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Cancer Recurrence: क्या हर तरह का कैंसर दोबारा वापस आ सकता है? बता रहें एक्सपर्ट

Cancer Awareness: हाई ग्रेड कैंसर, जो काफी आक्रामक होते हैं, उनके दोबारा वापस आने की आशंका ज्यादा होती है.

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Cancer Recurrence Causes: कैंसर से ग्रस्त मरीजों की संख्या दुनिया भर में तेजी से बढ़ रही है. कई बार ऐसा भी होता है कि कैंसर के मरीज, इलाज कराने के बाद दोबारा इसके शिकार बन जाते हैं. एक्सपर्ट कहते हैं कि लगभग सभी प्रकार के कैंसर पर यह बात लागू होती है.

कैंसर सर्वाइवर को दोबारा कैंसर क्यों हो जाता है? क्या हर तरह का कैंसर दोबारा वापस आ सकता है? कैंसर दोबारा न हो इसके लिए क्या करना चाहिए? डॉक्टर कैंसर सर्वाइवर पर कैसे निगरानी रखते हैं? डॉक्टर से कब संपर्क करें कैंसर सर्वाइवर? फिट हिंदी ने कैंसर एक्सपर्ट से इन सवालों के जवाब जानें.

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 कैंसर सर्वाइवर को दोबारा कैंसर क्यों हो जाता है?

कैंसर दोबारा होने के चार प्रमुख कारण हैं.

  1. पहला कारण है कैंसर की स्टेज क्या है, जितनी जल्दी कैंसर पकड़ में आता है, उसके दोबारा पनपने की आशंका उतनी ही कम होती है.

  2. दूसरा, कैंसर का प्रकार है, हर कैंसर का बर्ताव अलग होता है और उसके इलाज के विकल्प और दोबारा होने के रिस्क भी अलग होते हैं.

  3. तीसरा महत्वपूर्ण पहलू होता है कि इलाज सही तरीके से और पूरा किया गया या नहीं. कई बार इलाज अधूरा छोड़ने या गलत थेरेपी का इस्तेमाल करने पर कुछ कैंसर कोशिकाएं शरीर में रह जाती हैं, जो कैंसर के दोबारा पनपने का कारण बनती हैं. 

  4. चौथा कारण होता है कुछ पर्यावरणीय या बाहरी कारण, जैसे कि तंबाकू का सेवन, जो कि कैंसर के मामले में आग में घी की तरह होता है.

इन कारणों को दूर कर कैंसर के दोबारा होने का खतरा काफी हद तक दूर हो सकता है.

कैंसर दोबारा न हो इसके लिए क्या करना चाहिए?

इलाज पूरा होने के बाद, ऑन्कोलॉजिस्ट मरीज को फॉलो-अप के बारे में पूरी जानकारी देते हैं. इसके लिए उन्हें नियमित रूप से (अक्सर 3 या 6 महीने के इंटरवल पर) अपने कुछ खास ब्लड टेस्ट और अल्ट्रासाउंड जैसे इमेजिंग स्कैन करवाने होते हैं.

मरीज को अपने हेल्थ के लिए डॉक्टर के इस संबंध में दिए गए सभी निर्देशों का पूरा पालन करना चाहिए और नियमित रूप से हॉस्पिटल के विजिट और इलाज करने वाले डॉक्टरों की टीम द्वारा बताए गए टेस्ट करवाने चाहिए.

कैंसर सर्वाइवर पर निगरानी रखने में मददगार ये तकनीक

हाल के समय में टैक्नोलॉजी के क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है, जैसे कि लिक्विड बायप्सी जैसे विकल्प सामने आ रहे हैं, जिनसे मरीज पर निगरानी रखी जा सकती है.

लिक्विड बायप्सी की मदद से ब्लड सैंपल में कैंसर कोशिकाओं या कैंसर डीएनए का पता लगाया जाता है. इस टैक्नोलॉजी से आने वाले समय में कैंसर का समय रहते पता चलना आसान होगा. कैंसर डायग्नॉसिस के समय और इलाज की प्रक्रिया पूरी होने पर ब्लड में ट्यूमर कोशिकाओं या ट्यूमर डीएनए की मौजूदगी का पता चलता है.

"इलाज पूरा होने के बाद, इन मार्कर्स की लगातार निगरानी करने से कैंसर के दोबारा होने के जोखिम का पता लगाया जा सकता है और यह लक्षणों के उभरने या स्कैन्स में रोग के लक्षण दिखायी देने से पहले हो सकता है. "
डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा, डायरेक्टर ऑफ सर्जिकल ओंकोलॉजी, सी के बिड़ला अस्पताल, दिल्ली

लिक्विड बायप्सी से कैंसर पर निगरानी रख इसका जल्द पता लग सकता है और यह रोग के दोबारा सामने आने से पहले ही इलाज में मददगार होता है.

 ⁠डॉक्टर से कब संपर्क करें कैंसर सर्वाइवर?

ओरल कैंसर सर्वाइवर को इन लक्षणों का ध्यान रखना चाहिए जैसे कि अगर आवाज खराब होने लगे या दवाइयों के इस्तेमाल के बावजूद आपको ऐसा लगे कि अल्सर ठीक नहीं हो रहा है या गर्दन में कुछ गांठे बार-बार पैदा हो रही हैं, तो तत्काल अपने डॉक्टर से सलाह लें. 

इसके अलावा कैंसर सर्वाइवर को इन लक्षणों पर नजर बनाए रखना चाहिए:

  • बिना किसी कारण वजन कम होना

  • भूख न लगना या लगातार दर्द रहे

  • पीलिया

  • कमजोरी 

  • सांस लेने में कठिनाई

  • अपच

इन जैसी कोई भी समस्या हो जिसका कारण समझ में नहीं आ रहा हो तो डॉक्टर से संपर्क करें.

क्या हर तरह का कैंसर ⁠दोबारा वापस आ सकता है? 

एक्सपर्ट कहते हैं कि यह काफी हद तक इस बात पर निर्भर है कि कैंसर किस प्रकार का है और उसके दोबारा वापस आने की क्षमता कितनी होती है.

"हेपेटोबिलरी और पैंक्रियाटिक कैंसर आमतौर पर काफी आक्रामक किस्म के होते हैं और दूसरे सॉलिड कैंसर जैसे कि ब्रैस्ट कैंसर की तुलना में इनके दोबारा वापस आने की आशंका अधिक होती है."
डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा, डायरेक्टर ऑफ सर्जिकल ओंकोलॉजी, सी के बिड़ला अस्पताल, दिल्ली

लेकिन हर प्रकार के कैंसर में भी अलग-अलग खास फैक्टर होते हैं, जो उनके दोबारा होने या न होने की आशंका को प्रभावित करते हैं. 

कैंसर को उनकी अलग-अलग विशिष्टताओं (specifications) के आधार पर अलग-अलग कैटेगरी में रखा जाता है, जैसे कि कुछ लो ग्रेड कैंसर होते हैं जो धीरे-धीरे फैलते हैं और उनका इलाज करना भी आसान होता है. इसके उलट, कुछ हाई ग्रेड कैंसर होते हैं, जो काफी आक्रामक होते हैं और उनके दोबारा वापस आने की आशंका भी ज्यादा होती है.

लगभग सभी प्रकार के कैंसर पर यह बात लागू होती है. जैसे हाई ग्रेड ब्रेस्ट कैंसर में लो-ग्रेड कैंसर की तुलना में ज्यादा जोखिम होता है, यही बात सर्वाइकल या ओरल कैंसर पर भी लागू होती है.

"एक और बात जो याद रखनी चाहिए वह यह कि कैंसर का डायग्नॉसिस किस स्टेज में किया गया था क्योंकि इस बात का भी असर उसके वापस लौटने पर पड़ता है. एडवांस स्टेज (3 या 4) का कैंसर शुरुआती स्टेज (1 या 2) के कैंसर की तुलना में दोबारा वापस आने की अधिक आशंका रखते हैं.".
डॉ. मनदीप सिंह मलहोत्रा, डायरेक्टर ऑफ सर्जिकल ओंकोलॉजी, सी के बिड़ला अस्पताल, दिल्ली

इस बात से यह साफ है कि शुरू में कैंसर का पकड़ में आना और जल्दी इलाज शुरू होना कैंसर को कंट्रोल करने के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण होता है और यह दोबारा कैंसर के लौटने की आशंका को भी घटता है.

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