक्टर हिमांशु शेखर कठुआ ने द क्विंट से कहा कि "इस समय, SRFTI के पास ट्रांसजेंडर छात्रों के लिए कोई विशिष्ट नीति नहीं है. हम समावेशिता को बढ़ावा देते हैं और ट्रांसजेंडर छात्रों का समर्थन करने के लिए नीतियों को (ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम के अनुरूप, ट्रांसपर्सन डेवलपमेंट बोर्ड और अन्य विश्वविद्यालयों से इनपुट लेकर) विकसित करने की दिशा में सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं."
हॉस्टल के बारे में उन्होंने कहा :
"हमारे संस्थान में सीमित क्षमता वाले दो छात्रावास (एक पुरुष छात्रों के लिए और दूसरा महिला छात्रों के लिए) हैं. आवेदन एवं रिक्ति के आधार पर वरिष्ठ छात्रों को छात्रावास में ठहरने के लिए प्राथमिकता दी जाती है. कुछ स्टूडेंट्स डे स्कॉलर के तौर पर अटेंड करते हैं. हम सक्रिय रूप से इस बात की खोज कर रहे हैं कि आवश्यकता को पूरा करने के लिए हॉस्टल्स/कैंपस में जेंडर-न्यूट्रल/इंक्लूसिव स्थान की पहचान कैसे की जाए."SRFTI के डायरेक्टर हिमांशु शेखर कठुआ
SRFTI के डायरेक्टर ने भेदभाव के दावों का खंडन करते हुए कहा कि जेना को हर संभव तरीके से सपोर्ट किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि वे "ठहरने के लिए उचित समाधान" खोजने की दिशा में काम कर रहे हैं और जल्द ही इस मुद्दे को सुलझा लिया जाएगा.
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फिल्म उद्योग में काम करने की जेना की इच्छा क्वीयर समुदाय के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने की उनकी इच्छा से प्रेरित थी. जेना वर्तमान में एक क्वीयर नैरेटिव वाली डॉक्यूमेंट्री पर काम कर रही हैं. वे कहती हैं कि "जेना के रूप में यह मेरी पहली फिल्म होगी."
"किसी और के द्वारा हमारा प्रतिनिधित्व करने के बजाय हमारे जैसे लोगों की वास्तविक प्रामाणिक कहानियां हमारे जैसों के द्वारा बताई जानी चाहिए."जेना सागर
जब जेना को ज्यादा मदद नहीं मिली, तो वह याशिका जैसे अपने समुदाय के अन्य लोगों से संपर्क किया.
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के सहारनपुर की रहने वाली याशिका ने पंजाब यूनिवर्सिटी से एचआर स्टडीज में मास्टर डिग्री हासिल की है. वहां, याशिका ने 'Inclusive Education for the LGBTQIA community in Higher Studies in India' टॉपिक पर क्वालिटैटिव रिसर्च किया है.
जब वह दुनिया के सामने आईं, तो उनका अनुभव भी जेना की तरह ही था. उन्होंने कहा कि “चूंकि मेरा परिवार ग्रामीण इलाके से है और लोगों को हमारे अधिकारों के बारे में पता नहीं है, इसलिए बहुत से लोग मुझे हेय दृष्टि से देखते थे. गांव में रिश्तेदार कहने लगे थे कि 'इसे तो भूत पकड़ लिया है!'
भले ही कैंपस में स्थिति थोड़ी बेहतर थी, लेकिन ट्रांसजेंडर छात्रों के लिए कोई नीति नहीं होने के कारण उन्हें वूमेंस हॉस्टल में कमरा नहीं दिया गया था, जबकि वह हॉस्टल की मेरिट लिस्ट में थीं.
याशिका का संघर्ष मार्च 2022 में शुरू हुआ. उन्होंने ट्रांसजेंडर वेलफेयर कमेटी और सामाजिक न्याय मंत्रालय को इस बारे में पत्र लिखा और पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की. जब बोर्ड और हाई कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप किया तो यूनिवर्सिटी ने उन्हें वूमेंस हॉस्टल में मुफ्त आवास और कैंपस में मुफ्त मेस की सुविधा प्रदान की.
याशिका ने द क्विंट से कहा कि
"कॉलेज के हमारे पहले के दो साल ऑनलाइन थे. मार्च 2022 में जब मैं कैंपस पहुंची तो मुझे आवास नहीं दिया गया. चूंकि मेरे पास रहने की कोई जगह नहीं थी, ऐसे में मैंने वीसी के ऑफिस के बाहर दो-तीन दिनों तक विरोध किया और वहीं रुकी... मेरे विभागाध्यक्ष (एचओडी) ने बहुत सपोर्ट किया और मेरी आर्थिक मदद भी की."
इसके अलावा एक अन्य ट्रांसवूमन की बात करें तो वह हैदराबाद यूनिवर्सिटी की 22 वर्षीय रितिक ललन हैं, जिन्हें पुरुषों के छात्रावास (मेन्स हॉस्टल) में एक अटैच्ड बाथरूम वाला सिंगल रूम दिया गया था.
मास्टर्स कोर्स की स्टूडेंट, जोकि अंबेडकर छात्र संघ (एएसयू) से संबंधित हैं, ने कहा, "जब तक मैंने कॉलेज ज्वाइन किया, तब तक मैंने सीख लिया था कि यूनिवर्सिटी स्पेस को कैसे नेविगेट करना है. मैंने अधिकारियों को लिखा, और मुझे पुरुषों के छात्रावास में एक गेस्ट रूम अलॉट कर दिया गया, यह प्राइवेट रूम था और इसमें एक अटैच वॉशरूम भी था... मैं कंफर्टेबल और सुरक्षित हूं."
ऋतिक GSCASH (जेंडर सेंसिटाइजेशन कमेटी अगेंस्ट सेक्सुअल हैरेसमेंट) की एक निर्वाचित प्रतिनिधि भी हैं. ऋतिक का कहना है कि छात्र राजनीति में प्रवेश करने के बाद लोगों ने उनका अधिक सम्मान किया.
वे (ऋतिक) कहती हैं कि "अभी भी ट्रांसफ़ोबिया है… कभी-कभी, गार्ड्स मुझे रोकते हैं और मुझसे पूछताछ करते हैं. इसमें उनकी गलती नहीं है, ऐसा जागरूकता की कमी की वजह से है. यूनिवर्सिटी स्पेस की जब कल्पना की जाती है तो उसके दायरे में ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकार नहीं आते हैं."
हॉस्टल में रहने के लिए संघर्ष करने के अलावा जेना, याशिका और ऋतिक ने ट्रांसजेंडर छात्रों के लिए छात्रावास में मुफ्त आवास की भी मांग की.
याशिका जोकि अनुसूचित जाति (SC) समुदाय से ताल्लुक रखती है, ने कहा कि "कुछ साल पहले, जब से मैं बाहर निकली हूं, तब से मैंने स्टॉकिंग के साथ-साथ मौखिक और शारीरिक दुर्व्यवहार का सामना किया है... मैं जातिवादी और इसके साथ ही ट्रांसफोबिक स्लर्स (भद्दे शब्द) सुनती थी. ऊपर से हमको हमारे परिवार का सपोर्ट नहीं है, ऐसे में हम पढ़ाई और हॉस्टल के लिए भुगतान कैसे करेंगे? आदर्श रूप से, सभी कॉलेजों को ट्रांसजेंडर स्टूडेंट्स के लिए मुफ्त आवास प्रदान करना चाहिए."
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