इनफर्टिलिटी या बांझपन का मतलब गर्भाधान करने में किसी व्यक्ति की जैविक अक्षमता (biological inability) से है. यह एक महिला द्वारा फुल टर्म प्रेग्नेंसी की अक्षमता को भी दर्शाता है. 2012 में पब्लिश हुई WHO की एक स्टडी के मुताबिक विकासशील देशों में हर चार कपल में से एक को इनफर्टिलिटी से प्रभावित पाया गया था. आंकड़े बताते हैं कि लगभग 10-15 प्रतिशत भारतीय आबादी इनफर्टिलिटी का शिकार है. लगभग 2.75 करोड़ कपल ऐसे हैं, जो गर्भधारण करना चाहते हैं, लेकिन ऐसा करने में सक्षम नहीं हैं.
इनफर्टिलिटी का डायग्नोसिस अक्सर तनाव, चिंता और डिप्रेशन का कारण बनता है. कई मेडिकल, फिजिकल, मेंटल, इमोशनल, फाइनेंशियल, सोशल और वैवाहिक मुद्दे इनफर्टिलिटी से जुड़े हैं. ये चुनौती आइसोलेशन और डिप्रेशन लाती है. ये कभी-कभी लोगों को आत्महत्या की कगार तक ले जाता है.
इनफर्टिलिटी के लिए पारंपरिक इलाज में IUI, IVF और ICSI जैसी जटिल प्रक्रियाएं शामिल हैं. इन तकनीकों की सफलता की गारंटी नहीं है. इसके अलावा, ये प्रक्रिया काफी महंगी हैं. इनके लिए फाइनेंसियल प्लानिंग की जरूरत होती हैं.
क्या कहता है आयुर्वेद?
![एक आयुर्वेदिक आहार इनफर्टिलिटी के इलाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.](https://images.thequint.com/quint-hindi%2F2019-05%2F76444573-9458-4967-a15b-eb7e7e84e56a%2FFertility.jpg?auto=format%2Ccompress&fmt=webp&width=720)
भारत में आज इनफर्टिलिटी एक महामारी का रूप ले रही है. रेगुलर एलोपैथिक इलाज में आक्रामक प्रक्रियाएं शामिल होती हैं, जो दर्दनाक और महंगी होती हैं.
आयुर्वेद में एक सौम्य पद्धति अपनाई जाती है. ये इस समस्या को दूर करने के लिए एक समग्र मार्ग अपनाता है. शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक तत्वों पर ध्यान केंद्रित करके प्रजनन प्रणाली (reproductive system) पर काम करता है. यह प्राकृतिक तरीकों पर आधारित है और इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है.
इस प्राचीन ग्रंथ के अनुसार, पुरुषों में शुक्राणु या शुक्र धातु (reproductive tissue) और महिलाओं में अर्तवा धातु (आमतौर पर शुक्र के रूप में संदर्भित) स्वस्थ गर्भधारण के लिए जिम्मेदार हैं. यह टिश्यू शारीरिक, मानसिक भावनात्मक मुद्दों और गंभीर बीमारियों से भी प्रभावित हो सकता है.
शुक्र धातु का निर्माण मेटाबॉलिक प्रोसेस की एक लंबी सीरिज पर निर्भर करता है, जो पाचन से शुरू होकर जिससे खून, मसल्स, फैट, हड्डी, बोन मैरो और अंत में शुक्र टिश्यू का निर्माण होता है. इस टिश्यू का हेल्थ बॉडी के अन्य टिश्यू के बेहतरी से प्रभावित होता है.
जब इसे एक अनहेल्दी लाइफस्टाइल, जंक फूड खाने, खराब पाचन जैसे कारकों के कारण उचित पोषण नहीं मिलता है, तो इनसे शरीर में विषाक्त पदार्थों का निर्माण होता हैं जो रिप्रोडक्शन सिस्टम को प्रभावित करते हैं.
आयुर्वेद में बताए गए तरीके अपनाना
गर्भाधान के लिए आयुर्वेद की तैयारी भावी माता-पिता के स्वास्थ्य का ख्याल रखते हुए शुरू होती है. आयुर्वेदिक नुस्खे समग्र दृष्टिकोण पर आधारित है. यह चिंता, डिप्रेशन, स्ट्रेस और अनिद्रा का ध्यान रखते हुए शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करके जीवन के एक स्थिर तरीके पर जोर देता है. क्योंकि ये कारक प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं. आयुर्वेदिक उपचार गर्भाधान की दिशा में काम करता है. इसमें गर्भावस्था की अवधि को सफलतापूर्वक पूरा करने और सामान्य रूप से एक स्वस्थ बच्चे के जन्म लेने तक शामिल है.
फूड
![एक आयुर्वेदिक आहार इनफर्टिलिटी के इलाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.](https://images.thequint.com/quint-hindi%2F2019-05%2F3d943257-52c7-4cad-a416-a4f0a20a0a22%2FFruit_QuintFit.jpg?auto=format%2Ccompress&fmt=webp&width=720)
एक आयुर्वेदिक आहार इनफर्टिलिटी के इलाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो हेल्दी रिप्रोडक्टिव टिश्यू के विकास में मदद करता है. यह उन फूड का सख्त पालन करने को कहता है, जो पोषण बढ़ाते हैं.
ओजस शुक्र धातु का उप उत्पाद है. ओव्यूलेशन को रेगुलेट करने और फर्टिलाइजेशन को बढ़ाने के लिए ओजस को कम करने वाले किसी भी फूड से पूरी तरह से बचा जाना चाहिए.
आयुर्वेद सभी शारीरिक गतिविधियों के लिए आवश्यक संतुलन बनाने के लिए दोषों को शांत करने का सुझाव देता है. वात के लिए, अच्छी तरह से पकाया हुआ, नम और गर्म भोजन करें. उन खाद्य पदार्थों को चुनें जो चिकनाई वाले हो. कच्चे फलों और गाजर, खीरा, शकरकंदी जैसी रफ टेक्सचर वाली सब्जियों से बचें. पित्त आहार में ठंडा और पौष्टिक भोजन शामिल है, जबकि कफ के लिए गर्म और हल्की डाइट फायदेमंद है.
ताजे और रसीले फल, सब्जियां, साबुत अनाज, खजूर, अखरोट, बादाम और अंजीर गर्भाधान में मदद करते हैं. दूध, छाछ, घी, सफेद और काले तिल, कद्दू और केसर जैसे खाद्य पदार्थों से भरपूर डाइट से स्वास्थ्य में सुधार होता है और शुक्राणु के निर्माण में मदद मिलती है.
जीरा, अजवाइन और हल्दी जैसे मसालों की सलाह दी जाती है. जड़ वाली सब्जियां, प्याज, लहसुन, धनिया और करी पत्ते, नीम, तुलसी और आंवला अत्यधिक फायदेमंद हैं. आयरन और मिनरल्स से भरपूर ऑर्गेनिक गुड़ को शामिल करना चाहिए.
इन फूड्स से बचें
![एक आयुर्वेदिक आहार इनफर्टिलिटी के इलाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.](https://images.thequint.com/quint-hindi%2F2019-05%2F8f958319-f83b-4963-b845-7c64be000473%2Fjunk_food.jpg?auto=format%2Ccompress&fmt=webp&width=720)
- इनमें सभी प्रोसेस्ड, केमिकल वाले फूड, हार्मोन वाला दूध और मीट शामिल हैं
- सभी कैन वाले, डिब्बाबंद प्रोडक्ट और प्रिजर्वेटिव वाले फूड
- एयरेटेड ड्रिंक्स, आइसक्रीम, जेली बेक्ड प्रोडक्ट, पैक्ड फ्रूट जूस कैंडी और च्युइंग गम
- आलू के चिप्स, तले हुए स्नैक्स, रेडी टू इट मील, फ्रोजन फूड, वाइट ब्रेड और पास्ता
- आर्टिफिशियल फ्लेवरिंग और कलर, अतिरिक्त कैफीन
- मोनो सोडियम ग्लूटामेट (चाइनीज, डिब्बाबंद और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में स्वाद बढ़ाने के लिए इस्तेमाल होने वाला पदार्थ)
लाइफस्टाइल
![एक आयुर्वेदिक आहार इनफर्टिलिटी के इलाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.](https://images.thequint.com/quint-hindi%2F2019-05%2Ff2f8fa1b-df1c-45a0-bd5e-d1ae794cd067%2Fmeditation.jpg?auto=format%2Ccompress&fmt=webp&width=720)
एक्सरसाइज रूटीन को फॉलो करें. योग आसन विशेष रूप से अर्ध मत्स्येन्द्रासन (बैठे हुआ मुद्रा), पश्चिमोत्तानासन (आगे की ओर झुकना), सर्वांगासन (कंधे का खड़ा होना) और सलाबासन (टिड्डे का पोज) महिला की इनफर्टिलिटी को ठीक करने में प्रभावी हैं. किसी भी व्यायाम को अपनाने से पहले हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें. इसे सही तरीके से करने के लिए किसी योग प्रैक्टिशनर से सीखें.
किसी भी प्रकार के शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक प्रभाव गर्भाधान को प्रभावित करते हैं. लंबे समय तक या पुराने तनाव से इनफर्टिलिटी हो सकती है. एक रेगुलर मेडिटेशन प्रेक्टिस स्ट्रेस के लेवल को कम कर सकती है. आप ब्रीदिंग मेडिटेशन, माइंडफुलनेस प्रेक्टिस या अपनी पसंद के किसी अन्य रूप को चुन सकते हैं. चीनी मार्शल तकनीक ताई ची भी स्ट्रेस कम करने में सहायक है.
इन सामान्य दिशानिर्देशों का पालन करने से फिजिकल एक्टिविटी को रेगुलेट करने में मदद मिल सकती है. आयुर्वेद आपको गर्भधारण करने और हेल्दी बेबी को जन्म देने में मदद कर सकता है. हालांकि, आयुर्वेदिक डॉक्टर से सलाह लेना और हेल्थ का कंप्लीट इवैल्युएशन, लाइफस्टाइल और पर्सनल फैक्टर भी जरूरी है.
(नुपूर रूपा एक फ्रीलांस राइटर और मदर्स के लिए लाइफ कोच हैं. वह पर्यावरण, फूड, हिस्ट्री, पेरेंटिंग और ट्रैवल पर आर्टिकल लिखती हैं.)
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