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Bandage कैसे बढ़ा सकता है कैंसर का रिस्क? घाव पर क्या लगाएं- जानें एक्सपर्ट सलाह

Forever Chemical: बैंडेज के इस्तेमाल से हो सकता कैंसर, चोट लगने पर ब्रांडेड बैंडेज नहीं तो क्या लगाएं?

अश्लेषा ठाकुर
फिट
Published:
<div class="paragraphs"><p>Cancer Causing Chemical: बैंडेज (ब्रांडेड) से कैसे होता है कैंसर?</p></div>
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Cancer Causing Chemical: बैंडेज (ब्रांडेड) से कैसे होता है कैंसर?

(फोटो:चेतन भाकुनी/फिट हिंदी)

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Bandage Can Cause Cancer: बैंडेज (ब्रांडेड) जिसे हम दशकों से घाव पर लगाते आ रहे हैं, उसमें कैंसर पैदा करने वाले केमिकल मिलने की बात कही जा रही है. इस स्टडी के बाद हम सभी के मन में एक सवाल उठने लगा, चोट लगने पर बैंडेज नहीं तो क्या लगाएं?

एक नई स्टडी के मुताबिक, क्यूरैड और बैंड-एड जैसे कुछ फेमस ब्रांडों के बैंडेज में नुकसान पहुंचाने वाली मात्रा में फॉरएवर केमिकल (Forever Chemical) या पीएफएएस (PFAS) होते हैं. इन केमिकलों को ग्रोथ, रिप्रोडक्शन, मोटापा और कई तरह के कैंसर से जुड़े हेल्थ रिस्क्स से जोड़ा गया है.

यह चौंकाने वाला खुलासा पर्यावरण स्वास्थ्य और उपभोक्ता निगरानी संस्था, ममावेशन और एनवायर्नमेंटल हेल्थ न्यूज की एक स्टडी में किया गया है.

क्या कहती है स्टडी? बैंडेज (ब्रांडेड) से कैसे होता है कैंसर? फॉरएवर केमिकल क्या है? चोट लगने पर बैंडेज (ब्रांडेड) की जगह क्या करें इस्तेमाल? फिट हिंदी ने इन सवालों के जवाब जाने कैंसर एक्सपर्ट्स से.

स्टडी में क्या कहा गया है?

नेशनल टॉक्सिकोलॉजी प्रोग्राम की पूर्व प्रमुख डॉ. लिंडा बर्नबॉम, टॉक्सिकोलॉजिस्ट द्वारा हाल में किए गए इस स्टडी से कुछ खास किस्म की बैंडेज (ब्रांडेड पट्टियां) और कैंसर के बीच संभावित संबंध के संकेत मिले हैं.

डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा फिट हिंदी से बताते हैं कि यह स्टडी 40 अलग-अलग प्रकार की गैर-पारंपरिक बैंडेज पर की गई है, जिसमें कॉमन व्हाइट रॉलर बैंडेज को शामिल नहीं किया गया था. इन नए बैंडेज में बैंड-एड और इसी से मिलती-जुलती दूसरी एढेसिव ड्रैसिंग्स को शामिल किया गया था.

"डॉ लिंडा बर्नबॉम की टीम ने पता लगाया कि 40 में से 26 ब्रैंड्स (65%) में पोलीफ्लूरोएल्किल सब्सटांस (PFAS) था, जिन्हें वातावरण और इंसानी शरीर में हमेशा बने रहने के लिए ‘फॉरएवर केमिकल्स’ कहा जाता है."
डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा, डायरेक्टर ऑफ सर्जिकल ओंकोलॉजी, सी के बिड़ला अस्पताल®, दिल्ली

बैंडेज के इन ब्रांडों में फ्लूओराइन (fluorine) की मात्रा अधिक है:

  • बैंड-एड

  • केयर साइंस

  • क्यूराड

  • सीवीएस हेल्थ

  • इक्वेट

  • फर्स्ट हनी

  • राइट एड

  • सोलिमो (अमेज़ॅन ब्रांड)

  • अप एंड अप फ्रॉम

  • टारगेट

मामावेशन का दावा है कि बैंडेज में पीएफएएस (PFAS) का इस्तेमाल ग्रीस और पानी को रोकने के लिए किया जाता है.

"ज्यादा समय तक टिके रहने के लिए वॉश-प्रूफ बैंड-एड में PFAS का उपयोग किया जाता है."
डॉ. मनीष सिंघल, सीनियर कंसलटेंट - मेडिकल ऑन्कोलॉजी, अपोलो कैंसर सेंटर, नई दिल्ली

बैंडेज (ब्रांडेड) से कैसे होता है कैंसर?

एक्सपर्ट बताते हैं कि ये ‘फॉरएवर केमिकल्स’ जिसके बैंडेज में अधिक मात्रा में मिलने की बात कही जा रही है, को पोलीफ्लूरोएल्किल सब्सटांस (PFAS) भी कहा जाता है. शरीर के संपर्क में आने पर यह बॉडी में मौजूद टिश्यू में स्टोर होते रहते हैं. चूंकि हमारा शरीर इन्हें तोड़ नहीं पाता, इस वजह से ये लंबे समय तक शरीर में मौजूद रहते हैं. यही कारण है कि इन रासायनिक पदार्थों को ‘फॉरएवर केमिकल्स’ कहा जाता है.

पीएफएएस (PFAS) के शरीर में जमा होने से लिवर और किडनी को नुकसान पहुंचता है, थाइरॉयड की समस्या हो सकती है, नवजात में जन्मजात डिसऑर्डर हो सकते हैं और साथ ही, ऑटोइम्यून रोगों समेत दूसरी कई स्वास्थ्य समस्याएं भी हो सकती हैं.

"कुछ मामलों में, पीएफएएस के लंबे संपर्क में रहने से कुछ खास तरह के कैंसर भी उन अंगों में पनप सकते हैं, जिनमें इन कैमिकलों का जमाव होता है."
डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा, डायरेक्टर ऑफ सर्जिकल ओंकोलॉजी, सी के बिड़ला अस्पताल®, दिल्ली

डॉ. मनीष सिंघल इस स्टडी पर सवाल उठाते हुए अपनी असहमति जताते हैं. डॉ. मनीष सिंघल कहते हैं कि ब्रांडेड बैंडेज की तुलना नॉन-स्टिक कुकवेयर जैसी चीजों से इंसानों में PFAS का पहुंचना ज्यादा चिंता की बात है. डेली प्रॉडक्ट्स में PFAS की मौजूदगी को देखते हुए, सिर्फ बैंडेज इस्तेमाल नहीं करने से खतरे को पूरी तरह से रोका नहीं जा सकता.

"मेरे ख्याल से बैंडेज में मिलने वाले PFAS से हमें कैंसर होने की बात सही नहीं है. बैंडेज पर PFAS का उद्देश्य बेहतर मजबूती प्रदान करना है और त्वचा से इसके अब्सॉर्प्शन संबंधित जोखिमों के लिए और डिटेल्ड स्टडी की आवश्यकता है."
डॉ. मनीष सिंघल, सीनियर कंसलटेंट - मेडिकल ऑन्कोलॉजी, अपोलो कैंसर सेंटर, नई दिल्ली
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⁠फॉरएवर केमिकल्स क्या होते हैं?

फॉरएवर केमिकल्स, पोलीफ्लूरोएल्किल सब्सटांस (PFAS) भी कहलाते हैं, फ्लोरीनयुक्त कंपाउंड होते हैं, जिन्हें हाई रेजिस्टेंस क्षमता के लिए जाना जाता है. आमतौर से इनका इस्तेमाल पानी, ग्रीस और तेल रोकने के लिए किया जाता है. यह वॉटरप्रूफ बैंडेज के लिए खासतौर से उपयोगी होता है. 

"उन बैंडेज में अक्सर पीएफएएस होता है, जो वॉटर-रेजिस्टेंट गुणों के लिए जाना जाता है. खुले घावों पर इन बैंडेज को इस्तेमाल करने को लेकर सवाल उठना स्वाभाविक है. बैंडेज में मौजूद पीएफएएस इन खुले घावों के जरिए खून में मिल सकता है और एक बार ब्लड फ्लो में इनके घुलते ही ये हमारे ब्रेन, लिवर, लंग्स, बोन्स और किडनी जैसे अंगों में घुसपैठ कर सकते हैं."
डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा, डायरेक्टर ऑफ सर्जिकल ओंकोलॉजी, सी के बिड़ला अस्पताल®, दिल्ली

चोट लगने पर ब्रांडेड बैंडेज की जगह क्या करें इस्तेमाल?

इस स्टडी के बाद हम सभी के मन में ये सवाल उठने लगा है कि चोट लगने पर ब्रांडेड बैंडेज नहीं तो क्या लगाएं?

डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा ने पारंपरिक तौर-तरीके वाले बैंडेज का विकल्प सुझाते हुए फिट हिंदी से कहा कि बतौर सर्जन वो घावों की देखभाल के लिए पारंपरिक तौर-तरीकों की ही सिफारिश करते हैं. इसके लिए कॉटन बैंडेज और एंटीसेप्टिक क्रीमों और सॉल्यूशंस को लगाया जाता है. इसे पट्टी करना कहते हैं और इसके कई फायदे हैं.

"मैं अपने अनुभवों से यह कह सकता हूं कि इस तरह की पारपंरिक पट्टी से भी वॉटरप्रूफ बैंडेज के जितना ही और कई बार बेहतर लाभ होता है. इसके अलावा, कमर्शियल बैंडेजों में मौजूद पीएफएएस केमिकल्स से जुड़े संभावित हेल्थ रिस्क को देखते हुए भी पारंपरिक तौर-तरीके ज्यादा फायदेमंद होते हैं."
डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा, डायरेक्टर ऑफ सर्जिकल ओंकोलॉजी, सी के बिड़ला अस्पताल®, दिल्ली

अपनी बात को पूरी करते हुए वे आगे कहते हैं, "हालांकि, अभी इस स्टडी से जुड़ी बड़ी तस्वीर सामने आने में समय है, लेकिन मेरा मानना है कि पारंपरिक तौर-तरीके अधिक फायदेमंद हैं. सबसे पहले तो यह कि वे सुरक्षित हैं, दूसरे, कमर्शियल वॉटरप्रूफ बैंडेज की तुलना में यह कम खर्चीला विकल्प होता है".

वहीं डॉ. मनीष सिंघल ने विकल्प तलाशने की जरूरत नहीं है कहते हुए कहा,

"मेरे ख्याल से, बैंडेज को किसी दूसरे विकल्प से बदलने की कोई आवश्यकता नहीं है. हर दिन के उत्पादों में PFAS के प्रसार को ध्यान में रखते हुए, PFAS के कारण बैंडेज से बचना शायद कैंसर के संपर्क के जोखिम को पूरी तरह से कम न करे."
डॉ. मनीष सिंघल, सीनियर कंसलटेंट - मेडिकल ऑन्कोलॉजी, अपोलो कैंसर सेंटर, नई दिल्ली

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