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हम में से ऐसे कई लोग हैं, जिन्हें किसी न किसी तरह का फोबिया यानी किसी न किसी बात से डर या घबराहट होती है. ऐसा होना बहुत ही स्वाभाविक है. फोबिया के शिकार व्यक्ति बीमार नहीं होते बल्कि एक तरह के मानसिक विकार की पीड़ा झेल रहे होते हैं.
किसी को उंचाई से डर लगता है, तो कोई लोगों की भीड़ देख घबराहट महसूस करने लगता है. कोई विशिष्ट जीव-जन्तुओं से डरता है, तो कोई बंद जगहों को देख यहां तक कि उसके बारे में सोच कर ही घबराने लगता है.
जी हां, आज हम बात करेंगे बंद जगहों से लगने वाले डर और घबराहट की यानी कि क्लॉस्ट्रोफोबिया (Claustrophobia) की. क्या ऐसा कभी आपके साथ हुआ है?
जब यह सवाल मैंने अपने पहचान वालों से पूछा तो, उनमें से एक ने कहा कि उसके ससुर अक्सर यह कहा करते हैं कि चाहे जान भी चली जाए पर उन्हें कभी भी किसी भी इलाज के लिए एमआरआई (MRI) मशीन में नहीं डाला जाए.
एक और दोस्त ने बताया कि शहर में रहने के लिए फ्लैट और जॉब खोजने में उसे बहुत परेशानी हुई क्योंकि वो उंची इमारतों में जाने से कतराती है. लिफ्ट देखते ही उसे बेचैनी महसूस होने लगती है. इस कारण उसे हर दिन परेशानी का सामना करना पड़ता है.
इस तरह की बातें क्लॉस्ट्रोफोबिया का शिकार व्यक्ति ही कर सकता है. इस बात से हम अंदाजा लगा सकते हैं कि इस तरह के मेंटल डिसऑर्डर से ग्रसित व्यक्ति अनचाही स्थिति में किस पीड़ा से गुजरते होंगे.
आइये जानते हैं डॉक्टरों से कि क्लॉस्ट्रोफोबिया क्या है? क्यों होता है? इसके लक्षण क्या हैं और इसका इलाज क्या है?
क्लॉस्ट्रोफोबिया एक तरह का डर है, एक तरह का एंग्जाइटी डिसऑर्डर है, जो किसी भी इंसान को हो सकता है. इस समस्या से पीड़ित इंसान को बंद जगहों पर या छोटी जगह पर जाने से घुटन महसूस होती है. कुछ लोगों पर ये डर इतना ज्यादा हावी होता है कि उन्हें हर तंग जगह से डर लगता है. उन्हें ऐसा महसूस होता है कि इस जगह पर उनकी सांसें चलनी बंद हो जाएगी.
मीमांसा सिंह तनवर आगे कहती हैं, "किसी छोटी जगह पर होना, जहां से वो अपने आपको बचा नहीं पाएंगे जैसे कि लिफ्ट के अंदर होना, बिना खिड़कियों वाले छोटे कमरे में होना या यहां तक कि हवाई जहाज या ट्रेन में बैठने से भी बहुत अधिक डर लगना. इस तरह के डर को हम क्लॉस्ट्रोफोबिया कहते हैं."
जिन्हें क्लॉस्ट्रोफोबिया होता है, वो जब ऐसी जगहों के संपर्क में आते हैं, जो उन्हें छोटी लगती है या उन्हें लगता है कि उस जगह से निकाल नहीं पाएंगे तो उन्हें एक तरह की बेचैनी शुरू हो जाती है. ये हैं क्लॉस्ट्रोफोबिया के लक्षण:
तेज घबराहट होना
दिल की धड़कन तेज होना
सांस फूलना
पसीना आना
मुंह सूखने लगना
डर के साथ कंपकंपी लगना
सीने के पास कसाव या जकड़न होना
जी मचलाना
सर दर्द और चक्कर आना
क्लॉस्ट्रोफोबिक व्यक्ति में अलग-अलग कारणों से यह समस्या पैदा होती है. क्लॉस्ट्रोफोबिया से पीड़ित ज्यादातर लोग अपने पुराने बुरे अनुभवों के बारे में बताते हैं, खासकर उनके बचपन से जुड़े. इन अनुभवों में शामिल हैं:
छोटी उम्र में माता या पिता से अलग होना या संयुक्त परिवार से अलग होना
कभी भीड़ में खोए हों या किसी गड्ढे में फंसे हों
वॉटर पूल में गिर गए हों और तैरना न आता हो
किसी जगह/कमरे/लिफ्ट में बंद हो गए हों
ऐसी परिस्थितियों के ट्रॉमा से गुजरने के बाद मन में डर घर कर जाता है कि कहीं दोबारा उन्हें इससे गुजरना न पड़े. साथ ही अगर परिवार में किसी व्यक्ति को इस तरह की परेशानी है और घर का बच्चा उनके संपर्क में हमेशा रहता है, तो उसमें भी यह फोबिया होने की आशंका बढ़ जाती है.
क्लॉस्ट्रोफोबिया का कोई बना बनाया नियम नहीं है. हर व्यक्ति के लिए यह अलग अनुभव होता है. लक्षण, कारण, ट्रिगर और इलाज सभी के लिए अलग होते हैं.
लिफ्ट
बिना खिड़की वाले छोटे कमरे
भीड़भाड़ वाली जगह
सुरंग
एलिवेटर्स
अंडरग्राउंड ट्रेन
बेसमेंट
हवाई जहाज
सार्वजनिक शौचालय
एमआरआई स्कैनर्स (MRI scanners)
मीमांसा सिंह तनवर फिट हिंदी से कहती हैं, "अगर इस डर की वजह से आपको बहुत ज्यादा परेशानी हो रही है. जैसे कि आप बाहर नहीं जा पा रहे हैं, जगहों को अवॉइड कर रहे हों, तो जरुरी है कि आप इसका इलाज किसी मनोवैज्ञानिक के पास जा कर कराएं. जहां पर 2 चीजों का उपयोग किया जाता है".
साइकलाजिकल थेरेपी - जिसे कॉग्नेटिव बिहेवियरल थेरेपी (cognitive behaviour) कहते हैं. इससे पीड़ित व्यक्ति को धीरे-धीरे उनके डर से सामना कराना होता है, जिससे वो उस स्थिति से लड़ना सीख जाएं और उनका डर कम हो जाए या खत्म हो जाए. इस स्थिति का वैज्ञानिक तरीके से इलाज किया जाता है.
दवाइयों का इस्तेमाल - जहां पर भी जरुरत पड़ती है, वहां पर दवाइयों का भी इस्तेमाल किया जाता है ताकि घबराहट कम हो जाए.
सबसे पहले तो किसी भी परेशानी से जूझते व्यक्ति को समझना और उसके प्रति संवेदनशील होना ही हमें इंसान बनाता है.
क्लॉस्ट्रोफोबिक व्यक्ति को समझें और उन्हें सही-गलत समझाने या ज्ञान देने की जगह उनके प्रति संवेदनशील बनें. परिवार और दोस्तों को ये समझना चाहिए कि अगर कोई बार-बार ऐसी स्थिति में परेशान हो रहा है, घबरा रहा है और उस स्थिति से बचने की कोशिश कर रहा है, तो उनके लिए सेन्सिटिव बने और समझें कि कोई परेशानी जरुर है.
परिवार या जान पहचान में ऐसा कोई हो, जो बार-बार किसी जगह पर जाने से कतरा रहे हैं. जिसकी वजह से उनके दिनचर्या में रुकावट आ रही हो, तो उन्हें थेरपिस्ट की सहायता लेने के लिए प्रोत्साहित करें.
इसे वैज्ञानिक तरीके से ठीक किया जाना चाहिए. थेरपिस्ट धीरे-धीरे उन विषयों से जुड़े डर को उनके दिलो दिमाग से दूर करते हैं और साथ में रिलैक्सेशन एक्सरसाइज की भी मदद लेते हैं. इस तरीके से थेरपिस्ट क्लॉस्ट्रोफोबिक व्यक्ति के ऐंजाइयटी और डर को दूर भागते हैं.
जहां दवा की जरुरत होती है, वहां दवा भी दी जाती है.
परिवार, दोस्तों और थेरेपी की मदद से इस मेंटल डिसॉर्डर से बाहर निकला जा सकता है.
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