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नोवल कोरोनावायरस के खिलाफ भारत में इस्तेमाल की जा रही कोविशील्ड को जनवरी, 2021 की शुरुआत में इमरजेंसी यूज के तहत मंजूरी मिली थी. डोज के बीच 28 दिनों के अंतराल के साथ इसे मंजूर किया गया था. उस समय, ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका की इस वैक्सीन को मंजूरी देने वाला पहला देश यूके पहले ही 4-12 सप्ताह के अंतराल की सिफारिश कर चुका था.
22 मार्च को, सरकार ने फिर से एडवाइजरी में बदलाव करते हुए कहा कि डोज के अंतर को 6-8 सप्ताह तक बढ़ाया जाना चाहिए. उस समय, कई स्टडी समेत मेडिकल जर्नल द लैंसेट की स्टडी ने स्थापित किया था कि 12 सप्ताह के अंतराल ने बेहतर प्रभावकारिता(एफिकेसी-Efficacy) पैदा की.
13 मई को स्वास्थ्य मंत्रालय ने डॉ वीके पॉल की अध्यक्षता में वैक्सीन प्रभावकारिता को लेकर 'यूके के साक्ष्य' के आधार पर नेशनल एक्सपर्ट ग्रुप ऑन वैक्सीन एडमिनिस्ट्रेशन (NEGVAC) की सिफारिश को स्वीकार कर लिया.
भारत द्वारा बार-बार कोविशील्ड के डोज के बीच अंतराल को लेकर अपने फैसले बदलने पर एक अहम सवाल उठता है- क्या ये साइंस पर आधारित फैसला है या आपूर्ति की कमी ने सरकार को 'बेहतर' सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय अपनाने के लिए मजबूर किया है.
इंटरनल मेडिसिन डॉक्टर और साइंटिस्ट डॉ स्वप्निल पारिख कहते हैं, "ये फैसला स्पष्ट रूप से सप्लाई से जुड़ा है. इसलिए कहा जा रहा है कि ये सही फैसला है."
डॉ. एनके वोहरा की अध्यक्षता में COVID वर्किंग ग्रुप द्वारा सिफारिश की गई थी. अन्य सदस्यों में डॉ गगनदीप कांग, डॉ जेपी मुलियल और ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) के डॉ वीजी सोमानी शामिल हैं.
फरवरी 2021 में, द लैंसेट ने 4 अलग-अलग ट्रायल्स के आंकड़ों के आधार पर एक स्टडी प्रकाशित की और पाया कि कोविशील्ड की प्रभावकारिता 55.1% के करीब थी जब डोज का अंतराल 6 सप्ताह से कम था. 12 सप्ताह का अंतराल रखने पर प्रभावकारिता बढ़कर 81.3% हो गई.
इसके अलावा फरवरी में ही, ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (BMJ) के एक लेख में कहा गया था कि वैक्सीनेशन के बाद पहले 90 दिनों में वैक्सीन की एक डोज ने सिम्पटोमेटिक कोविड -19 के खिलाफ कुल 76% सुरक्षा दी. लेकिन उसकी समय सीमा ये नहीं थी.
यूके रेगुलेटर्स और यूरोपीय मेडिसिन एजेंसी (EMA) एस्ट्राजेनेका वैक्सीन के लिए 12 सप्ताह के अंतराल की सलाह देते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) डोज के बीच 8-12 सप्ताह के अंतराल की सिफारिश करता है.
स्पेन और कनाडा जैसे कुछ देशों ने कुछ निश्चित आयु समूहों के लिए अंतराल को 16 सप्ताह तक बढ़ा दिया है. लेकिन 16-सप्ताह के अंतराल का समर्थन करने के लिए कोई ट्रायल नहीं किया गया है.
फिट के साथ पहले एक इंटरव्यू में, सीएमसी(CMC) वेल्लोर की माइक्रोबायोलॉजिस्ट डॉ गगनदीप कांग ने 12 सप्ताह के अंतराल का समर्थन किया था. डॉ कांग उस समूह का हिस्सा हैं जिनकी सिफारिश पर सरकार ने कोविशील्ड के लिए अंतर को बढ़ाने का फैसला किया है.
डॉ कांग ने कहा कि इससे न सिर्फ वैक्सीन की कमी से निपटने में मदद मिलेगी बल्कि लंबे समय में बेहतर प्रभावकारिता भी मिलेगी.
“यूके ने इस पर जल्दी फैसला किया कि फाइजर और कोविशील्ड वैक्सीन दोनों के लिए, वे दूसरे डोज के बीच 3 महीने तक अंतर रखेंगे. अब हमारे पास आंकड़े हैं कि एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की सिंगल डोज क्या हासिल कर सकती है. सिंगल डोज अस्पताल में भर्ती होने और मौत के खिलाफ बेहतर सुरक्षा देता है. ये कम से कम 3 महीने के लिए सुरक्षा प्रदान कर सकता है. अगर आपूर्ति में कोई समस्या है, तो एस्ट्राजेनेका वैक्सीन को लेकर आप सुरक्षित रूप से 3 महीने तक की देरी कर सकते हैं.”
वो आगे कहती हैं- “3 महीने का अंतराल 1 महीने के अंतराल से बेहतर है. इम्युनोलॉजिकल रूप से, लंबे समय में, 2 डोज के बीच के अंतर को बढ़ाने से आपको ज्यादा सुरक्षा मिलेगी और हम बूस्टर डोज लेने के लिए इधर-उधर भागना नहीं चाहते हैं.”
फिट से बात करते हुए डॉ. स्वप्निल पारिख ने कहा,
"इसे कभी भी इस तरह से नहीं होना चाहिए था, हमारे पास बेहतर योजना होनी चाहिए थी, लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ, तो हमारे पास जो है उसके साथ ही हमें काम करना होगा. अभी जिस संकट की स्थिति में हम हैं, उसमें हमें ये कम से कम भयानक विकल्प लगता है. ये ज्यादा जिंदगियों को बचाने के लिए है. "
अभी के लिए, पैनल ने कोवैक्सिन के लिए 28-दिवसीय खुराक कार्यक्रम में किसी भी बदलाव की सिफारिश नहीं की है. वैक्सीन निर्माता भारत बायोटेक ने अभी भी कोवैक्सिन के फेज 3 ट्रायल का पूरा डेटा जारी नहीं किया गया है न ही कोवैक्सिन की सिंगल डोज की प्रभावकारिता पर सार्वजनिक रूप से डेटा उपलब्ध है और न ही इसे लेकर कोई भी रियल-वर्ल्ड डेटा है जिसने इसकी जांच की हो.
लेकिन डॉ पारिख एक दिलचस्प मॉडल की ओर इशारा करते हैं जो दूसरी डोज में देरी के सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रभाव का आकलन करता है.
बीएमजे में छपा ये मॉडल फाइजर के एमआरएनए (mRNA) वैक्सीन को लेकर है जिसमें पहली डोज को प्राथमिकता देते हुए स्टैंडर्ड वैक्सीनेशन और दूसरी डोज में देरी को परखा गया है.
परिणाम ने संकेत दिया कि दूसरी डोज में देरी, कम से कम 65 साल से कम आयु के लोगों के लिए, कुछ विशेष परिस्थिति में क्यूमुलेटिव मृत्यु दर कम कर सकता है.
हालांकि ये फाइजर वैक्सीन को लेकर ही किया गया एक सिमुलेशन था, डॉ पारिख कहते हैं, "अगर कोवैक्सिन की सिंगल डोज की प्रभावकारिता 70% से ज्यादा है, तो हम कोवैक्सिन के लिए एक रणनीति पर विचार कर सकते हैं जहां हम सुनिश्चित करें कि 65 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को उनकी दूसरी डोज 28 दिनों के कार्यक्रम के मुताबिक मिलती रहे वहीं, 45-65 साल के लोगों के लिए दूसरी डोज में 90 दिनों तक की देरी कर सकते हैं."
नेशनल इम्युनाइजेशन टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप द्वारा एक दूसरी सिफारिश को अपनाया जाना फिलहाल बाकी है, वो ये कि COVID संक्रमण के बाद वैक्सीन के लिए 6 महीने का इंतजार.
संक्रमण के बाद आप अपनी दूसरी डोज कब ले सकते हैं, इस पर स्वास्थ्य मंत्रालय ने 1 मई को दिशा-निर्देश जारी किए थे. लक्षण कम होने के बाद 2-8 सप्ताह तक की सिफारिश की गई थी.
तो वास्तव में क्या अंतर होना चाहिए?
WHO अंतर निर्दिष्ट नहीं करता.
यूएस सीडीसी(USCDC) भी अंतर निर्दिष्ट नहीं करता है-अगर आप प्राकतिक तौर से अपने-आप ठीक हो जाते हैं. हालांकि ये सिफारिश करता है कि अगर आपका इलाज मोनोक्लोनल एंटीबॉडी या प्लाज्मा से हुआ हो, तो आपको वैक्सीन लेने से पहले 90 दिन इंतजार करना चाहिए.
ये कहने के लिए पर्याप्त डेटा नहीं है कि संक्रमण से प्राकृतिक इम्युनिटी कितने समय तक बनी रहेगी, लेकिन ये डेटा मौजूद हैं जो सुझाव देते हैं कि भले ही एंटीबॉडी गायब हो गए हों, टी सेल इम्युनिटी से आपकी सुरक्षा बनी रहेगी.
पारिख कहते हैं, "हम जानते हैं कि अगर आप फिर से संक्रमित हो जाते हैं, तो भी इसके गंभीर होने की संभावना नहीं है." अभी हम इस बारे में नहीं सोच रहे हैं कि किसी व्यक्ति के लिए सबसे अच्छा क्या है, बल्कि ये सोच रहे हैं कि सामूहिक तौर पर सबसे अच्छा क्या है."
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Published: 14 May 2021,06:52 PM IST