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शिकागो विश्वविद्यालय के एनर्जी एंड पालिसी इंस्टिट्यूट की एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स (AQLI) रिपोर्ट से पता चलता है कि अगर वर्तमान वायु प्रदूषण का स्तर जारी रहता है, तो दिल्ली के निवासियों को अपने जीवन के 11.9 वर्ष खोने बैठने की आशंका है.
थिंक टैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर भी है.
इन शहरों में, जीवन प्रत्याशा में कमी आने की आशंका है:
गुरूग्राम - 11.2 वर्ष
फरीदाबाद - 10.8 वर्ष
लखनऊ - 9.7 वर्ष
कानपुर - 9.7 वर्ष
पटना - 8.7 वर्ष
प्रयागराज - 8.8 वर्ष
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, सालाना एवरेज PM 2.5 कंसंट्रेशन 5 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए.
इन आंकड़ों को देखते हुए प्रदूषण से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करना और कंट्रोल करने का रास्ता निकलना और भी जरुरी हो जाता है.
कम से कम 67.4% आबादी ऐसे क्षेत्रों में रहती है, जो देश के राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक 40 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक है.
भारत के उत्तरी मैदानी इलाकों - बिहार, चंडीगढ़, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में रहने वाले लोगों की जीवन प्रत्याशा (life expectancy) लगभग 9 साल कम हो सकती है.
लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, प्रदूषण संबंधी कारणों से दुनिया भर में हर साल लगभग 6 में से 1 व्यक्ति की मौत होती है.
स्टडी में चार दक्षिण एशियाई देशों- भारत, बांग्लादेश, नेपाल और पाकिस्तान को दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों के रूप में बताया गया है. अगर प्रदूषण का वर्तमान स्तर जारी रहता है, तो एक औसत बांग्लादेशी को 6.8 वर्ष, नेपाली को 4.6 वर्ष और पाकिस्तानी को 3.9 वर्ष का नुकसान होने का अनुमान है.
प्रदूषण से हर साल विश्व स्तर पर लगभग 90 लाख मौतें होती हैं, और 2015 में इसी तरह के किए गए सर्वेक्षण से पता चलता है कि यह स्थिति काफी हद तक अभी भी बनी हुई है.
यहां गौर करने वाली बात ये है कि वायु प्रदूषण से संबंधित मौतों की गिनती तय करना मुश्किल है, क्योंकि मृत्यु प्रमाण पत्र आमतौर पर मौत का तत्काल कारण जो भी हो, जैसे दिल का दौरा, स्ट्रोक, फेफड़ों का कैंसर इत्यादि.
2016 से लेकर मई 2023 तक (2020 लॉकडाउन का समय छोड़ कर) दिल्ली में दैनिक औसत PM 10 कंसंट्रेशन न्यूनतम स्तर पर रहने वाला वर्ष रहा है यानी कि बीते 7 सालों में ये अभी तक सबसे कम स्तर पर दर्ज किया गया है.
दिल्ली ने 2016 के बाद से पिछले सात वर्षों की इसी अवधि (जनवरी-मई) की तुलना में 2023 में 'खराब' से 'गंभीर' वायु गुणवत्ता के साथ सबसे कम दिनों का अनुभव किया है.
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