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22वें विधि आयोग (Law Commission) ने शुक्रवार, 29 सितंबर को केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय को एक रिपोर्ट सौंपी, जिसमें सुझाव दिया गया है कि सेक्स के लिए सहमति की मौजूदा (Age of Consent) उम्र के साथ "छेड़छाड़ करना ठीक नहीं है". भारतीय कानून के मुताबिक सहमति की उम्र 18 साल है.
सहमति की उम्र घटाकर 16 साल करने का विरोध करते हुए, विधि आयोग ने कहा कि यह यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2011 (POCSO) को एक "कागजी कानून" बना देगा.
आयोग ने कहा, "इससे बहुत गंभीर प्रकृति के कई परिणाम होंगे, जिनकी अपेक्षा भी नहीं की गई है..."
हालांकि, आयोग ने उन मामलों में POCSO अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव दिया है, जहां 16 से 18 वर्ष की आयु के बीच स्पष्ट सहमति है.
कर्नाटक हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस रितु राज अवस्थी की अध्यक्षता वाले विधि आयोग के पैनल ने कहा,
इसमें आगे कहा गया है कि "वर्तमान स्थिति के साथ एक सामाजिक लागत जुड़ी हुई है, जिसमें बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव के साथ-साथ जांच एजेंसियों और अदालतों पर बोझ भी शामिल है. ये उन मामलों से ध्यान हटा देगा जो वास्तविक हैं और जिनपर तत्काल विचार की आवश्यकता है."
सुझाए गए संशोधन: आयोग ने यौन उत्पीड़न के लिए दंड से संबंधित POCSO अधिनियम की धारा 4 और 8 में संशोधन की सिफारिश की है.
इसने सुझाव दिया है कि विशेष अदालत उन मामलों में कम सजा दे जहां बच्चा स्पष्ट सहमति के साथ 16 वर्ष या उससे अधिक उम्र का है.
इसने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 और 376 (रेप) में संबंधित बदलाव का भी सुझाव दिया है.
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