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फाइब्रॉएड- महिलाओं में पाए जाने वाला ये आम ट्यूमर बढ़ा सकता है जीवन की मुश्किलें

समय पर फाइब्रॉएड की समस्या का इलाज कराने में समझदारी है

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फाइब्रॉएड गर्भाशय का एक सौम्य ट्यूमर (benign tumor) होता है, जो 20% से अधिक युवा महिलाओं में पाया जाता है. फाइब्रॉएड का आकार भिन्न हो सकता है, यह सेब के बीज से लेकर तरबूज जितना हो सकता है. फाइब्रॉएड का डायग्नोसिस सोनोग्राफी, जेनेटिक इतिहास और स्त्री रोग संबंधी जाँच द्वारा किया जा सकता है.

फाइब्रॉएड का इलाज उम्र, शारीरिक स्थिति, फाइब्रॉएड का आकार, लक्षण और भविष्य में गर्भावस्था की संभावना के अनुसार तय किया जाता है.

मुंबई के लीलावती हॉस्पिटल की डॉ रिश्मा ढिल्लोन पै, गायनेकोलॉजिस्ट और इनफर्टिलिटी विशेषज्ञ, महिलाओं में फाइब्रॉएड की समस्या के बारे में विस्तार से बता रही हैं.

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फाइब्रॉएड कई प्रकार के होते हैं:

सबसेरोसल फाइब्रॉएड : यह गर्भाशय के बाहरी दीवार पर विकसित होता है. आमतौर पर जब तक ये छोटे आकार के होते हैं, तब तक इनसे कोई समस्या नहीं होती. बड़े आकार के फाइब्रॉएड आंत, रीढ़ की हड्डी और ब्लैडर पर दबाव डालते हैं. इसके कारण पेल्विस में तेज दर्द होता है. साथ ही शौच और पेशाब करने में तकलीफ होती है.

ये फाइब्रॉएड पेट के निचले हिस्से यानी पेल्विक एरिया में भारीपन महसूस कराता है. जिसके कारण पेट का निचला हिस्सा 3 से 5 महीने के गर्भावस्था के आकार जैसा फूल जाता है. इसलिए, कुछ मरीजों में इन बड़े आकार के सबसेरोसल फाइब्रॉएड को सर्जरी से निकाला जाता है. यह सर्जरी आमतौर पर पेट में कट लगाकर करते हैं, जिससे बिकिनी-स्कार के निशान बन सकते हैं. इस सर्जरी मे पेट खोलकर गर्भाशय के भीतर से फाइब्रॉएड को हटाया जाता है. इसके बाद गर्भाशय और पेट पर स्टिच लगाकर बंद कर दिया जाता है. इस प्रक्रिया में लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहने और आराम करने की आवश्यकता होती है. इस सर्जरी के बाद पेट में आसंजन (आंतों का एक-दूसरे और गर्भ से चिपकना) विकसित होने की संभावना भी अधिक होती है, जिसकी वजह से लंबे समय तक पेट में दर्द और कभी-कभी बांझपन की समस्या हो सकती है.

आजकल ज्यादातर एंडोस्कोपिक (लैप्रोस्कोपिक) सर्जरी से फाइब्रॉएड हटाया जाता है. इसमें फाइब्रॉएड को हटाने के लिए पेट में छोटे चीरे के माध्यम से पतली दूरबीन (टेलिस्कोप) अंदर डाली जाती है. जिससे स्क्रीन पर देखते हुए अंदर पनप रहे फाइब्रॉएड को निकाला जाता है, और छोटे सर्जिकल उपकरण द्वारा स्टिच लगा के बंद कर दिया जाता है. आजकल मोरसेलेटर नामक आधुनिक मशीन से बड़े फाइब्रॉएड को भी छोटे छोटे टुकड़ों में लेप्रोस्कोपिक मार्ग से हटाया जा सकता है. इस तकनीक से एक अच्छी बात यह होती है कि बड़े फाइब्रॉएड-टिशू को छोटे छोटे टुकड़ों मे परिवर्तित कर दिया जाता है. जिससे यदि ट्यूमर (कैंसर) जैसे स्थिती हो, तो उसके अधिक फैलाव से बचना संभव होता है. कॉस्मेटिक सर्जरी होने के कारण इस सर्जरी के बाद पेट पर हल्का निशान रहता है.

इस सर्जरी के बाद मरीज दो तीन दिनों में ही घर जा सकती हैं. फाइब्रॉएड सर्जरी के बाद होने वाली आसंजन और पेट दर्द की समस्या भी इस प्रक्रिया में काफी कम होने के कारण मरीज जल्दी ठीक हो सकती हैं.

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समय पर फाइब्रॉएड की समस्या का इलाज कराने में समझदारी है

फाइब्रॉएड, गर्भाशय फूलने और दर्द का कारण होता है 

(फोटो:iStock)

इंट्राम्यूरल फाइब्रॉएड: गर्भाशय की दीवार पर पनपने वाला आम फाइब्रॉएड होता है. इसके कारण गर्भाशय फूल जाता है और बड़ा नजर आने लगता है. साथ ही दर्द व रक्तस्राव होता है और गर्भधारण करना मुश्किल हो जाता है. खासकर अगर वे बड़े साइज के हैं, तो वे समस्याएं पैदा करते हैं. बड़े फाइब्रॉएड सामान्य प्रसव को भी रोक सकते हैं और प्रसव के बाद भारी रक्तस्राव या संक्रमण का कारण बन सकते हैं. इसलिए उन्हें हटाना जरूरी हो जाता है. आमतौर पर सेरोसल फाइब्रॉएड की तरह इन्हें भी सर्जरी से हटाया जा सकता है.

सबम्यूकोस फाइब्रॉएड: गर्भाशय में मांसपेशियों की परत के बीच विकसित होते हैं. इसके कारण के दौरान दर्द के साथ अत्यधिक मात्रा में रक्तस्राव होता है. साथ ही गर्भधारण करने में भी परेशानी हो सकती है. यहां तक ​​कि छोटे सबम्यूकोस फाइब्रॉएड भी गंभीर पेट दर्द, भारी और अनियमित मासिक धर्म, इनफर्टिलिटी और सामान्य प्रसव में कठिनाई का कारण बन सकते हैं. इन लक्षणों के कारण सबम्यूकोस फाइब्रॉएड को हटाना जरूरी होता है.

हिस्टेरोस्कोपिक सर्जरी द्वारा सबम्यूकोस फाइब्रॉएड हटाना संभव होता है. इसमें फाइब्रॉएड को हटाने के लिए पतली दूरबीन (हिस्टेरोस्कोपी) को योनी के जरिए गर्भाशय तक ले जाया जाता है और फाइब्रॉएड को काट दिया जाता है. इसमें रेसेक्टोस्कोप या वर्सापॉइंट नामक आधुनिक तकनीकी उपकरण का उपयोग करके सर्जरी की जाती है. वर्सापॉइंट एक लेजर उपकरण है, जिससे गर्भाशय में पनपे फाइब्रॉएड को वैपराइज कर दिया जाता है. यह एक सुरक्षित और कुशल प्रक्रिया है इसलिए इसमें किसी भी प्रकार का चीरा और टांके नहीं लगते हैं.

इससे मरीज की रिकवरी तेजी से होती है और उन्हें काफी राहत भी मिलती है.

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हाल ही में यूलिप्रिस्टल नामक एक नई दवा लॉन्च की गई है, जो फाइब्रॉएड के इलाज के लिए उपलब्ध पहली गोली है. इससे 3 महीने में फाइब्रॉएड का आकार कम से कम होने में सहायता मिलती है. इसके साईड इफेक्ट भी कम होते हैं.

फाइब्रॉएड आमतौर पर गैर-कैंसर वाले ट्यूमर होते हैं. हालांकि आधुनिक तकनीक और सर्जरी विकल्प से सभी फाइब्रॉएड हटा दिए जाएं, तो भी वह कुछ साल बाद फिर से बन सकते हैं. इसलिए खासकर युवा महिलाओं को फाइब्रॉएड सर्जरी के बाद कुछ महीनों के भीतर गर्भवती होने की योजना बनानी चाहिए ताकि पुनरावृत्ति(recurrence) का कोई खतरा न हो.

कुछ समय तक फाइब्रॉएड का इलाज केवल सर्जरी द्वारा किया जा सकता था पर अब इसका इलाज बगैर अस्पताल में भर्ती और एनस्थेशिया बिना संभव है. क्योंकि पहली बार एमआरआई गाइडेड फोकस्ड अल्ट्रासाउंड (MRgFUS) की आधुनिक तकनीक से हम फाइब्रॉएड समस्या से छुटकारा पा सकते हैं.

एमआरआई स्कैन करके पता लगाया जाता है कि फाइब्रॉएड कहां है. फिर त्वचा के जरिए सुई को शरीर के अंदर डाला जाता है और इसी सुई के माध्यम से फाइबर-ऑप्टिकल-केबल डाली जाती है. इस केबल के जरिए लेजर किरण फाइब्रॉएड तक पहुंचती है और उसे सिकोड़ देती है.

इस प्रक्रिया के दौरान या सर्जरी के बाद पेशंट को कोई दर्द नहीं होता है. वो उसी दिन घर लौट सकती हैं और अगले दिन से काम भी शुरू कर सकती हैं.

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यदि महिला की उम्र ज़्यादा है और उन में मल्टिपल फाइब्रॉएड हैं, तो फाइब्रॉएड के साथ पुरा गर्भाशय (हिस्ट्रेक्टोमी) निकाला जाता है. ऐसे मामले में पेट (लैपरोटॉमी) लेप्रोस्कोपिक द्वारा खोला जा सकता है.

जो महिलाएं सर्जरी का जोखिम नही लेना चाहतीं, वे भी अब अपने फाइब्रॉएड का इलाज करा सकती हैं. अपने गर्भाशय में पनपे फाइब्रॉएड को बिना सर्जरी के बाहर निकलवा सकती हैं. साथ ही जो महिलाएं भविष्य में गर्भवती होना चाहती हैं, उनके लिए यह उपचार विकल्प सबसे उपयुक्त है.

फाइब्रॉएड सभी उम्र की महिलाओं में हो सकता है, वे प्रजनन (reproduction) काल के दौरान विकसित होते हैं. खासतौर पर 20 की आयु से लेकर 50 की आयु के बीच की महिलाओं में फाइब्रॉएड पाया जा सकता है. इसलिए फाइब्रॉएड के भले ही कोई लक्षण न हो, फिर भी सभी महिलाओं को नियमित रूप से स्त्री रोग संबंधी जांच करवाना जरूरी है.

(यह लेख डॉ. रिश्मा ढिल्लोन पै, गायनेकोलॉजिस्ट और इनफर्टिलिटी विशेषज्ञ, लीलावती हॉस्पिटल, जसलोक हॉस्पिटल ऑर हिंदुजा हेल्थकेअर सर्जिकल हॉस्पिटल द्वारा फिट हिंदी के लिए लिखा गया है.)

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