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गुजरात में अचानक बढ़ गए COVID-19 के मामले,कहां हुई चूक,क्या है वजह

देश में गुजरात कोरोना वायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला दूसरा राज्य है.

साखी चड्ढा
फिट
Published:
गुजरात में अचानक क्यों आया कोरोना मामलों में उछाल
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गुजरात में अचानक क्यों आया कोरोना मामलों में उछाल
(फोटो: अर्णिका काला/फिट)

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मार्च महीने के बीच में जब कोरोना वायरस देशभर में अपने पैर पसार रहा था, तब गुजरात में एक भी COVID-19 का मामला सामने नहीं आया था. राज्य के पहले 2 मामले 19 मार्च (दोनों मरीज की ट्रैवल हिस्ट्री थी) को दर्ज किए गए. तब तक भारत में करीब 200 मामले सामने आ चुके थे.

22 अप्रैल को, बमुश्किल एक महीने बाद, गुजरात भारत का दूसरा सबसे प्रभावित राज्य बन गया. इसने दिल्ली को पीछे छोड़ दिया और महाराष्ट्र को भी शायद पीछे छोड़ देगा. स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 29 अप्रैल की सुबह तक, राज्य में 3744 मामलों की पुष्टि हो चुकी थी, 434 लोग ठीक हो चुके थे और 181 लोगों की मौत कोरोना वायरस से हुईं.

गुजरात में कोरोना से ठीक होने की दर करीब 8% है. ये भारत के 23% की तुलना में देश में सबसे कम है. वहीं रिकवरी रेट की तुलना करें तो सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य महाराष्ट्र में ये 14.9% है और तीसरे नंबर पर खड़ी दिल्ली में ये दर करीब 28% है. इसी तरह का ट्रेंड मत्यु दर के मामले में भी दिखता है. राष्ट्रीय औसत 3.1% है जबकि गुजरात में ये 4.5% है.

आखिर गुजरात में COVID-19 के मामलों में तेजी का क्या कारण है? समझिए.

कुछ शहरों में केंद्रित हैं मामले

कारण जानने से पहले, राज्य में वायरस का फैलाव कहां-कहां हो रहा है, इसे जानना अहम है. अहमदाबाद, सूरत और वडोदरा में गुजरात के भीतर सबसे ज्यादा क्रमशः 1298, 338 और 188 मामले हैं. पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अकेले अहमदाबाद में मृत्यु दर (4.71 तब) राष्ट्रीय औसत (3.1) के ऊपर है.

फिट से बात करते हुए, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ (IIPH), गांधीनगर के डायरेक्टर डॉ दिलीप मावलंकर का कहना है कि राज्य के ग्रामीण हिस्सों में शायद ही कोई मामला हो.

“ इसका कोई साफ जवाब नहीं है कि शहरों में ज्यादा संख्या क्यों है, हाई पॉपुलेशन डेंसिटी यानी जनसंख्या घनत्व का ज्यादा होना वजह हो सकती है. शहर के भीतर संकरे, घनी आबादी वाले इलाके हैं, हालांकि वे झुग्गियां नहीं हैं. छोटे इलाके और छोटे घर हैं, जहां सोशल डिस्टेन्सिंग का 100% पालन मुमकिन नहीं है और ऐसे में ट्रांसमिशन ज्यादा हो सकता है.”
डॉ दिलीप मावलंकर, IIPH
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27 अप्रैल को मंत्रालय की ब्रीफिंग में, स्वास्थ्य सचिव लव अग्रवाल ने महाराष्ट्र और गुजरात में बढ़ते मामलों की घटनाओं पर एक सवाल पर ऐसी ही प्रतिक्रिया दी थी और इसके लिए शहरों की जनसंख्या घनत्व को जिम्मेदार ठहराया था.

असल में, ये पैटर्न भारत के लिए अनोखा नहीं है. फॉर्च्यून मैगजीन की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में ऐसा देखा गया है, जहां ज्यादातर मामले 'डेंस अर्बन सेंटर' यानी घनी आबादी वाले इलाके जैसे वुहान, मिलान, सिएटल, मैड्रिड और न्यूयॉर्क जैसे शहर में देखे गए. भीड़, बड़े-बड़े वेन्यू, पब्लिक ट्रांसपोर्ट और इवेंट वायरस का प्रजनन स्थल बन सकते हैं और इसे आसानी से फैलने में मदद कर सकते हैं.

हालांकि, अहमदाबाद के एक पैथोलॉजिस्ट डॉ मुकेश माहेश्वरी, फिट को बताते हैं कि ग्रामीण इलाकों में कम मामले वहां टेस्टिंग रेट कम होने के कारण भी हो सकते हैं. वो कहते हैं- “डायग्नॉस्टिक फैसिलिटी ज्यादातर शहरी इलाकों में हैं. उदाहरण के लिए, गुजरात में सभी 15 टेस्टिंग लैब बड़े शहरों में हैं.”

गुजरात में यात्रा करने वाले बहुत से लोग: एक्सपर्ट

डॉ. माहेश्वरी एक और कारण बताते हैं जो खासकर गुजरात के लिए लागू होती है, वो ये है कि इस राज्य के लोग बहुत यात्रा करते हैं. चूंकि ये वायरस दुनियाभर में फैलने से पहले चीन से सामने आया था, इसलिए विदेश से आने वाले यात्रियों को शुरुआती वाहक (कैरियर) माना जाता है, जिन्होंने अपने कॉन्टैक्ट के जरिये इस वायरस के फैलाव की एक चेन शुरू कर दी.

गुजरात अपने मजबूत कारोबारी समुदाय के लिए भी जाना जाता है, जिनकी वजह से यहां पूरे साल अंतरराष्ट्रीय और साथ ही घरेलू यात्राएं होती रहती हैं.

इस तथ्य की पुष्टि पर्यटन मंत्रालय के आंकड़ों से होती है, जिसके मुताबिक, 30 % से ज्यादा भारतीय पर्यटक गुजराती हैं.

ट्रैवल न्यूज डाइजेस्ट के एक लेख में कहा गया है कि भारतीयों में गुजराती सबसे ज्यादा यात्रा करना पसंद करते हैं. "गुजराती उस समुदाय के तौर पर सबसे ऊपर हैं, जो सबसे ज्यादा यात्रा करता है, चाहे वो अपने देश के भीतर हो या विदेश में."

डॉ. मावलंकर ने ये भी जोर देकर कहा कि गुजरात में बढ़ते मामलों के लिए शुरुआती हाइपोथेसिस में इस बात को ध्यान में रखा गया कि गुजरात के लोगों का विदेशी कनेक्शन ज्यादा है.

इसी तरह के एक विश्लेषण में फिट ने महाराष्ट्र में COVID-19 के बढ़ते केस को लेकर किया था. दिल्ली में क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट डॉ. सुमित रे ने इस बात पर जोर डाला था कि बड़े शहरों में ऐसा प्रभाव स्पेनिश फ्लू के समय भी देखा गया था. उन्होंने कहा था कि "हमें इसे मुंबई और दिल्ली के तौर पर देखना चाहिए क्योंकि दूसरे क्षेत्रों के मुकाबले बड़े शहरों में ज्यादा इंटरनेशनल ट्रैवल होते हैं और एक तरह से ये काफी तंग इलाके होते हैं. स्पेनिश फ्लू और प्लेग के दौरान सबसे ज्यादा मामले मुंबई में सामने आए थे."

लॉकडाउन खत्म होने के बाद केस बढ़ने का खतरा: डॉ माहेश्वरी

(फोटो: iStock)

डॉ माहेश्वरी कहते हैं, "चूंकि बहुत से लोग एसिम्प्टोमेटिक-बिना लक्षण के हैं और वो बिना इसकी जानकारी के हो सकते हैं, इसलिए लॉकडाउन वायरस को रोकने का एक कारगर तरीका है. गुजरात में, हम अनुमान लगा सकते हैं कि इसे अच्छी तरह से लागू किया जा रहा है, जहां 95% से ज्यादा आबादी घरों के अंदर है. यही वजह है कि हम कम्युनिटी ट्रांसमिशन के स्टेज में अभी तक नहीं पहुंचे हैं.”

कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग, डोर-टू-डोर निगरानी, रैंडम टेस्टिंग, अलग-अलग इलाकों और झुग्गियों में टीमों को स्क्रीनिंग और सैंपल कलेक्शन के लिए भेजने में नगर निगम सक्रिय है.

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, गुजरात के प्रिंसिपल सेक्रेटरी जयंती रवि ने बयान दिया था- “हम कह सकते हैं कि कोरोना वायरस गुजरात के पीछे नहीं बल्कि, गुजरात इस वायरस का पीछा कर रहा है; यही कारण है कि हमारे मामले बढ़ गए."

अनुमान के मुताबिक, अकेले अहमदाबाद में 10 लाख लोगों पर 2,700 टेस्ट किए जा रहे हैं, जबकि दिल्ली में ये आंकड़ा प्रति मिलियन 1,400 और महाराष्ट्र में 679 है.

अहमदाबाद म्यूनिसिपल कमिश्नर विजय नेहरा ने कहा था कि, "हमारे द्वारा प्रो-एक्टिव होकर उठाए गए कदमों की वजह से मामलों का पता चला है, लेकिन इससे ही जल्द ही हमारे यहां केसों की संख्या में कमी आएगी और हम सुरक्षित महसूस करेंगे."

लेकिन जब गुजरात सरकार ये सुनिश्चित कर रही है कि हॉटस्पॉट्स में कॉन्टैक्ट-ट्रेसिंग और स्क्रीनिंग की जा रही है, वहीं द प्रिंट के एक लेख में बताया गया है कि अहमदाबाद की तंग बस्तियों में लोग सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन नहीं कर रहे हैं, और पुलिस ने शिकायतें मिलने के बाद भी जांच करने के लिए वहां कोई दौरा नहीं किया. असल में, अधिकारी इस इलाके में कुछ परिवारों की स्क्रीनिंग करने से 'चूक' गए थे, इससे बेहद भीड़भाड़ वाले जगह में रहने वाले बाकी लोगों की जिंदगी भी जोखिम में आ गई है.

जैसे-जैसे संख्या तेजी से बढ़ रही है, डॉ. माहेश्वरी को लगता है कि राज्य में कंटेनमेंट के लिए वैकल्पिक तरीकों को अपनाने की जरूरत होगी, जैसा कि अमेरिका जैसे बाकी देशों में अपनाया गया है.

“लॉकडाउन हटने के बाद मामले बढ़ सकते हैं और इससे हमारे अस्पताल प्रभावित होंगे. हमें हल्के लक्षण वाले लोगों को घर पर रहने की मंजूरी देने वाली नीतियों के बारे में सोचना होगा.”
डॉ मुकेश माहेश्वरी

केंद्र सरकार ने 28 अप्रैल को, बहुत हल्के लक्षणों वाले या प्री-सिम्प्टोमेटिक मरीजों के लिए होम क्वॉरन्टीन को मंजूरी देते हुए गाइडलाइंस जारी किए हैं.

अगर लॉकडाउन में ढील होती है तो सोशल डिस्टेन्सिंग और तेजी से टेस्टिंग ही एकमात्र रास्ता बचता है.

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