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Colon Cancer: युवाओं में खाने-पीने की आदतों में आए बदलाव से बढ़ रहा कोलन कैंसर का खतरा

Colorectal Cancer: कैंसर के कई मामले खराब लाइफस्टाइल के कारण सामने आ रहे हैं.

अश्लेषा ठाकुर
फिट
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<div class="paragraphs"><p>Colorectal Cancer Preventions: युवाओं में बढ़ रहा कोलोरेक्टल कैंसर</p></div>
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Colorectal Cancer Preventions: युवाओं में बढ़ रहा कोलोरेक्टल कैंसर

(फोटो:फिट हिंदी/istock)

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Colon Cancer In Young Indians: भारत में कोलन कैंसर समेत ज्यादातर कैंसर, जिन लोगों को प्रभावित करते हैं उनकी उम्र पश्चिमी देशों के मरीजों की तुलना में 10 से 15 साल कम होती है. हमारे देश में कैंसर के कई मामले खराब लाइफस्टाइल के कारण होते हैं और कोलन कैंसर भी इसका अपवाद नहीं है.

युवा भारतीयों में क्यों बढ़ रहा कोलन कैंसर? कोलन कैंसर पर डीएससीआई की स्टडी क्या कहती है? कोलन कैंसर और ब्रेस्ट कैंसर के जीन क्या एक से होते हैं? क्या हैं कोलन कैंसर के लक्षण? क्या हैं कोलोरेक्टल यानी कोलन कैंसर से बचाव के उपाय? फिट हिंदी ने एक्सपर्ट्स से जानें इन सवालों के जवाब.

युवा भारतीयों में क्यों बढ़ रहा कोलन कैंसर?

भारत में कोलन कैंसर समेत ज्यादातर कैंसर, जिन लोगों को प्रभावित करते हैं उनकी आयु पश्चिमी देशों के मरीजों की तुलना में 10 से 15 साल कम होती है.

डॉ. वेदांत काबरा फिट हिंदी को बताते हैं कि भारत और पश्चिमी देशों में कैंसर के मामलों में यह अंतर खराब लाइफस्टाइल (प्रोसेस्ड फूड और रेड मीट, जिसमें फैट अधिक और फाइबर कम होता है, जंक फूड की अधिक खपत, धूम्रपान और शराब का सेवन, मोटापा, व्यायाम की कमी, पर्याप्त आराम न करना और आहार में फलों और सब्जियों की पर्याप्त मात्रा में न होना), अधिक मानसिक तनाव जिसकी वजह से इम्यूनिटी घटती है, खाद्य पदार्थों में मिलावट और कैमिकल्स और कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल, की वजह से होता है.

"अनहेल्दी फूड से आंतों में पाए जाने वाले बैक्टीरिया पर असर पड़ता है और उसके कारण कैंसर वाले केमिकल पैदा होते हैं, जो बड़ी आंत की भीतरी परत को भी नुकसान पहुंचाते हैं."
डॉ. वेदांत काबरा, प्रिंसिपल डायरेक्टर– सर्जिकल ऑन्कोलॉजी, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम

कोलन कैंसर पर डीएससीआई की स्टडी बढ़ती है चिंता

2023 आई डीएससीआई की एक स्टडी के अनुसार, करीब 60% मरीज जिनमें रोग देखा गया, की उम्र 50 साल से कम थी. कई 31 से 40 साल की आयुवर्ग में थे.

"अक्सर मरीज रोग की एडवांस स्टेज में इलाज के लिए आते हैं और रोग के इस स्टेज में पहुंचने के बाद न सिर्फ इलाज काफी गहन होता है बल्कि मरीज के ठीक होने की संभावना भी कम हो जाती है."
डॉ. वेदांत काबरा, प्रिंसिपल डायरेक्टर– सर्जिकल ऑन्कोलॉजी, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम

डॉ. उदीप्त रे कहते हैं कि कोलन कैंसर के खतरे के लिए पांच कारक जिम्मेदार हैं और उसमें पर्यावरण में बढ़ता प्रदूषण भी परेशानी का कारण बन रहा है.

दिल्ली को देश के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है. पुरुषों और महिलाओं दोनों को अक्सर कम उम्र में ही लंग कैंसर की समस्या होती है और अधिकतर इसके पीछे प्रदूषण ही होता है. यहां रहने वाले जन्म से इन पोल्यूटेंट्स में सांस लेते हैं, जिससे हेल्थ पर काफी प्रभाव पड़ता है.

"डीएससीआई, दिल्ली की यह स्टडी सही मानी जाती हैं क्योंकि यह पर्यावरण प्रदूषण के थ्योरी से मैच करती है. यही प्रदूषण कोलन कैंसर का कारण भी बन सकता है और जेनेटिक्स में परिवर्तन ला सकता है."
डॉ. उदीप्त रे, निर्देशक-जीआई, जनरल सर्जरी और रोबोटिक सर्जरी, फोर्टिस आनंदपुर, कोलकाता

कोलन कैंसर और ब्रेस्ट कैंसर के जीन कुछ हद्द तक एक जैसे होते हैं

डॉ. उदीप्त रे जेनेटिक शिफ्ट की बात बताते हुए फिट हिंदी से कहते हैं, "हमने एक जेनेटिक शिफ्ट देखा है, जिसमें व्यक्ति (अधिकतर महिलाएं) तेजी से कम उम्र (एवरेज उम्र 30 वर्ष) में ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित हो रही हैं और क्योंकि स्तन कैंसर और कोलन कैंसर के जीन कुछ हद्द तक एक जैसे होते हैं, इसलिए कोलन कैंसर भी कम उम्र (30 से 40 वर्ष) में हो रहा है. इसका कारण खराब लाइफस्टाइल और पर्यावरण प्रदूषण हैं. जैसे कि आजकल, हम जो भोजन खाते हैं वह अक्सर केमिकल फर्टिलाइजर्स और कीटनाशक का उपयोग करके उगाया जाता है, जो हमारे शरीर में घुसकर कुछ जेनेटिक परिवर्तन भी कर रहा होगा. इस जेनेटिक शिफ्ट के लिए पर्यावरण प्रदूषण काफी हद तक जिम्मेदार है".

"हमने कई आइसोलेटेड जीन्स का पता लगाया है, जो कोलन कैंसर के कारण हैं. ये जीन आमतौर पर ब्रेस्ट कैंसर से जुड़े होते हैं. अगर ब्रेस्ट कैंसर की फैमिली हिस्ट्री है, तो ब्रेस्ट कैंसर के साथ-साथ कोलन कैंसर की भी जांच कराने की सलाह दी जाती है."
डॉ. उदीप्त रे, निर्देशक-जीआई, जनरल सर्जरी और रोबोटिक सर्जरी, फोर्टिस आनंदपुर, कोलकाता

ये भी हैं कोलन कैंसर के कारक:

  • इंफ्लेमेटरी बोवेल रोग

  • डाइटरी हैबिट्स

  • स्पेसिफिक सर्जरी का इतिहास, जैसे कि यूरेटेरोसिग्मोइडोस्टॉमी

  • स्ट्रेप्टोकोकस बोविस इन्फेक्शन

हालांकि, डॉ. उदीप्त रे सबसे कॉमन फैक्टर जेनेटिक और डाइट को मानते हैं. वहीं वो ये भी कहते हैं कि सामाजिक बाधाओं और पुरुष-प्रधान समाज में डॉक्टर तक पहुंचने के लिए मेल पार्टनर पर निर्भरता के कारण महिलाओं में कोलन कैंसर देर से पकड़ा जाता है.

55 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्तियों को रेक्टल या कोलोनिक रोगों के अर्ली डिटेक्शन के लिए सालाना सिग्मायोडोस्कोपी (sigmoidoscopy) जैसी नियमित जांच करानी चाहिए.

ब्रेस्ट ट्यूमर का पता लगाने के लिए 45 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं को सालाना मैमोग्राम कराने की सलाह देते हैं.

एक्सपर्ट भारत में इन कैंसरों के लिए स्क्रीनिंग प्रोग्रामों की कमी पर चिंता जताते हैं.
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देश में खाने-पीने की आदतों में आए बदलाव से बढ़ रही परेशानियां

एक्सपर्ट्स भारत में आए खापान के पैटर्न बदलाव, जिसमें फाइबर का सेवन कम और मांसाहारी भोजन के रूप में प्रोटीन की खपत बढ़ने की बात कहते हैं. कम फाइबर के सेवन से मूवमेंट्स अनियमित हो जाती है. मध्यम आयु वर्ग के पुरुषों के बीच यह एक आम चिंता का विषय है. यह समस्या महिलाओं में भी देखने को मिलती है.

इस कारण कैसे बढ़ रहे कोलन कैंसर के मामले?

डॉ. उदीप्त रे कहते हैं, "डाइटरी चैंजेस के कारण कोलन में बैक्टीरिया जमा हो जाते हैं. ये बैक्टीरिया खाए हुए प्रोटीन पर काम करते हैं. नाइट्रोसामाइन का बनाते हैं, जो प्रोटीन में नाइट्रेट से बना एक कार्सिनोजेनिक कंपाउंड है. जब बोवेल मूवमेंट्स अनियमित होता है, तो ये केमिकल्स सही तरीके से शरीर से फ्लश आउट नहीं हो पाते, जिससे कई बार कोलन में कैंसर सेल्स का विकास होता है".

क्या हैं कोलन कैंसर के लक्षण?

यहां दिये गए लक्षण कोलन कैंसर या आंतों से संबंधित किसी दूसरे रोग का भी संकेत हो सकते हैं. इसलिए इन्हें नजरंदाज न करें और जल्द से जल्द जांच कराएं.

  • मल में खून आना– मल में खून होना या अलग से खून बहना या काले रंग का मल 

  • पेट की परेशानी- बहुत अधिक गैस, पेट फूलना, पेट में गैस की वजह से दर्द की शिकायत, दस्त (डायरिया) होना और उसके बाद कब्ज की शिकायत 

  • बार-बार मल-त्याग की इच्छा होना- पेट साफ नहीं लगना और बार-बार बाथरूम जाना पर मल की बजाय म्युकस या खून के साथ म्युकस निकलना 

  • ⁠एनीमिया- लंबे समय तक खून निकलने के कारण एनीमिया की शिकायत होना जिसकी वजह से अक्सर थकान महसूस होती है

  • अचानक वजन घटना

  • कमजोरी लगना

कोलोरेक्टल यानी कोलन कैंसर से बचाव के उपाय

"हम जेनेटिक्स या पर्यावरण पॉल्यूशन को नियंत्रित नहीं कर सकते, हम अपने डाइट को मैनेज कर सकते हैं."
डॉ. उदीप्त रे, निर्देशक-जीआई, जनरल सर्जरी और रोबोटिक सर्जरी, फोर्टिस आनंदपुर, कोलकाता

आधे से ज्यादा कैंसर खराब लाइफस्टाइल के कारण होते हैं और कोलन कैंसर भी इसका अपवाद नहीं है. इसलिए कोलन कैंसर जैसे रोग से बचाव के लिए लाइफस्टाइल में सुधार लाना जरूरी हैं ताकि आपका शरीर, मन और दिमाग सेहतमंद रहें. 

  • किसी भी रूप में तंबाकू की लत न डालें (धूम्रपान/गुटखा),

  • शराब की लत से बचें 

  • हेल्दी फूड खाएं. लोकल मार्केट में मिलने वाले मौसमी खाद्य सामग्री से ताजा पकाया हुआ भोजन करें, जंक और प्रोसैस्ड फूड से बचें. रेड मीट, अधिक फैट वाले आहार से बचें, अपने आहार में ताजे फल और सब्जियां शामिल करें

  • पर्याप्त पानी पीयें

  • रेक्टल ब्लीडिंग को कभी भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. ऐसा होने पर मेडिकल हेल्प लेना जरूरी है 

  • नियमित रूप से एक्सरसाइज करें और अपना वजन कंट्रोल में रखें 

  • स्ट्रेस फ्री रहें, तनाव अधिकतर बीमारी के कई कारणों में से एक होता है.

  • फैमिली हिस्ट्री मे ब्रेस्ट कैंसर या कोलन कैंसर है, तो रेगुलर चेकअप करवाएं

"कोलन कैंसर को पूरी तरह से ठीक करने के लिए अर्ली डिटेक्शन जरूरी है. यहां तक कि शुरुआती स्टेज 2 में भी, अकेले सर्जरी ही क्यूरेटिव हो सकती है, जिससे कीमोथेरेपी की भी जरूरत नही पड़ती."
डॉ. वेदांत काबरा, प्रिंसिपल डायरेक्टर– सर्जिकल ऑन्कोलॉजी, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम

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