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Anaemia In Pregnancy: प्रेगनेंसी में हीमोग्लोबिन कम हो जाए तो क्या करें?

हमारे यहां हीमोग्लोबिन के स्तर का पता चलना भी मुश्किल है. कारण है लोगों में जांच को ले कर गंभीरता की कमी.

अश्लेषा ठाकुर
फिट
Published:
<div class="paragraphs"><p>Anaemia In Pregnancy: हीमोग्लोबिन की कमी से मां और बच्चे दोनों को खतरा रहता है</p></div>
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Anaemia In Pregnancy: हीमोग्लोबिन की कमी से मां और बच्चे दोनों को खतरा रहता है

(फोटो: चेतन भाकुनी/फिट हिन्दी)

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एनीमिया (Anaemia), देश की गर्भवती महिलाओं में एक बड़ी समस्या बना हुआ है. जहां प्रेगनेंसी के दौरान महिलाओं को गर्भ में पल रहे शिशु और अपने लिए दोगुना पोषण की जरूरत होती है, वहीं हमारे देश की 15-49 वर्ष की 52.2% गर्भवती महिलाएं एनीमिक हैं.

गर्भावस्था में हीमोग्लोबिन कम होने के कारण क्या हैं? गर्भवती महिला में एनीमिया के क्या लक्षण दिखते हैं? प्रेगनेंसी में एनीमिया के रिस्क फैक्टर क्या हैं? हीमोग्लोबिन कम होने पर क्या करें? फिट हिन्दी ऐसे ही जरूरी सवालों के जवाब लाया है इस आर्टिकल में.

एनीमिया किसे कहते हैं?

एनीमिया शब्द आपने कई बार और कई लोगों से सुना होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसका मतलब क्या है? एनीमिया का मतलब है, शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं (रेड ब्लड सेल) की कमी होना. ऐसा तब होता है, जब शरीर में रेड ब्लड सेल के बनने की दर उनके नष्ट होने की दर से कम हो होने लगती है. ऐसा होने के कई कारण होते हैं और उनकी वजह से व्यक्ति को कई तरह की परेशानियां झेलनी पड़ती हैं.

"एनीमिया का मतलब होता है, खून की कमी. इसका पता हमें तब चलता है, जब मरीज का हीमोग्लोबीन कम आता है. अगर हीमोग्लोबीन 11.0 g/dl से कम है या 9 g/dl और 11g/dl के बीच है, तो इसको हम माइल्ड एनीमिया बोलते हैं. 9 g/dl के नीचे मॉडरेट एनीमिया और 6 g/dl के नीचे सीवियर एनीमिया होता है. एनीमिया खून की कमी से होता है."
डॉ. प्रतिभा सिंघल, निदेशक और वरिष्ठ सलाहकार- प्रसूति एवं स्त्री रोग, क्लाउड नाइन ग्रुप ऑफ हॉस्पीटल्स, नोएडा
ग्लोबल न्यूट्रीशन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में  51% महिलाएं गर्भ धारण के दौरान एनीमिया से ग्रस्त होती हैं.

हीमोग्लोबिन किसे कहते हैं?

हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं (रेड ब्लड सेल) को बनाने वाला एक मेटल प्रोटीन है, जो ऑर्गन्स को ऑक्सीजन युक्त रक्त पहुंचाने का काम करता है और कार्बन डाइआक्साइड को फेफड़ों तक पहुंचाता है. हीमोग्लोबिन की कमी की वजह से शरीर में थकान महसूस होती है. ऐसा इसलिए क्योंकि शरीर में आयरन की मात्रा कम हो जाती है, जिसकी वजह से ऑर्गन और ऊतकों में ऑक्सीजन की सही मात्रा सप्लाई नहीं हो पाती है.

"जो महिलाएं एनीमिया ग्रसित होती हैं, वो सामान्य लोगों की अपेक्षा में ज्यादा सोती हैं. एनीमिया गर्भवती महिलाओं में ही नहीं बल्कि किशोर-किशोरियों और बच्चों में भी पाया जाता है. हीमोग्लोबिन की कमी व्यक्ति की क्वालिटी ऑफ लाइफ को प्रभावित करती है.
डॉ. प्रतिमा मित्तल, हेड, आब्सटेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी, अमृता हॉस्पिटल, फरीदाबाद

क्या हैं प्रेगनेंसी में हीमोग्लोबिन की कमी के कारण?

प्रेगनेंसी में हीमोग्लोबिन की कमी का मुख्य कारण शरीर में आयरन की कमी होती है. इसके दूसरे कारण फॉलिक एसिड या विटामिन बी12 जैसे विटामिन की कमी भी हो सकती है. भारत में करीब 50 से 60% एनीमिया आयरन की कमी की वजह से ही होती है. कृमि संक्रमण (वॉर्म इंफेस्टेशन) के कारण भी हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है.

गर्भावस्था में शरीर की डिमांड बहुत ज्यादा हो जाती है. क्योंकि शिशु शरीर के अंदर बन रहा है और उसकी अपनी डिमांड होती है. सामान्यतया हमें 10 मिलीग्राम आयरन रोज चाहिए होता है लेकिन गर्भावस्था के समय यह डिमांड बढ़कर 27 मिलीग्राम प्रतिदिन हो जाती है.

"शिशु की अपनी डिमांड है, मां के शरीर के टिश्यू चेन्जेज हो रहे हैं उसकी अपनी डिमांड है. खून का वॉल्यूम बढ़ रहा है और जब हीमोडायल्यूएशन होता है मतलब खून पतला हो जाता है, तो उसमें भी हीमोग्लोबिन अपेक्षाकृत (relatively) कम हो जाता है."
डॉ. प्रतिभा सिंघल, निदेशक और वरिष्ठ सलाहकार- प्रसूति एवं स्त्री रोग, क्लाउड नाइन ग्रुप ऑफ हॉस्पीटल्स, नोएडा
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क्या हैं प्रेगनेंसी में हीमोग्लोबिन कम होने के लक्षण?

अमृता हॉस्पिटल की डॉ. प्रतिमा मित्तल फिट हिन्दी से कहती हैं, "ऐसा हो सकता है कि आपको न पता न चले की आप एनीमिया से ग्रसित हैं. क्योंकि एनीमिया के कई लक्षण ऐसे हैं, जिन्हें दूसरे कारणों से भी जोड़ा जा सकता हैं".

गर्भावस्था में एनीमिया के लक्षण इस प्रकार हैं :

  • त्वचा, होंठों और नाखूनों का पीला पड़ना

  • थकान और कमजोरी महसूस होना

  • सांस लेने में दिक्कत

  • दिल की धड़कन तेज होना

  • ध्यान लगाने में दिक्कत आना

  • घबराहट और चक्कर आना

एनीमिया के बारे में पता लगाने का सबसे अच्छा तरीका ब्लड टेस्ट है.

मां के एनीमिक होने से शिशु में भी इसका असर पड़ता है. शिशु एनीमिक रह जाता है, तो उसकी ग्रोथ कम हो जाती है और सामान्य वजन से कम वजन का एक आई.यू.जी.आर शिशु का जन्म होता है.

क्या हैं प्रेगनेंसी में हीमोग्लोबिन की कमी के रिस्क फैक्टर?

हीमोग्लोबिन की कमी की वजह से प्रेग्नेंट महिलाओं को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. जैसे -

  • समयपूर्व प्रसव (समय से पहले बच्चे की डिलीवरी हो जाना)

  • प्रसव के बाद रक्तस्राव होना (पोस्ट पार्टम हेमोरेज)

  • बच्चे का सही ढंग से विकास न होना

गर्भवती महिलाओं को यह बताना जरूरी है कि बात सिर्फ खून की कमी की ही नहीं है. बल्कि गर्भ में पल रहे बच्चे के संपूर्ण और सही विकास की भी है. एक बात को ध्यान में रखने की आवश्यकता है कि महिलाएं मां बनने के सफर की शुरुआत स्वस्थ और एनिमिया मुक्त अवस्था में ही करें.

गर्भावस्‍था में किसे है एनीमिया का खतरा?

गर्भावस्था में एनीमिया का ज्यादा खतरा इन महिलाओं में देखा जाता है:

  • अगर गर्भ में जुड़वा या इससे ज्‍यादा बच्चे हैं

  • दो प्रेगनेंसी के बीच अंतर कम हो

  • आहार में आयरन की कमी

  • प्रेगनेंसी से पहले पीरियड में अधिक खून आना

  • प्रेगनेंसी में मॉर्निक सिकनेस की वजह से रोज उल्‍टी होती हो

क्या करें जब प्रेगनेंसी में हीमोग्लोबिन कम हो जाए?

महिलाओं को प्रेगनेंसी के दौरान हीमोग्लोबिन की कमी को पूरा करने के लिए भरपूर मात्रा में आयरन युक्त खाना लेना चाहिए. स्वास्थ्य मंत्रालय की सलाह है कि सभी गर्भवती महिलाओं को आयरन सप्लीमेंट्स लेने चाहिए. सप्लीमेंट्स में 0.5 मि.ग्रा फॉलिक एसिड के साथ 100 मि.ग्रा एलीमेंटल आयरन होता है. इसे दूसरी तिमाही से ही रोज लेना शुरू कर देना चाहिए. सप्लीमेंट्स का सेवन गर्भावस्था के अंत और स्तनपान के दौरान भी करना चाहिए.

क्या है हीमोग्लोबिन की कमी का इलाज?

"हीमोग्लोबिन की कमी से जूझ रहे लोगों को हरी पत्तेदार सब्जियों (पालक, मेथी) का सेवन करना चाहिए. क्योंकि ये आयरन का सबसे अच्छा स्त्रोत होती हैं. दूसरा बींस, किडनी बींस, काबुली चना, ब्लैक आई बींस, सोया बींस में भी पर्याप्त मात्रा में आयरन पाया जाता है. साथ ही रेड मीट, चिकन और अंडे का सेवन करने से भी आयरन की कमी की पूर्ति हो सकती है. इनमें आयरन के साथ प्रोटीन और अन्य पोषक तत्व मौजूद होते हैं" ये कहना है डॉ. प्रतिमा मित्तल का.

फिट हिन्दी से डॉ. प्रतिभा सिंघल कहती हैं, "ट्रीटमेंट के दो लाइन होते हैं. एक तो हम उसे डाइट्री (खान-पान) सलाह देते हैं. हम मरीज को आयरन युक्त फूड ज्यादा खाने को कहते हैं. जैसे- सेब खाएं, अनार खाएं, केला खाएं. हरी सब्जियों में पालक, बंधगोभी खाएं. जितनी भी हरी सब्जियां होती हैं, वो आयरन ज्यादा देती हैं. साथ में बीटरूट और गाजर भी बहुत महत्वपूर्ण सब्जी है. साथ-साथ उन्हें यह भी कहा जाता है कि खाने में प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होनी चाहिए. गर्भावस्था में प्रोटीन की जरूरत भी करीब 100 ग्राम प्रतिदिन होती है. जिसके लिए गर्भवती महिलाओं को काफी मात्रा में अधिक प्रोटीन की मात्रा खानी पड़ती है".

वो आगे कहती हैं कि इलाज का दूसरा तरीका है आयरन की गोली. अगर शुरुआत में आयरन की एक गोली दे रहे हैं और उसके बाद एनीमिया का पता लगता है, तो इसकी डोज बढ़ाने की कोशिश की जाती है. अगर एनीमिया ज्यादा है, तो आयरन की सुई दे कर मरीज का हीमोग्लोबिन बढ़ा देते हैं ताकि वो स्वस्थ रहे और उसका बच्चा सही तरीके से बढ़े और स्वस्थ पैदा हो.

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