World Health Day हर साल 7 अप्रैल को मनाया जाता है. इस अवसर पर यह लेख दोबारा पब्लिश किया जा रहा है.
“सालों बाद मां मेरे घर रहने आई थीं पर लगा ही नहीं कि वो आई हैं. न उन्होंने मुझसे बातें की न किसी भी बात में दिलचस्पी दिखाई. ज्यादातर चुपचाप गुमसुम सी बैठी रहती थीं और फिर अचानक कुछ भी बोल देतीं. मैंने मां को पहले कभी ऐसे नहीं देखा था, वो मेरे लिए बिल्कुल अनजान हो गयी थीं. मैं डर गई.”अर्चना मेहन
4 साल पुरानी बात याद करते हुए अर्चना भावुक हो गयीं. अपनी व्यस्त जिंदगी को कोसते हुए दिल में छुपी बात उन्होंने फिट हिंदी से साझा की. वो कहती हैं, “काश मैं मां से उन 2 सालों में एक बार भी मिली होती, जब वो डिमेंशिया (Dementia) की तरफ बढ़ रही थीं. फोन पर वो अक्सर कहती थीं कि दादी के जाने के बाद खाली-खाली सा लगता है, मन नहीं लग रहा, मैं कोई काम शुरू करती हूं, पर मैं इसे बस दादी के जाने से जो उन्हें दुःख हुआ है, वो मान कर बैठी थी”.
अर्चना ने बताया, शुरू में उनकी मां ने परिवारवालों के साथ अपने मन की बात साझा करने की कोशिश की थी पर उस वक्त किसी ने बात की गहराई को नहीं समझा. उसके बाद से उनकी मां थोड़ी शांत रहने लगीं. आज हालात ऐसे हैं कि सालों से अपने घर-परिवार की जिम्मेवारी उठाने वाली, एक घूंट पानी भी खुद से नहीं पी सकती हैं.
उम्र बढ़ते-बढ़ते कुछ लोगों को भूलने की बीमारी होने लगती है. खाना क्या खाया, कहां गए थे, घर में कौन सा कमरा कहां है, कौन आया-कौन गया, आज तारीख क्या है, ये सब भूलने लगते हैं. बढ़ती उम्र के साथ छोटी बातें भूलना आम बात है, पर अगर भूलने की समस्या इतनी बढ़ जाए कि उनकी रोजमर्रा की जिंदगी पर और जीवन जीने के तरीके पर असर पड़ने लगे, तब उसे डिमेंशिया यानी मतिभ्रम बोलते हैं.
डिमेंशिया के शुरुआती लक्षण
समय पर डिमेंशिया के शुरुआती लक्षणों की पहचान कर डॉक्टर से संपर्क कर लेने से, हालात को बिगड़ने से बहुत हद तक रोका जा सकता है. कुछ लक्षण जिन पर ध्यान देना चाहिए:
बात करते हुए शब्दों को भूल जाना या बोली हुई बातों को भूल जाना
दिन और समय का अंदाजा नहीं रहना
लोगों को पहचानने में दिक्कत होना या पहचानना बंद कर देना
रास्ते या जगह भूल जाना
व्यवहार में बदलाव - ज्यादा गुस्सा आना या चुप हो जाना, कभी अचानक से हंसना या कभी रोने लगना
नींद ठीक से न आना
90 साल की दादी सास का ख्याल रखती सरिता बताती हैं, “मेरी दादी सास बीते 5 साल से ज्यादा से डिमेंशिया का शिकार हैं. साथ ही वो दूसरे शारीरिक कारण से चल-फिर भी नहीं सकती हैं. उनके लिए डिमेंशिया बेहद कष्टप्रद साबित हो रहा है”.
“पिछले हफ्ते 60 घंटों तक बिना पलक झपकाए जगी थीं दादी. उन 60 घंटों में वो बस बोलती रहीं. एक अलग तरह की एनर्जी आ जाती है उनमें, जब भी वो नहीं सोती या सो पाती हैं. हां, ऐसा महीने में एक बार होता है. फिर वो 24 घंटे तक सोई रहती हैं. सोकर उठने के बाद बिल्कुल शांत”.सरिता गोयल
एक ऐसा समय भी आता है, जब मरीज के लिए सब कुछ परिवारवाले ही तय करते हैं. वो कब पानी पीएंगी, कब खाना खाते हुए चबाएंगी यहां तक कि वो कब वॉशरूम जाएंगी ये भी. ये सब करने की उनकी मर्जी है या नहीं किसी को नहीं पता और ये पता करने का कोई रास्ता भी नहीं है.
बात को आगे बढ़ाते हुए सरिता बताती हैं, “शुरू के 2 साल उनकी दादी सास गुस्से में अपशब्द बोलती थीं और कभी-कभी हाथ पैर भी चलाती थीं. डर से कोई केयरगिवर नहीं टिकती थी”.
इस पर फोर्टिस हेल्थकेयर में मानसिक स्वास्थ्य और व्यवहार विज्ञान विभाग के निदेशक - डॉ समीर पारिख बताते हैं, “ऐसे हालात के लिए बहुत सारी दवाईयां हैं, जो उपयोग कर सकते हैं. इसका पहला फायदा ये है कि इनसे कभी-कभी डिमेंशिया के लक्षण कंट्रोल होने लगते हैं और दूसरा, डिमेंशिया के कारण व्यक्ति के स्वभाव में आए व्यवहार में भी सुधार आ सकता है. इससे उनका ध्यान रखने वाले लोगों को आराम मिलता है, साथ ही मरीज की क्वालिटी ऑफ लाइफ बेहतर हो जाती है”.
केयरगिवर भी ऐसे मरीजों का ध्यान रखते-रखते थक जाते हैं. उन्हें सपोर्ट, आराम और प्यार देना परिवार की जिम्मेदारी है.
गुड़गांव, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट में डिपार्टमेंट ऑफ न्यूरोलॉजी के प्रिन्सिपल डायरेक्टर एंड हेड, डॉ प्रवीण गुप्ता ने बताया, “हर मरीज में ये बीमारी अलग-अलग रूप में दिखती है. किसी को बहुत गुस्सा आता है, तो कोई शांत हो जाता है. डिमेंशिया से ग्रसित लोगों को बहुत प्यार और सहारे की आवश्यकता होती है. सिर्फ दवा से इसका इलाज नहीं हो सकता. परिवार के लोगों को डिमेंशिया से ग्रसित व्यक्ति के साथ समय बिताना चाहिए".
पद्मिनी ऐसा ही करती हैं, अपने पति के साथ. उनके पति को कई वर्षों से डिमेंशिया है, पर इसका पता उन्हें 2020 के लॉकडाउन में चला, जब वो घर में रहकर एक के बाद एक हो रही बातों पर ध्यान देने लगीं. वो कहती हैं कि उन्होंने एक पैटर्न देखा और फिर डॉक्टर से संपर्क किया. तब पता चला कि बीते कई सालों से उनके पति धीरे-धीरे डिमेंशिया के मरीज बनते जा रहे थे.
"जब पता नहीं था तब लगता था, कही ये जान बुझकर तो बातों को अनसुना नहीं कर रहे, पर बाद में पता चला ऐसा नहीं था. डिमेंशिया के पीछे डिप्रेशन और मेंटल स्ट्रेस का बहुत बड़ा हाथ होता है."पद्मिनी मेहरा
ऐसे कम करें डिमेंशिया होने का खतरा
"डिमेंशिया जिस उम्र में होता है, उस उम्र में कुछ करने से उससे बचा नहीं जा सकता है, पर जवानी के दिनों में ही अपने लाइफस्टाइल में बदलाव कर के बढ़ती उम्र के साथ डिमेंशिया के खतरे को कम किया जा सकता है."डॉ प्रवीण गुप्ता, प्रिन्सिपल डायरेक्टर एंड हेड, डिपार्टमेंट ओफ न्यूरोलॉजी, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुड़गांव
लाइफस्टाइल में कुछ इस तरह बदलाव करने से डिमेंशिया के खतरे को कम किया जा सकता है. ये हैं सुझाव:
नियंत्रित रूप से 30 मिनट, हफ्ते में 5 दिन व्यायाम या योग करना
विटामिन बी का सेवन करना
धूम्रपान और शराब की लत से बचना
वजन को कंट्रोल में रखना
डायबिटीज और ब्लड प्रेशर को कंट्रोल में रखना
दिल की बीमारी हो, तो चेक उप कराते रहना
कोलेस्ट्रॉल को मापते रहना
दिमाग को एक्टिव रखने वाली गतिविधियां करना, जैसे कि सुडोकू, पजल्स, किताबें पढ़ना
परिवार के साथ एक अच्छी, खुशी देने वाली सोशल लाइफ जीना
डिमेंशिया ठीक हो सकता है, पर सब में नहीं
गुड़गांव, मेदांता के इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंसेज में न्यूरोलॉजी के डायरेक्टर, डॉ. विनय गोयल कहते हैं, "डिमेंशिया का ठीक होना डिपेंड करता है, उसके कारण पर. बहुत सारे मरीज ठीक हो सकते हैं, अगर हम उन कारणों का समय पर पता लगा कर इलाज कर दें तो".
ये कुछ कारण हैं, जिनमें डिमेंशिया दवा से या सर्जरी से ठीक कर सकते हैं:
सिर पर चोट आई हो और ब्रेन में हेमरेज हो गया हो
थाइरॉड की वजह से डिमेंशिया हुआ हो
विटामिन की कमी हो
ब्रेन में इन्फेक्शन हुआ हो
“जो मरीज घर से बाहर केयरगिवर के साथ जाते हैं, उनको गले में आईडी कार्ड जरूर पहना दें. इमरजेंसी की स्थिति में वो काम आता है.”डॉ. विनय गोयल, डायरेक्टर - न्यूरोलॉजी इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंसेज, मेदांता, गुड़गांव
डिमेंशिया विटामिन की कमी से भी हो सकता है और केवल 10-15% लोगों में ये जेनेटिक होता है.
डिमेंशिया के इलाज के लिए डॉक्टर कई तरह की दवाईयां देते हैं, जो ब्रेन में एसिटाइलकोलाइन की मात्रा को बढ़ाता है, कुछ विटामिन भी ऐसे में फायदेमंद होते हैं. परिवार को चाहिए कि मरीज के साथ समय व्यतीत करें, उन्हें दिमाग का उपयोग करने वाली गतिविधियों में लगाएं. सोशल सपोर्ट देना भी डिमेंशिया के इलाज का एक तरीका है.डॉ प्रवीण गुप्ता, प्रिन्सिपल डायरेक्टर एंड हेड, डिपार्टमेंट ओफ न्यूरोलॉजी, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुड़गांव
कुछ बातें जो परिवार वाले ध्यान रखें
“कभी-कभी थक जाती हूं और बहुत गुस्सा भी आता है, पर फिर याद आता है कि ये सब वो जान-बुझ कर नहीं कर रहा. परिवार के सदस्यों को कयेरगिवर के रहने से मदद मिलती है” इन दो वाक्यों के बीच पद्मिनी जी के पति ने उन्हें 4 बार आवाज दी और हर बार वो रुक कर, अपने पति को प्यार से 'अभी आती हूं' बोलती रहीं और अपनी बात खत्म करते ही चली गयीं.
फिट हिंदी ने डॉ.समीर पारिख से जानने की कोशिश कि क्या हैं वो बातें जिन्हें परिवारवालों को ध्यान में रखना चाहिए. डॉ.समीर पारिख ने बताया, "डिमेंशिया मैनेज करना बहुत महत्वपूर्ण है और ये परिवार के हाथों में है. कुछ बातें जो परिवार वाले ध्यान रखें:
सूर्य की रोशनी मरीज के कमरे में आए और कमरे के पर्दे पूरे दिन खुले रहें
कुछ देर रोज मरीज सूर्य की किरणों का आनंद उठाएं
मरीज व्यायाम नियम से करें
बड़ी दीवार-घड़ी हो कमरे में, जिससे उनका ध्यान समय पर जाता रहे
दिन और महीनों का ध्यान रखने के लिए कमरे में बड़े अक्षर वाला कैलेंडर रखें
उन्हें देश-दुनिया की खबरें सुनायें
उनसे चित्र बनवाएं और उनमें रंग भरवाएं
साथ में लूडो, सांप सीढ़ी या ताश खेलें
मरीज को पौधों की देखभाल करने दें
घर के पालतू जानवर के साथ समय गुजारने दें
पुराने शौक पूरे करने दें, जैसे फिल्म देखना, गाने सुनना
मरीज की शारीरिक गतिविधियों में उनके साथ रहें, ध्यान रहे गिरने से मरीज की स्थिति बिगड़ सकती है
पौष्टिक आहार खिलाएं और परिवार के लोग उनके खाने की मात्रा पर भी ध्यान दें
"डिमेंशिया की स्थिति में, मरीज को कभी भी अकेला न छोड़ें. जहां पर लोग हों, जहां बातचीत हो रही हो, वहीं पर उन्हें रखें. ये सब करना बहुत जरूरी है."डॉ.समीर पारिख, निदेशक, मानसिक स्वास्थ्य और व्यवहार विज्ञान विभाग, फोर्टिस हेल्थकेयर
सही समय पर डिमेंशिया का पता चलना बहुत जरूरी है. कभी-कभी लोग, मरीज में डिमेंशिया को बुढ़ापा के लक्षण समझ कर अनदेखा कर देते हैं, जो बाद में दुख का कारण बन जाता है.
अपने परिवार में डिमेंशिया के बारे में बातचीत करें और सचेत रहें.
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