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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (FM Nirmala Sitharaman) ने मंगलवार को लोकसभा में देश का बजट (Union Budget 2022) पेश करते हुए मेंटल हेल्थ पर कोविड 19 महामारी के प्रभाव को स्वीकार किया. उन्होंने संसद में अपने बजट-भाषण में कहा कि कोरोना महामारी ने सभी उम्र के लोगों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को बढ़ा दिया है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा की कि केंद्र सरकार एक ‘नेशनल टेली मेंटल हेल्थ प्रोग्राम’ शुरू करेगी. जिसमें 23 मानसिक स्वास्थ्य केंद्रों होंगे और जहां टेलीफोन, इंटरनेट आदि के ज़रिए एक्सपर्ट से मेंटल हेल्थ काउंसलिंग पाने में मदद मिलेगी
इस प्रोग्राम की मदद से कहीं भी, कभी भी और कोई भी व्यक्ति टेलीफोन, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, इंटरनेट के जरिए मनोचिकित्सक से अपने मानसिक स्वास्थ्य को लेकर सलाह ले सकेगा. नोड्स केंद्र की कोशिश यही रहेगी कि दूर-दराज के इलाकों में भी आसानी से पहुचे और लोगों के बीच मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जो झिझक है उसे कम करें.
तो चलिए, टेली मेंटल हेल्थ के बारे में विस्तार से जानें-
फोर्टिस हेल्थकेयर के मानसिक स्वास्थ्य और व्यवहार विज्ञान के निदेशक डॉ समीर पारिख ने इस सवाल का जवाब कुछ यूं दिया, “मानसिक बीमारियों की स्थिति में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए दूरसंचार या वीडियो कांफ्रेंसिंग तकनीक का उपयोग करना ही टेली मेंटल हेल्थ है. इस प्रोग्राम की सहायता से लोगों को आसानी से मेंटल हेल्थ हेल्प मिल सकेगी. कह सकते हैं कि यह प्रोग्राम मानसिक स्वास्थ्य सुविधाओं की अफोर्डेबिलिटी और एक्सेसिबिलिटी दोनों ही बढ़ाएगा”.
टेली मेंटल हेल्थ सेवा के तहत मरीज घर बैठे-बैठे सिर्फ एक फोन की मदद से मनोचिकित्सक या मनोवैज्ञानिक की मदद ले सकते हैं. इलाज की सुविधा मिल सकेगी. जिससे समय और पैसे दोनों की बचत होगी और मरीज़ अपनी सुविधानुसार अपॉइंटमेंट शेड्यूल कर सकते हैं.
दूर-दराज के वे इलाके जहां मेंटल हेल्थ सुविधाओं की पहुंच बेहद कम है, वहां भी इस प्रोग्राम के ज़रिए लोग मानसिक स्वास्थ्य का लाभ ले सकेंगे.
मानसिक स्वास्थ्य को लेकर हमारे समाज में काफी कम जागरूकता है. जिसके चलते लोग अक्सर इसे छुपाने लायक मानकर एक्सपर्ट से मिलने से झिझकते हैं और मानसिक रोगों के इलाज के लिए जल्दी बाहर नहीं निकलते. ऐसे में इस प्रोग्राम के जरिए अब घर बैठे, वो मानसिक स्वास्थ्य सुविधाएं ले सकेंगे और उनकी हिचक भी कम होगी.
सरकार ने इसका ऐलान तो कर दिया है लेकिन इसे लेकर किसी तरह के अतिरिक्त आवंटन की घोषणा अभी नहीं की गयी है. जिस पर डॉक्टरों के एक समूह में चिंता जताई जा रही है.
इस प्रोग्राम के लिए मोबाइल फोन और नेटवर्क कनेक्टिविटी की जरूरत पड़ेगी. लेकिन आज भी भारत में कई ऐसे लोग हैं, जिनके पास न तो स्मार्टफोन और ना ही अच्छी नेटवर्क कनेक्टिविटी की सुविधाएँ हैं.
हमारे देश के लोग साइबर क्राइम से अनभिज्ञ नहीं है. अपनी समस्याओं को विशेषज्ञ से ऑनलाइन साझा करते वक्त, दिए गए डेटा का गलत इस्तेमाल का डर मरीजों को लग सकता है.
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