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बजट 2022 : निश्चित तौर पर यह आम बजट लोकलुभावन चुनावी बजट जैसा नहीं है

लोकलुभावन जीत के बजाय अर्थव्यवस्था को विकास के ट्रैक पर बनाए रखने के लिए केंद्रित है यह बजट

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बजट (Budget) के पहले जब इस बात की उम्मीदें जताई जा रही थीं कि 2022 का आम बजट (Union Budget 2022) एक चुनावी बजट होगा जो कड़ी मेहनत से हासिल की गई बजट की बुद्धिमता को नकार देगा. तब मोदी सरकार और विशेष तौर पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Finance Minister Nirmala Sitharaman) के तटस्थ समीक्षक इस बात से आश्वस्त नहीं थे.

इसलिए हम में से कुछ के लिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि यह बजट विशुद्ध रूप से वर्क इन प्रोग्रेस जैसा है, यह प्रैक्टिकल है तथा इसमें कोई निरर्थक बात नहीं कही गई है. यह अल्पकालिक लोकलुभावन जीत के बजाय अर्थव्यवस्था को विकास के ट्रैक पर बनाए रखने के लिए केंद्रित है.

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बजट 2022 ने विश्वास की छलांग लगाई है और इस बजट ने निम्न मध्यम वर्ग के लिए आय समर्थन या टैक्स ब्रेक के बजाय विकास में निवेश करने के लिए उपलब्ध सीमित संसाधनों का उपयोग करने पर ध्यान केंद्रित किया है. पूंजीगत व्यय को 35.4% बढ़ाकर 7.5 ट्रिलियन रुपये (केवल दो साल पहले से 2.2 गुना अधिक) तक सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 3% तक पहुंचाने वाली घोषणा यह दर्शाती है कि भारत को विकास पथ पर रखने में सरकार का दृष्टिकोण क्या है?

इससे पता चलता है कि सरकार एक साल का टैक्स ब्रेक या आय सहायता प्रदान करने के बजाय आगे नौकरियां पैदा करेगी.

अगर इसे हम अपने व्यक्तिगत बजट के तौर पर देखें तो यह किसी प्रशिक्षण या डिग्री के भुगतान के लिए वर्तमान खर्च में कटौती करना होगा.

क्रिप्टोकरेंसी पर लगेगा टैक्स 

बजट में कुछ विशिष्ट प्रस्ताव हैं जिनका उल्लेख किया जाना चाहिए. डाकघरों में 37 करोड़ खातों के लिए यह वाकई बहुत अच्छी खबर है क्योंकि सरकार का लक्ष्य 2022 तक सभी डाकघरों को कोर बैंकिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में शामिल करना है. यह वह प्रक्रिया है जिस पर पिछले कुछ समय से काम चल रहा है. भारत में भुगतान और बैंकिंग सिस्टम विश्वस्तरीय है, ये कम लागत वाले हैं, काफी तेज यानी त्वरित हैं और ये बैंकों के बीच पूर्ण अंतःक्रियाशीलता वाले हैं. अब 1.5 लाख से अधिक डाकघर शाखाएं इस प्रणाली का हिस्सा होंगी. यह उन लोगों के लिए बहुत अच्छी खबर है जिनके पास डाकघर में जमा राशि, पीपीएफ खाते या पेंशन भुगतान इस चैनल के माध्यम से होता है.

वर्चुअल डिजिटल परिसंपत्तियों (virtual digital assets) पर टैक्स लगाने का सरकार का निर्णय तथाकथित 'क्रिप्टोकरेंसी' के लिए आगे की राह दिखाता है. ट्रेडिंग, ट्रांसफर या किसी भी वर्चुअल एसेट को गिफ्ट में देने से प्राप्त आय पर फ्लैट 30 प्रतिशत टैक्स का उद्देश्य पिछले दो वर्षों के दौरान बाजार की फ्री-फॉर-ऑल राइड के अनियमित हिस्से पर कुछ प्रतिबंध लगाना है. इसका मतलब यह भी है कि आम धारणा या आशंका के विपरीत, इन टोकन पर पूर्ण प्रतिबंध लागू नहीं किया जा सकता है.

यह किस तरह से संचालित होगा? यह तभी प्रभावी होगा जब आप एक बैंक इनफ्लो को किसी वर्चुअल डिजिटल एसेट की बिक्री या गिफ्ट या ट्रांसफर से जोड़ देते हैं, तो उस राशि पर 30% की दर से टैक्स लगाया जाएगा.

आप इसे किसी भी 'नुकसान' के लिए ऑफसेट नहीं कर सकते हैं, क्योंकि सरकार इसे शॉर्ट- या लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन के रूप में नहीं, बल्कि आय (Income) के तौर पर मान रही है. जिस कीमत पर आपने इसे खरीदा है, उसके अलावा व्यापारिक व्यय के लिए किसी भी कटौती की अनुमति नहीं है. जिस कीमत पर आपने इसे खरीदा था और आपने जिस कीमत पर इसे बेचा है, दोनों के बीच का अंतर आपकी आय तय करेगा.

जो लोग क्रिप्टो को लेकर उत्साहित हैं उनको बता दें कि दुनिया में क्रिप्टो को एक वैध करेंसी या फिएट करेंसी बनाने के लिए कैश आउट की अवश्यकता है और जैसे ही आप ऐसा करेंगे वैसे ही इस पर टैक्स लगेगा!

इसके अतिरिक्त, इस डिजिटल टोकन को स्थानांतरित करने वालों पर इसके स्रोत पर 1% टैक्स लगाया जाएगा. तथाकथित क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंजों के प्रभाव का अभी भी मूल्यांकन किया जा रहा है. वहीं केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) को यह स्पष्ट करना होगा कि एक्सचेंज इसमें शामिल होंगे या नहीं.

बजट प्रस्तुत करते समय यह भी घोषणा की गई कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) जल्द ही डिजिटल रुपया, या भारत की सेंट्रल बैंक डिजिटल मुद्रा प्रस्तुत करेगा. यह घोषणा इस विचार को और अधिक बल प्रदान करती है कि कोई भी सरकार निजी डिजिटल टोकन को फिएट करेंसी या वैध मुद्रा के रूप में उपयोग करने की अनुमति नहीं देगी.

मेरा मानना है कि कुछ वर्षों में पैसों के डिजिटलीकरण में और तेजी लाने के लिए सरकारी कर्मचारियों (शायद निजी क्षेत्र के भी) के मासिक वेतन का एक निश्चित हिस्सा ई-रुपये में भुगतान किया जाएगा.

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हालांकि आबादी के एक वर्ग को सहायता की आवश्यकता है

ऐसे लोग जिनसे रिटर्न फाइलिंग के दौरान कुछ आय का खुलासा करने से चूक हो गई या रिटर्न में उन्होंने कुछ आय को शामिल नहीं किया उनके प्रति टैक्स डिपार्टमेंट की प्रतिक्रिया गंभीर संदेह में से एक रही है. यह बदलने वाला है, क्योंकि ऐसे करदाताओं के पास अब विस्तृत जांच का सामना करने के बजाय उस आय को स्वयं घोषित करने के लिए एक विंडो मिल रहा है. हालांकि आय के सीरियल अंडर-रिपोर्टर्स के लिए अघोषित आय पर नुकसान के समायोजन की अनुमति नहीं दी गई है.

नतीजतन, लोग जानबूझकर रिटर्न में आय नहीं दिखाते हैं, लेकिन अगर आगे की जांच के बाद इसका पता चलेगा तो वे कर देयता (tax liability) को कम करने के लिए सेट-ऑफ का दावा करते हैं. अब इसकी अनुमति नहीं है और यह ठीक भी है.

हालाँकि आबादी का एक हिस्सा ऐसा भी है जिसे सरकारी सहायता की जरूरत है- ऐसे लोग जो हाल ही में गरीबी से उबरे उन पर फिर से गरीबी में फिसल जाने का खतरा मंडरा रहा है, क्योंकि कोविड-19 (Covid-19) की वजह से उनकी आजीविका को भी नुकसान पहुंचा है. मैं उन अनौपचारिक वर्कर्स को आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए एक ई-श्रम कार्ड-लिंक्ड योजना देखने की उम्मीद कर रही थी, जो पिछले दो वर्षों में सबसे बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं.

निम्न-आय वाले समूह के तंग घरेलू वित्त के लिए अभी भी काफी उतार-चढ़ाव वाला समय है. आज सबसे बड़ा बढ़ावा जो उनकी मदद कर सकता है, वह बजट में नहीं है, बल्कि अर्थव्यवस्था को व्यापार के लिए पूरी तरह से खोलने में है.

(मोनिका हलान एक लेखक और NISM में सहायक प्रोफेसर हैं. इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

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