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भारत में मंकीपॉक्स (Monkeypox) का पहला मामला सामने आने के एक हफ्ते के अंदर दूसरे मामले की खबर है, जिसके बाद स्वास्थ्य अधिकारी चौकन्ने हो गए हैं.
दोनों मरीज केरल में मिले हैं और दोनों हाल ही में संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) से लौटे हैं.
दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी मंकीपॉक्स के मामले बढ़ रहे हैं, जो नॉन-एंडेमिक (जहां की महामारी नहीं है) देशों में इस बीमारी का अब तक का सबसे बड़ा फैलाव है. वजह अभी भी साफ नहीं है.
एपिडेमियोलॉजिस्ट और पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. चंद्रकांत लहारिया का हाल में लिखा एक लेख, जो मंकीपॉक्स की वैश्विक महामारी क्षमता (pandemic potential) का आकलन करता है, बताता है कि शायद हमें इसकी जरूरत नहीं है.
मंकीपॉक्स की कोविड-19 से कैसे तुलना की जा सकती है? क्या हमें फिक्रमंद होना चाहिए? एक्सपर्ट्स का इस बारे में क्या कहना है.
सबसे पहले, हम अब तक मंकीपॉक्स के बारे में जो कुछ जानते हैं, उसका संक्षिप्त विवरण.
मंकीपॉक्स एक वायरल इन्फेक्शन है, जो मंकीपॉक्स वायरस से होता है और यह आमतौर पर रोडेंट्स और प्राइमेट्स से फैलता है.
दरअसल यह 1970 के दशक से पश्चिमी और मध्य अफ्रीका के 11 देशों में एंडेमिक रही है.
हालांकि 2022 की शुरुआत में कुछ बदलाव आया है.
यूके से शुरू होकर, दूसरे देशों में मंकीपॉक्स के मामले समूह में सामने लगे और इनमें से सिर्फ एक मरीज ने अफ्रीका की यात्रा की थी.
तब से 42 से ज्यादा देशों में लगभग 1300 मामले सामने आ चुके हैं.
मरीजों में दिखने वाले आम लक्षणों में शामिल हैं:
बुखार
ठंड लगना
सिरदर्द
शरीर दर्द
चकत्ते
सूजी हुई लिम्फ नोड्स
हाथ, पैर और चेहरे पर तकलीफ देने वाले छाले (चिकनपॉक्स की तरह)
कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि मौजूदा महामारी उतनी नई नहीं है, जितनी बताई जा रही है.
वह कहते हैं, “मुझे नहीं लगता कि समझने में गलती हो रही है, लेकिन बात सिर्फ इतनी सी है कि अब तक के हालात कुछ खास नए नहीं हैं.”
IISER पुणे में इम्यूनोलॉजिस्ट और वैज्ञानिक डॉ. विनीता बल ने भी एक बार फिट से बात करते हुए कहा था, “मुझे लगता है कि वायरल से होने वाली संक्रामक बीमारियों, खासतौर से जूनोटिक वायरल इन्फेक्शन (zoonotic viral infections) के लिए जरूरत से संवेदनशीलता दुनिया भर में डर का माहौल बना रही है.”
हालांकि WHO ने अभी तक मंकीपॉक्स को हेल्थ इमरजेंसी घोषित नहीं किया है, लेकिन वह हालात पर कड़ी निगरानी बनाए हुए हैं.
एपिडेमियोलॉजिस्ट और पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. चंद्रकांत लहारिया फिट से कहते हैं, “यह कोविड से बहुत अलग है.”
वह कहते हैं, “यह रेस्पिरेटरी सिस्टम की बीमारी (respiratory illness) नहीं है. यह छूने से होने वाली बीमारी(contact illness) है.” इसका मतलब यह है कि “यह तब तक नहीं फैलती है, जब तक कि स्किन से सीधा संपर्क नहो.”
मार्च में जब यूके में पहली बार मंकीपॉक्स का मामला सामने आया था, तो कई मरीज ऐसे पुरुष थे, जो पुरुषों से सेक्स संबंध (MSM) रखते थे, जिसने स्वास्थ्य अधिकारियों को मंकीपॉक्स के सेक्सुअली ट्रांसमिटेड इन्फेक्शन(sexually transmitted Infection) होने की संभावना पर सोचने पर मजबूर किया.
डॉ. लहारिया कहते हैं, ‘'यह सेक्सुअली ट्रांसमिटेड बीमारी नहीं है.” उनका कहना है कि बल्कि यह ऐसी बीमारी है जो स्किन से स्किन के संपर्क से फैलती है, जिसका मतलब है कि सेक्सुअल एक्टिविटी से संक्रमित होने का खतरा बढ़ जाता है.
डॉ. लहारिया बताते हैं कि मंकीपॉक्स में एक और बड़ा फर्क यह है कि, “जब तक इंसान सिम्टोमैटिक नहीं होता, वह संक्रामक नहीं है.”
वह कहते हैं, “यहां तक कि अगर कोई (मंकीपॉक्स) संक्रमित शख्स के नजदीकी संपर्क में आता है, तब भी उसे तब तक बीमारी नहीं लगेगी, जब तक कि मरीज में लक्षण न हों.”
इन वजहों से, मंकीपॉक्स आमतौर पर एक मरीज में सीमित (self-limited disease) रहने वाली बीमारी है.
डॉ. लहारिया कहते हैं, “औसतन इसका इन्क्यूबेशन पीरियड 6 से 13 दिनों का होता है.”
वह कहते हैं, “इसलिए अगर आप मरीज के संपर्क में आ जाते हैं, तो आपके पास लक्षण उभरने और इन्फेक्शियस होने से पहले खुद को आइसोलेट करने के लिए काफी समय होता है.”
पहले के एक लेख के लिए फिट से बात करते हुए एपिडेमियोलॉजिस्ट डॉ. जेपी मुलियिल ने कहा था, “इस (मंकीपॉक्स) में सेकेंडरी अटैक की दर बहुत कम है. इसलिए संक्रमित होने से पहले आपको लंबे समय तक करीबी संपर्क में रहना होगा.”
यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन का कहना है कि मंकीपॉक्स वायरस की दो किस्मों की पहचान की गई है.
डॉ. लहारिया का कहना है कि जो स्ट्रेन इन दिनों फैला है वह, “एक हल्का स्ट्रेन है” और इसमें “मृत्यु दर कम है.”
हालांकि मंकीपॉक्स जानलेवा हो सकता है, लेकिन ज्यादातर ऐसा नहीं होता है.
इस साल की शुरुआत से अफ्रीका के बाहर जितने भी मामले सामने आए हैं अब तक उनमें से किसी की मौत नहीं हुई है.
डॉ. लहारिया कहते हैं, “वायरस की गैर-जानलेवा (non-fatal) स्थिति के स्तर के चलते फिक्र की कोई बात नहीं है.”
जरूरी नहीं कि किसी बीमारी का फैलना वैश्विक महामारी ही हो.
डॉ. लहारिया कहते हैं कि, वैश्विक महामारी (pandemic) का ऐलान तब किया जाता है, जब किसी बीमारी या वायरस का बड़े पैमाने पर सामाजिक-आर्थिक असर होता है. उनका कहना है कि मंकीपॉक्स के मामले में “ऐसा नहीं होने जा रहा है.”
स्मॉलपॉक्स वैक्सीन (Smallpox vaccines) मंकीपॉक्स के खिलाफ भी असरदार है, और भले ही चेचक के खात्मे के बाद इसकी वैक्सीन का उत्पादन रोक दिया गया था, फिर भी देशों के पास वैक्सीन का स्टॉक है.
स्मॉलपॉक्स की शुरुआती वैक्सीन बहुत तकलीफदेह थी. इसलिए, कुछ कंपनियों ने मंकीपॉक्स के लिए नई, ज्यादा सहने लायक वैक्सीन बनाई हैं.
भारत स्मॉलपॉक्स की वैक्सीन देना बंद करने वाले अंतिम देशों में से एक था, जिसका मतलब है कि भारत में बुजुर्ग और जो लोग 70 के दशक के अंत तक पैदा हुए थे, उन्हें पहले से ही मंकीपॉक्स की वैक्सीन लगाई जा चुकी है.
डॉ. लहारिया कहते हैं, भले ही इस बीमारी से वैश्विक महामारी न फैले मगर “हेल्थ सिस्टम पर बोझ पड़ने का खतरा फिर भी है.”
डॉ. सत्यजीत रथ कहते हैं, यही असली समस्या है.
पहले के एक लेख के लिए फिट से बात करते हुए उन्होंने कहा था कि “असल में हमारा पब्लिक हेल्थ आउटरीच (outreach) सिस्टम ऐसी बीमारियों में कुशलता के साथ, दूर के इलाकों तक पहुंच, फौरन असरदार तरीके से काम करने के लिए नहीं तैयार नहीं है.”
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