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Pregnancy की प्लानिंग कर रहे हैं, तो पहले अपने ब्लड शुगर की जांच जरुर कराएं

डायबिटीज की समस्या से टूट सकता है माता-पिता बनने का सपना

डॉ हृषिकेश पाई
फिट
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<div class="paragraphs"><p>Pregnancy प्लान करते ही अपना ब्लड शुगर टेस्ट भी कराएं&nbsp;</p></div>
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Pregnancy प्लान करते ही अपना ब्लड शुगर टेस्ट भी कराएं 

(फोटो:iStock)

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पिछले दो साल से पूरी दुनिया कोविड महामारी और उसके कारण होने वाली समस्याओं से जूझ रही है. जिसकी वजह से, पहले से मौजूद पुरानी बीमारियों से हमारा ध्यान भटक रहा है. यह बीमारियाँ हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित या खराब तो करती ही हैं, साथ में हमें विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति अधिक संवेदनशील बनाती हैं.

बीमारियों की सूची में डायबिटीज का स्थान सबसे ऊपर है. उच्च डायबिटीज आबादी (लैंसेट) वाले दुनिया के तीन देशों में भारत भी शामिल है. इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन (आईडीएफ) के अनुसार, भारत में 20-70 वर्ष के आयु वर्ग में डायबिटीज के मामले साल 2015 में लगभग 7 करोड़ थे और यह संख्या बहुत तेजी से बढ़ती जा रही है. इसका मतलब यह है कि डायबिटीज, फर्टिलिटी आयु वर्ग वाले भारत की आबादी के एक बड़े हिस्से को प्रभावित कर रहा है.

मुंबई के लीलावती हॉस्पिटल के गायनेकोलॉजिस्ट और इनफर्टिलिटी विशेषज्ञ डॉ हृषिकेश पाई, इस विषय पर विस्तार से बता रहे है.

डायबिटीज का पुरुषों और महिलाओं दोनों की फर्टिलिटी क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. इसलिए यदि आप फर्टिलिटी की आयु वर्ग में हैं या गर्भ धारण करने की योजना बना रहे हैं, तो आपको एक साधारण ब्लड टेस्ट से अपने ब्लड शुगर के स्तर की जांच कराने की आवश्यकता है.

डायबिटीज के बारे में आप सभी को पता होना चाहिए

एक स्वस्थ शरीर शुगर, स्टार्च और अन्य भोजन को ऊर्जा में बदलने के लिए इंसुलिन का उत्पादन करता है. हालांकि, कभी-कभी पेनक्रियाज में पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं हो पाता है, जिसके कारण शरीर में शुगर बना रहता है - जिससे ब्लड शुगर का स्तर बढ़ जाता है. अगर यह स्थिति लंबे समय तक रही तो हाई ब्लड शुगर डायबिटीज का कारण बनता है, जिसका इलाज न करने पर परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

डायबिटीज के विभिन्न प्रकार (type) हैं और वह किसी भी उम्र में हो सकती है, इसलिए इन संबंधित लक्षणों पर नजर रखना बेहद जरूरी है.

टाइप 1 डायबिटीज में, आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है और पेनक्रियाज में इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाएं ठीक से काम नहीं करती हैं. यह डायबिटीज आमतौर पर छोटे बच्चों और किशोरों में पाया जाता है और उन्हें इंसुलिन की दैनिक खुराक की आवश्यकता होती है.

टाइप 2 डायबिटीज में आपका शरीर इंसुलिन नहीं बना पाता है. यह ज्यादातर मध्यम और वृद्ध आयु वर्ग के लोगों में देखा जाता है.

गर्भकालीन डायबिटीज गर्भवती महिलाओं में आम है, लेकिन बच्चे के जन्म के बाद यह समस्या दूर हो जाती है. हालांकि उसके बाद, ऐसी महिलाओं को भविष्य में टाइप 2 डायबिटीज होने का खतरा अधिक होता है.

इस सब को देखते हुए, यह महत्वपूर्ण बात समझ लेना जरुरी है कि डायबिटीज के यह दो प्रकार रिप्रोडक्शन क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं और गर्भकालीन डायबिटीज सीधे गर्भावस्था को प्रभावित कर सकता है.

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क्या यह चिंता का विषय है?

यदि आप माता-पिता बनने की योजना बना रहे हैं और लंबे समय से गर्भ धारण करने की कोशिश के बाद भी असफल हो रहे हैं, तो आप एक साधारण ब्लड टेस्ट के माध्यम से अपने ब्लड शुगर के स्तर को जानकर इस समस्या का समाधान कर सकते हैं. बहुत कम लोग जानते हैं कि डायबिटीज पुरुष रिप्रोडक्शन क्षमता के साथ-साथ महिला रिप्रोडक्शन क्षमता में भी हस्तक्षेप कर सकता है, जिससे बच्चे को जन्म देने की आपकी कोशिश विफल हो जाती है.

डायबिटीज पुरुषों के यौन स्वास्थ्य के साथ-साथ उनकी रिप्रोडक्शन क्षमता को भी प्रभावित करता है. डायबिटीज वाले लगभग 50% पुरुष इरेक्टाइल डिसफंक्शन से पीड़ित होते हैं.

डायबिटीज टेस्टोस्टेरोन उत्पादन को प्रभावित करता है और स्पर्म की गुणवत्ता को कम करता है. यह विशेष रूप से चिंताजनक है क्योंकि इसका मतलब है कि डायबिटीज डीएनए को स्प्लिट कर के स्पर्म डीएनए को नुकसान पहुंचा सकता है. जिससे टूटे हुआ डीएनए वाले स्पर्म द्वारा फर्टिलाइज्ड एग से स्वस्थ भ्रूण (embryo) बनने की संभावना कम होती है. जो गर्भाशय की आरोपण क्षमता (implantability)पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है और गर्भपात की घटनाओं को बढ़ाता है. यह आईवीएफ प्रक्रियाओं की सफलता दर को भी प्रभावित कर सकता है.

ज्यादातर महिलाओं को अपने प्रजनन यानी रिप्रोडक्शन के वर्षों के दौरान टाइप 2 डायबिटीज या गर्भकालीन डायबिटीज होता है, इसलिए महिलाओं को अपने ब्लड शुगर के स्तर की जांच के लिए सक्रिय कदम उठाने की जरूरत है.

1980 से 2014 के बीच (लैंसेट)), भारत की महिलाओं में डायबिटीज के मामलों में 80 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. टाइप 1 के डायबिटीज वाली महिलाओं में अनियमित मासिक धर्म बहुत आम है, जबकि टाइप 2 के डायबिटीज से पीड़ित महिलाओं को अक्सर पीसीओएस (पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम) और मोटापे जैसी समस्याएं होती हैं. अनियंत्रित डायबिटीज महिलाओं को ओवुलेशन समस्याओं और गर्भाशय ग्रीवा-योनि (cervical-vaginal) संक्रमण के खतरे में डालता है. डायबिटीक गर्भवती महिलाओं को गर्भपात (miscarriage) और मृत जन्म (stillborn) के जोखिम के साथ-साथ जन्म दोष वाले नवजात शिशुओं जैसी जटिलताएं भी हो सकती हैं.

डायबिटीज और गर्भावस्था

डायबिटीज एक क्रोनिक स्थिति है, मगर इसके बावजूद इसे कुछ सरल चरणों के साथ मैनिज किया जा सकता है. डायबिटीज की समस्या के सुधार में सबसे मददगार साबित होता है स्वस्थ आहार का पालन करना और नियमित व्यायाम करना. अपने ब्लड शुगर के स्तर की निगरानी करें, और दवाईयाँ जैसे मेटफोर्मिन या इंजेक्शन या पंप के माध्यम से इंसुलिन के उपयोग के लिए अपने चिकित्सक से परामर्श करें.

यदि आप में टाइप 1 या 2 जैसे डायबिटीज का निदान(diagnosis) किया गया है और आप बच्चे को जन्म देने की योजना बना रहे हैं, तो पहले यह सुनिश्चित करें कि आप गर्भधारण करने में सक्षम हैं या नहीं. डायबिटीज के साथ एक स्वस्थ गर्भावस्था निश्चित रूप से संभव है, लेकिन इसके लिए आपको अधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता होगी.

अपने डॉक्टर से इस संबधित मशवरा लें, जो आपको इनफर्टिलिटी स्पेशलिस्ट या गर्भधारण करने से पूर्व देखभाल की सलाह दे सकते हैं. आमतौर पर देखा जाए तो, साधारण डायबिटीज का सरल तरीके से इलाज कर के प्रजनन संबंधी समस्याओं को दूर किया जा सकता है. यदि नहीं, तो आप इंट्रासाइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजेक्शन (आईवीएफ + आईसीएसआई) के साथ इन विट्रो फर्टिलाइजेशन जैसे विकल्पों पर विचार कर सकते हैं.

ग्लूकोज के स्तर पर नियंत्रण रखने और उन्हें सामान्य श्रेणी में लाएं. इससे न केवल गर्भावस्था की संभावना बढ़ेगी बल्कि गर्भपात, जन्म दोष और मृत जन्म के जोखिम को कम करने में भी सहायता होगी. गर्भावस्था के दौरान शरीर ग्लूकोज की मात्रा में परिवर्तन कर सकता है. जिस कारण डायबिटीज के उपचार में भी बदलाव लाना बेहद जरुरी हो जाता है. इसलिए अपने ब्लड शुगर के स्तर पर कड़ी नजर रखना बहुत जरुरी है.

अंतिम, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि डायबिटीज को नियंत्रित करने के लिए जीवनशैली में बदलाव की आवश्यकता होती है. स्वस्थ आहार, वजन नियंत्रण, नियमित व्यायाम, तंबाकू से दूर रहने के साथ-साथ तनाव मुक्त जीवन शैली अपनाने से न केवल गर्भधारण की तैयारी के दौरान, बल्कि गर्भावस्था से लेकर बच्चा होने के बाद भी आपको स्वस्थ रखेगा.

(यह लेख डॉ हृषिकेश पाई, कन्सल्टंट गायनकॉलिजस्ट एंड इन्फ़र्टिलिटी स्पेशलिस्ट, लीलावती हॉस्पिटल-मुंबई, डी वाई पाटिल हॉस्पिटल-नवी मुंबई, फोर्टिस हॉस्पिटल, दिल्ली-गुड़गाँव ने फिट हिंदी के लिए लिखा है.)

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