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कोरोना पर PM को विपक्ष का खत- केजरीवाल, मायावती के नाम क्यों नहीं?

विपक्ष ने इन्हें साथ नहीं लिया या फिर ये खुद ही साथ नहीं आए?

आदित्य मेनन
पॉलिटिक्स
Updated:
<div class="paragraphs"><p>कोरोना पर PM को विपक्ष का खत- केजरीवाल, मायावती के नाम क्यों नहीं?</p></div>
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कोरोना पर PM को विपक्ष का खत- केजरीवाल, मायावती के नाम क्यों नहीं?

(फोटो: श्रुति माथुर/क्विंट हिंदी)

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12 विपक्षी दलों के नेताओं ने 12 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेटर लिखते हुए उनकी सरकार को कोरोना की दूसरी लहर से लड़ने और इस महामारी के बीच भारतीय नागरिकों को राहत मुहैया कराने के लिए नौ कदम सुझाए हैं. इनमें से कुछ सुझाव हैं- केंद्र द्वारा वैक्सीन की खरीद, सेंट्रल विस्टा के कंस्ट्रक्शन को रोकना, वैक्सीनों के लिए 35,000 करोड रुपए का बजटीय आवंटन.

इन नेताओं ने इस महीने दूसरी बार ऐसा लेटर लिखा है .

राजनीतिक दृष्टिकोण से देखें तो इन पत्रों को लिखने के लिए 12 विपक्षी नेताओं का साथ आना अपने आप में महत्वपूर्ण है.

इस आलेख में हम इन तीन पहलुओं पर ध्यान देंगे:

  • कौन-कौन सी पार्टियों ने मिलकर यह लेटर लिखा है?

  • कौन से विपक्षी दल इसमें नहीं है?

  • इस कवायद का महत्व क्या है?

किन-किन दलों ने मिलकर यह लेटर लिखा

2 मई और 12 मई को भेजे गए लेटर के 12 हस्ताक्षरकर्ता थे:

  1. सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्षा UPA की चेयरपर्सन

  2. एच.डी देवगौड़ा, पूर्व प्रधानमंत्री और जनता दल (सेक्युलर) के अध्यक्ष

  3. शरद पवार,NCP अध्यक्ष

  4. उद्धव ठाकरे, महाराष्ट्र मुख्यमंत्री और शिवसेना अध्यक्ष

  5. ममता बनर्जी ,पश्चिम बंगाल मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस अध्यक्षा

  6. एम.के स्टालिन, तमिलनाडु मुख्यमंत्री और DMK अध्यक्ष

  7. हेमंत सोरेन, झारखंड मुख्यमंत्री और JMM नेता

  8. फारूक अब्दुल्ला, पूर्व जम्मू-कश्मीर मुख्यमंत्री

  9. अखिलेश यादव,पूर्व उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी अध्यक्ष

  10. तेजस्वी यादव, नेता प्रतिपक्ष बिहार और RJD नेता

  11. डी राजा ,CPI जनरल सेक्रेटरी

  12. सीताराम येचुरी,CPI(M) जनरल सेक्रेटरी

हालांकि 2 मई को लिखे अपने लेटर- जिसमें मुख्यतः मुफ्त मास वैक्सीनेशन प्रोग्राम की मांग थी- में BSP अध्यक्षा मायावती ने भी हस्ताक्षर किया था, लेकिन इस बार दूसरे लेटर में उनका नाम नहीं था. जबकि अन्य 12 नाम पहले की तरह ही मौजूद थे.

यह महत्वपूर्ण क्यों है?

यह लेटर दर्शाता है कि इन विपक्षी दलों में कुछ हद तक का समन्वय है. इनमें से कुछ दल राज्य स्तर पर एक दूसरे के विरोधी हैं- कांग्रेस का मुकाबला उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ, केरल में वाम दलों के साथ ,कर्नाटक में JD(S) के साथ है. ऐसे ही बंगाल में लेफ्ट और कांग्रेस TMC के विपक्ष में है. लेकिन ऐसा लगता है कि ये पार्टियां राष्ट्रीय स्तर पर मिलकर काम करने को सहमत है .

यह समन्वय अतीत में उठाए गए बहुत सारे छोटे कदमों का परिणाम है.

जैसे 2019 में नागरिकता कानून(CAA) पास होने के बाद 12 दलों के नेताओं ने उस कानून को रद्द करने के लिए भारत के राष्ट्रपति को लेटर लिखा था. उसमें कांग्रेस , DMK, समाजवादी पार्टी, RJD, CPI, CPI(M), AIUDF, IUML, RSP, JKNC और शरद यादव की JLS शामिल थे.

उसके बाद से इन प्रयासों में TMC और शिवसेना भी शामिल हो गई.

पश्चिम बंगाल चुनाव के बीच TMC अध्यक्षा ममता बनर्जी ने भी इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया जब उन्होंने बीजेपी के खिलाफ संयुक्त मोर्चा बनाने और लोकतंत्र की रक्षा के लिए 15 विपक्षी नेताओं को लेटर लिखा था. इन 15 नेताओं में शामिल थे कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी,NCP अध्यक्ष शरद पवार,DMK अध्यक्ष एम.के स्टालिन, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ,ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ,आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगमोहन रेड्डी, तेजस्वी यादव, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ,NC अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला और PDP अध्यक्षा महबूबा मुफ्ती.

यह अपील अंशतः सफल भी हुई क्योंकि पवार, ठाकरे, तेजस्वी यादव ,अखिलेश यादव ,केजरीवाल और स्टालिन ने बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी का समर्थन किया.कुछ ने खुलकर और कुछ ने दबी जुबान में .

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विपक्ष को साथ लाने का इन्हीं प्रयासों का नतीजा है महामारी पर केंद्र के खिलाफ यह संयुक्त मोर्चा.

बेशक संख्या के हिसाब से वे अभी बीजेपी को चुनौती देने की स्थिति में नहीं है.

यह 12 पार्टियां मिलकर 8 राज्यों में सत्ता में है- महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, राजस्थान ,केरल ,झारखंड ,पंजाब और छत्तीसगढ़. इन राज्यों के लोकसभा सीटों को मिला दिया जाए तो यह भारत के 543 लोकसभा सीटों में से 214 सीट बनते हैं.

लोकसभा में इन दलों और उनके सहयोगियों के सीटों को मिला दिया जाए तो वह 543 में से 143 है. इसी तरह राज्यसभा में 245 सीटों में से 82 इनके पास है.

कौन-कौन शामिल नहीं है?

इस लेटर में सारे गैर-NDA दल शामिल नहीं है.

बसपा अध्यक्षा मायावती, जो कि पहले लेटर में हस्ताक्षरकर्ता थीं, दूसरे में नहीं है.कई अन्य गैर NDA जैसे बीजू जनता दल,YSRCP, तेलंगाना राष्ट्र समिथि, आम आदमी पार्टी इस लेटर में हस्ताक्षरकर्ता नहीं है.

यह पता नहीं है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि उनको किसी ने आमंत्रित नहीं किया या फिर इसलिए कि उन्होंने इस कवायद में शामिल होने से इनकार कर दिया. शायद इन दलों के लिए कारण अलग-अलग है.

BJD और YSRCP

BJD और YSRCP जैसे दलों ने तीन तलाक, कृषि कानूनों, जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन जैसे मुद्दों पर बार-बार मोदी सरकार की तरफ से वोट किया है .उन्होंने लगातार प्रयास किया है कि केंद्र के साथ उनके संबंध सकारात्मक रहे और इस कारण उन्होंने किसी भी मुद्दे पर बीजेपी का विरोध नहीं किया.

हाल ही में YSRCP अध्यक्ष और आंध्र प्रदेश मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के द्वारा ट्विटर पर प्रधानमंत्री मोदी पर तंज करने की आलोचना की थी. इन पार्टियों को अक्सर NDA का ही विस्तार कहा जाता है ,स्पष्ट विपक्ष नहीं.

TRS

TRS और AAP अपेक्षाकृत ज्यादा सिलेक्टिव रहे हैं .उन्होंने तीन तलाक और कृषि कानून पर विरोध किया जबकि जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक पर समर्थन.

इसका कारण उनका अपने राज्यों में विविध समुदायों का समर्थन है, जहां वह एक तरफ अल्पसंख्यक वोटों का बड़ा हिस्सा ले जाते हैं तो दूसरी तरफ उन हिंदू वोटों का भी उन्हें बड़ा हिस्सा मिलता है जिन्होंने केंद्र में मोदी को वोट किया था.

AAP

'आप' पंजाब में भी कांग्रेस से मुकाबले में है, जहां वह मुख्य विपक्षी पार्टी है. इसके अलावा वह गोवा ,गुजरात और उत्तराखंड में भी विपक्ष के तौर पर उभरने की कोशिश कर रही है और कहा यह जा रहा है कि इन राज्यों में 'आप' का उभार कांग्रेस को नुकसान पहुंचाएगा.

'आप' गोवा के कैथोलिक समुदाय, गुजरात के पाटीदारों और उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में अपना समर्थन बढ़ा रही है, जो कि अब बीजेपी से दूर जा रहे हैं.

BSP

बसपा भी कई मौकों पर सरकार को सिलेक्टिव समर्थन देती रही है. कुछ मुद्दों पर साथ खड़ी रही तो कुछ पर विरोध किया. इसका कारण पार्टी का विकल्प खुला रखने और अपने हितों को साधने का ट्रैक रिकॉर्ड हो सकता है.

उत्तर प्रदेश के राजनीतिक पटल पर बसपा ही अकेली ऐसी बड़ी पार्टी है जो अन्य तीनों दलों के साथ गठबंधन कर सकती है -बीजेपी, एसपी और कांग्रेस.

TDP

कुछ साल पहले तक तेलुगू देशम पार्टी विपक्षी मोर्चे का हिस्सा हुआ करती थी लेकिन आंध्र प्रदेश में सत्ता खोने के बाद अब उसने राह बदल ली है. TDP ने NDA को अधिकतर कानूनों पर समर्थन दिया है, जैसे नागरिकता कानून ,जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन और तीन कृषि कानून.

क्या ये बीजेपी को चुनौती दे सकते हैं?

संख्या के हिसाब से बीजेपी लोकसभा में पूरी तरह सुरक्षित है. लेकिन राज्यसभा में अगर विपक्षी दल TRS, YSRCP, AAP और BSP जैसे दलों को साथ ले आते हैं तो बीजेपी के लिए मुश्किल पैदा कर सकते हैं.

मोदी सरकार को महामारी के प्रबंधन पर घेरने के अलावा इन विपक्षी दलों के समूह को महामारी खत्म होने के बाद किसान आंदोलन को पुनर्जीवित करने में मदद करनी चाहिए. बंगाल चुनाव में बीजेपी के विरुद्ध कैंपेन के लिए कई किसान यूनियन के नेता बंगाल आए थे जो यह दिखलाता है कि विपक्ष उनके साथ कॉमन ग्राउंड खोज सकता है .

संख्या से ज्यादा महत्वपूर्ण होगा, इन 12 दलों का समूह मोदी सरकार के उस शक्ति पर चोट करें जिसे वह सबसे ज्यादा प्राथमिकता देती है- "नैरेटिव पर कंट्रोल"

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Published: 14 May 2021,03:37 PM IST

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