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Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Fit Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019डीप ब्रेन स्टिमुलेशन करता है पार्किन्‍सन रोगियों के जीवन की गुणवत्‍ता में सुधार

डीप ब्रेन स्टिमुलेशन करता है पार्किन्‍सन रोगियों के जीवन की गुणवत्‍ता में सुधार

डीबीएस एडवांस पार्किन्‍सन रोगों के मैनेजमेंट का महत्‍वपूर्ण टूल साबित होता है.

डॉ. कपिल सिंघल
फिट
Published:
<div class="paragraphs"><p><strong>Deep Brain Stimulation</strong> से पार्किन्‍सन रोग के मोटर संबंधी लक्षणों में काफी हद तक कमी आती है</p></div>
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Deep Brain Stimulation से पार्किन्‍सन रोग के मोटर संबंधी लक्षणों में काफी हद तक कमी आती है

(फोटो:iStock)

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Deep Brain Stimulation: डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (डीबीएस) एक सर्जिकल प्रक्रिया है, जिसके तहत ब्रेन के कुछ खास भागों में इलैक्‍ट्रोड्स लगाए जाते हैं, जो पार्किन्‍सन रोग समेत कुछ खास नर्व डिसऑर्डर्स/स्थितियों की गंभीरता को कम करने में सहायक होते हैं.

डीबीएस का मुख्‍य रूप से इस्‍तेमाल एडवांस पार्किन्‍सन रोग से ग्रस्‍त उन मरीजों के इलाज के लिए किया जाता है, जिनके मामले में दवाओं का असर कम होता है या जो दवाओं के गंभीर साइड इफेक्‍ट के शिकार होते हैं. आइये जानते हैं कि डीबीएस किस प्रकार काम करता है और कैसे पार्किन्‍सन मरीजों के जीवन की गुणवत्‍ता में सुधार लाता है.

कैसे काम करता हैं डीप ब्रेन स्टिमुलेशन?

  • इलैक्‍ट्रोड्स इंप्‍लांटेशन: डीबीएस प्रक्रिया में, इलैक्‍ट्रोड्स को ब्रेन के कुछ विशिष्‍ट भागों में संस्‍थापित (establish) किया जाता है. ये ब्रेन के वे हिस्‍से होते हैं, जो मूवमेंट कंट्रोल करते हैं. पार्किन्‍सन रोग में सबसे अधिक टारगेट किया गया एरिया सबथैलेमिक न्‍युक्लियस (एसटीएन) और ग्‍लोबस पैलाइडस इंटरनस (जीपीआई) होते हैं. ये इलैक्‍ट्रोड्स आमतौर पर कॉलरबोन के नजदीक स्किन के नीचे लगाए गए न्‍यूरोस्टिमुलेटर डिवाइस से जुड़े होते हैं. 

  • स्टिमुलेशन: ब्रेन में इलैक्‍ट्रोड्स स्‍थापित होने और डिवाइस के एक्टिवेट होने के बाद, ब्रेन के टारगेट वाले भाग में इलैक्ट्रिकल पल्‍स को पहुंचाया जाता है. यह ब्रेन की नर्व की एक्टिविटी संबंधी उस असामान्‍य पैटर्न को इंडस्यूड करता है, जो पार्किन्‍सन रोग का कारण होता है.

लक्षणों में आते हैं ये सभी सुधार

डीबीएस से पार्किन्‍सन रोग के मोटर संबंधी लक्षणों में काफी हद तक कमी आती है, जिसमें आमतौर से झटके लगना, मूवमेंट में धीमापन (ब्रेडीकिनेसिया), शरीर में कसावट और शारीरिक मुद्रा में अस्थिरता शामिल है. मरीजों को अक्‍सर ये सभी सुधार महसूस होते हैं: 

  • झटकों में कमी: डीबीएस से मरीजों को झटकों में काफी हद तक कमी या झटके पूरी तरह खत्म होने का लाभ मिलता है, जिससे वे शारीरिक कंट्रोल वापस प्राप्‍त करते हैं. 

  • मोबिलिटी में सुधार: ब्रेडीकिनेसिया और कसावट में कमी आने से मरीज अधिक आसानी से चलने-फिरने में समर्थ बनते हैं और आसानी से अपनी रोजमर्रा की गतिविधियों को कर सकते हैं. 

  • दवाओं पर कम निर्भरता: बहुत से मरीजों ने डीबीएस के बाद पार्किन्‍सन की दवाओं पर निर्भरता कम होने की जरूरत महसूस की है, जो दवाओं से संबंधित साइड इफेक्‍ट्स में कमी लाने में सहायक होता है. 

  • दवाओं का बेहतर मैनेजमेंट: डीबीएस से दवा की खुराक का बेहतर मैनेजमेंट करने में मदद मिलती है. न्‍यूरोलॉजिस्‍ट या न्‍यूरोसर्जन द्वारा लक्षणों को कंट्रोल करने के लिए आवश्‍यक स्टिमुलेशन सैटिंग्‍स की जा सकती है, जो रोग के अधिक गंभीर होने और दवाओं में बदलाव की स्थिति में खासतौर से फायदेमंद साबित होता है.

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  • बेहतर लाइफ क्‍वालिटी: मोटर फंक्‍शन में सुधार के अलावा झटकों में कमी और अपने रोजमर्रा के काम करने की क्षमता के चलते पार्किन्‍सन मरीजों के जीवन की गुणवत्‍ता में सुधार आता है. वे खुद को अधिक आत्मनिर्भर महसूस करते हैं, जिससे खुद को पहले से बेहतर समझने का अहसास बढ़ता है. 

  • मोटर संबंधी उतार-चढ़ाव: पार्किन्‍सन रोग की दवाओं की वजह से मोटर संबंधी उतार-चढ़ाव सामान्‍य बात है और ‘ऑन-ऑफ’ फ्लक्‍चुएशन के अलावा डिस्किनेसियस (अस्‍वैच्छिक मूवमेंट) भी होती है. डीबीएस से इन उतार-चढ़ावों को काफी हद तक कम किया जा सकता है और लक्षणों को कंट्रोल करने में मदद मिलती है. 

  • मनोवैज्ञानिक लाभ: कुछ मरीज अपने मूड में सुधार और डिप्रेशन-एंग्‍जाइटी के लक्षणों में भी कमी होने की बात स्‍वीकार करते हैं, जो निश्चित ही जीवन की गुणवत्‍ता में सुधार लाने में मददगार है. 

डीबीएस के बारे में यह जानना जरुरी है कि यह पार्किन्‍सन रोग का उपचार नहीं होता और न ही यह इस रोग के बढ़ने की रफ्तार को कम करता है. लेकिन यह मोटर संबंधी लक्षणों में कुछ हद तक राहत देता है और मरीजों को आत्‍मनिर्भर बनने में सहायता करता है. डीबीएस को आमतौर पर तब इस्तेमाल किया जाता है, जब दवाओं से लक्षणों को कंट्रोल करने में ज्‍यादा मदद नहीं मिलती और यह एडवांस पार्किन्‍सन रोगों के मैनेजमेंट का महत्‍वपूर्ण टूल साबित होता है.

डीबीएस की प्रभावशीलता अलग-अलग मरीजों में अलग-अलग होती है और मरीजों का सावधानीपूर्वक चयन और लगातार मेडिकल मैनेजमेंट भी पॉजिटिव रिजल्ट हासिल करने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाता है.

(फिट हिंदी के लिए ये आर्टिकल नोएडा, फोर्टिस हॉस्पिटल में न्‍यूरोलॉजी विभाग के डायरेक्टर, डॉ. कपिल सिंघल ने लिखा है.)

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